धौलपुर। मनुष्य से जाने अनजाने में प्रतिदिन कई पाप होते है। उनका ईश्वर के समक्ष प्रायश्चित करना ही एक मात्र मुक्ति पाने का उपाय है। उक्त उद्गार कथा वाचक डॉ. सुरेश शास्त्री ने अचलेश्वर महादेव मंदिर पर चल रही मद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन व्यक्त किए। भागवत कथा के दौरान सती चरित्र, ध्रुव चरित्र, जड़ भरत चरित्र, विदुर चरित्र, नृसिंह अवतार आदि प्रसंगों पर प्रवचन करते हुए डॉ. सुरेश शास्त्री ने कहा कि भगवान के नाम मात्र से ही व्यक्ति भवसागर से पार उतर जाता है। उन्होंने उपस्थित श्रोताओं से भगवत कीर्तन करने, ज्ञानी पुरुषों के साथ सत्संग कर ज्ञान प्राप्त करने व अपने जीवन को सार्थक करने का आह्वान किया, साथ ही उन्होंने ईश्वर आराधना के साथ अच्छे कर्म करने का भी आह्वान किया। उन्होंने जीवन में सत्संग व शास्त्रों में बताए आदर्शों का श्रवण करने की बात करते हुए कहा कि सत्संग में वह शक्ति है, जो व्यक्ति के जीवन को बदल देती है। उन्होंने कहा कि व्यक्तियों को अपने जीवन में क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा, संग्रह आदि का त्यागकर विवेक के साथ श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि अगर ध्रुव पांच साल की उम्र में भगवान को पा सकता है, तो फिर हम कैसे पिछड़ सकते हैं। अगर सच्चे मन से भगवान की भक्ति की जाए, तो भगवान खुद अपने भक्तों से मिलने पहुंच जाते है। विदुर प्रसंग में भगवान कृष्ण के प्रेम की व्याकुलता के बारे में उन्होंने विस्तार से बताते हुए कहा कि भगवान कृष्ण विदुरजी की कुटिया में भोजन करने गए और वहां केले के छिलकों का भोग स्वीकारा। इससे पहले वे दुर्योधन के महल में छप्पन भोग का त्याग कर आए थे। भगवान तो प्रेम के भूखे होते हैं और विदुर-विदुरानी ने भगवान को प्रेम से भोजन करवाया तो उन्होंने केले के छिलके भी प्रेम से खा लिए। इस दौरान कथा वाचक डॉ. शास्त्री के साथ भजन मंडली में शामिल दरोगा गौड, संगीत शर्मा, वीरेश दंडौतिया, रिंकू, नितेन्द्र की ओर से प्रस्तुत किए गए भजनों पर श्रोता भाव विभोर होकर नाचने लगे। कथा के प्रारम्भ में अचलेश्वर महादेव मंदिर के महंत मनोजदास महाराज सहित श्रद्धालुओं ने कथा वाचक डॉ. शास्त्री का स्वागत कर भागवत पीठ की आरती की। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे।

सत्संग की शक्ति व्यक्ति के जीवन को बदल देती है : डॉ. सुरेश शास्त्री
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