संविधान की प्रस्तावना बच्चों के लिए माता-पिता की तरह, इसे नहीं बदला जा सकता : उपराष्ट्रपति धनखड़

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नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना बच्चों के लिए माता-पिता की तरह है और इसे बदला नहीं जा सकता, चाहे कोई कितनी भी कोशिश कर ले। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल ही दो ऐसे संवैधानिक पद हैं जो उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, संसद सदस्यों, विधानसभा सदस्यों और न्यायाधीशों जैसे अन्य पदाधिकारियों से अलग शपथ लेते हैं। हम सभी – उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य – संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं, लेकिन माननीय राष्ट्रपति और माननीय राज्यपाल संविधान को संरक्षित, सुरक्षित और बचाव करने की शपथ लेते हैं। इस प्रकार, उनकी शपथ न केवल बहुत अलग है, बल्कि यह उन्हें संविधान को संरक्षित, सुरक्षित और बचाव करने के भारी कार्य के लिए बाध्य भी करती है। कोच्चि स्थित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस्ड लीगल स्टडीज (एनयूएएलएस) में छात्रों और शिक्षकों के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि ऐतिहासिक रूप से किसी भी देश की प्रस्तावना में कभी बदलाव नहीं किया गया है, लेकिन उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि आपातकाल के दौरान भारतीय संविधान की प्रस्तावना में बदलाव किया गया था।

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