चुनावी तूफान में से अपने जहाज को आखिरकार निकालकर ले गये पायलट

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टोंक। विधानसभा चुनाव की घोषणा के पश्चात टिकिट वितरण का जब समय आया तो टोंक विधायक सचिन पायलट को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जाने लगे थे कि पाययलट टोंक से चुनाव लड़ेगें या नहींï? लेकिन सारे कयासों एवं संभावनाओं को नकारते हुए पायलट के नाम की घोषणा टोंक से चुनाव लडऩे की होते ही विशेषतय: मुस्लिम नेताओं में एक तूफान सा खड़ा हो गया। शहर के व्यापारियों ने भी पांच साल सर्किट हाऊस की राजनीति करने के कारण एवं आम जनता से लगाव नहीं रखने के चलते पायलट के प्रति नाराजगी जाहिर की, लेकिन टिकिट घोषणा के बाद आखिरकार वह दिन भी आ गया जब पायलट अपनी उम्मीदवारी का पर्चा दाखिल करने टोंक आये, जिस दौरान नामांकन रैली में स्थानीय कांग्रेसियों के बजाय उनकी नामांकन रैली में ज्यादातर बाहरी लोगों को जमावड़ा देख उनकी हारजीत को लेकर टोंक में चर्चाऐ चल पड़ी थी। वहीं पायलट से नाराजगी के चलते दस साल तक सेवादल के अध्यक्ष रहे नईमुद्दीन अपोलो एवं मुस्लिम राजनीति में उभरते सितारे मोहसिन रशीद ने भी अपनी उम्मीदवारी का पर्चा दाखिल कर दिया। पायलट इन परिस्थितियों से भली भांति परिचित हो चुके थे कि यदि मुस्लिम नेता इस चुनाव में उनसे नाराज हो गये तो टोंक में अपना चुनावी जहाज उड़ाना मुश्किल हो जायेगा, और यहां पायलट की अपनी राजनैतिक सूझबूझ कहो या कूटनीति कहो, साम-दाम-दंड-बेद की नीति अपनाते हुए नाराज दोनों मुस्लिम नेताओं को मनाकर उनके नामांकन वापस करवाने में सफलता हासिल की, साथ ही उनसे नाराज अल्पसंख्यक कांग्रेसी नेताओं से भी घर-घर सम्पर्क कर उनकी नाराजगी को आसानी से दूर कर दिया, क्योंकि पायलट या तो खुद इन पांच सालों में यह समझ गये थे कि टोंक का अल्पसंख्यक मतदाता बहुत ही सीधा साधा है, उनके कंधे पर जरा सा हाथ रखो और सब गिले-शिकवे दूर, बस मुस्लिम नेताओं की इसी कमजोरी का फायदा उठाकर पायलट नाराजगी का दिखावा करने वाले अल्पसंख्यक मुस्लिम नेताओं के घरों पर गये व पीछे जो गलतियां हुई उनकी माफी-तवाफी मांगकर सारी विपरीत परिस्थितियों को अपने नियंत्रण में ले लिया, जिसका परिणाम मतदान के दिन देखने को मिला। जिस दौरान मुस्लिम नेता नईमुद्दीन अपोलो, कमर सिद्दीकी, अरशद बाबू, मुन्ना केसरी, पूर्व पार्षद निसार अहमद, सै. मेहमूद शाह आदि लोग जी-जान लगाकर कांग्रेस के पक्ष में मतदान कराते नजर आये थे, यहां यदि ईमानदारी से विश£ेषण करा जाये तो पायलट को आज हुई अपनी जीत के लिए नईमुद्दीन अपोलो व कमर सिद्दीकी जैसे मुस्लिम नेताओं का अहसान मंद होना चाहिए, क्योंकि मतदान के दिन इन दोनों नेताओं द्वारा की गई मेहनत देखते ही बनती थी, यदि इन दोनों मुस्लिम नेताओं द्वारा अपने-अपने क्षैत्रों में मेहनत न की होती तो अल्पसंख्यक मतदाताओं के प्रतिशत में गिरावट आती, जो पायलट के लिए नुकसानदायी साबित हो सकता था। यहां जमील सईदी उर्फ बलू का जिक्र भी करना जरूरी है, जिन्होने भी शहर में अल्पसंख्यक समुदाय के मतदान की कमान संभाली और उसे अंजाम तक पहुंचाया। सारी विपरीत परिस्थितयों को अपने पक्ष में कर लेने के बाद पायलट की हुई जीत को लेकर आज टोंक में यह कहा जा रहा है कि पायलट ने अपने जहाज को चुनावी तूफान से निकालकर ले गये। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी अजीत सिंह मेहता का भी जिक्र करना जरूरी हो जाता है, क्योंकि मेहता की हुई हार के पीछे उनकी राजनीतिक अपरीपक्वता मानी जायेगी, क्योंकि इस चुनाव में पायलट के प्रति अल्पसंख्यक मतदाताओं की नाराजगी को या तो वह समझ नहीं पाये या अपने अति उत्साह में वह भूल गये कि उन्हें 2013 की विधायकी निर्दलीय पंतग के कारण ही मिल पाई थी, वरना वह उस चुनाव में भी जकिया को हराने में सक्षम नहीं थे, तो इस बार मेहता कैसे भूल कर गये कि इस बार भी मजबूत पायलट को हराने के लिए किसी अल्पसंख्यक पतंग को उड़ाना जरूरी था, साथ ही अजीत सिंह मेहता की हार का यदि विश्रेषण किया जाये तो भाजपा संगठन को भी वह मनाने में नाकामयाब रहे या उन्होने नाराज भाजपा संगठन के नेताओं को पायलट की तरह मनाने की कोशिश ही नहीें की। मतदान स्थल पर जब पायलट की जीत की चर्चा की जा रही थी, तब कई लोगों द्वारा यह कहते हुए सुना गया कि मेहता को भी साम-दाम की राजनीति अपनाते हुए अपनी जीत सुनिश्चित करनें के लिए कोई ना कोई टोंक में एक ओर चुनावी पतंग उड़ानी चाहिए थी।

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