बिहार में चुनाव आयोग की ओर से शुरू की गई मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया लगातार चर्चा में है। जहां एक तरफ इसे लेकर शुरू की गई कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा सोमवार को पटना में विपक्षी नेताओं की रैली के साथ समाप्त हुई, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर नए आदेश जारी करते हुुुए मतदाता सूची सुधार का कार्य आगे भी जारी रहने का निर्देश जारी किये हैं, यह निर्देश स्वागतयोग्य है। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि यह पूरा प्रकरण आखिरकार कैसा मोड़ लेगा और आगामी बिहार विधानसभा चुनाव पर किस तरह का असर डालेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को स्पष्ट कर दिया कि बिहार के मतदाता 1 सितंबर के बाद भी दावा या आपत्ति कर सकेंगे। यह निर्देश बहुत जरूरी है, क्योंकि अभी भी राजनीतिक दलों की शिकायतें दूर नहीं हुई हैं। ज्यादातर आम लोगों की शिकायतों का निवारण कर दिया गया है, पर कुछ राजनीतिक पार्टियों के लिए एसआईआर की खामी एक बड़ा मुद्दा है। महागठबंधन में शामिल दल इस मुद्दे में विवाद खड़े करने में ही अपने चुनावी हित देख रहे हैं। हालांकि, न्यायालय ने उचित ही बताया है कि मतदाता सूची के एसआईआर को लेकर असमंजस की स्थिति काफी हद तक ‘विश्वास का मामला’ है। इसका मतलब, जो राजनीतिक अविश्वास है, उसे दूर करने के लिए स्वयं दलों को सक्रिय होना पड़ेगा। न्यायालय की इस सलाह पर राजनीतिक दलों को गौर करना चाहिए और इस प्रक्रिया को सकारात्मक तरीके से आगे बढ़ाना चाहिए। क्योंकि चुनाव सुधार एक सामूहिक जिम्मेदारी है। अगर सभी राजनीतिक दल यह ठान लें, तो चुनाव में किसी भी तरह की गड़बड़ी को रोका जा सकता है। वास्तव में, मतदाता पुनरीक्षण का काम राजनीतिक दलों को अपने स्तर पर लगातार जारी रखना चाहिए, इससे लोकतंत्र की मजबूती सुनिश्चित होगी एवं चुनाव की खामियों को सुधारा जा सकेगा।
-ललित गर्ग