ऊंटों के अस्तित्व पर संकट छाया- हेम शर्मा

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बीकानेर।‌ पिछले दशकों की राज्य पशु ऊंट के गणना के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो सवाल उठता है कि क्या अगले दशक तक ऊंटों की संख्या सैकड़ों में ही रह जाएगी? पिछला रिकार्ड देखें तो 1983 में ऊटों की संख्या 7 लाख 56 हजार थी जो 2019 की पशु गणना में घटकर 2 लाख 13 हजार रह गई। इस गिरावट के ग्राफ से सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि अब कितनी रह गई होगी और अगले दशक में म्युजियम में रखने जितने भी ऊट बचेंगे क्या ? रेगिस्तान का जहाज कहलाने वाले ऊंट की उपयोगिता में इतनी गिरावट आई है कि राजस्थान से ऊंट मांस के लिए बांग्लादेश और अन्य स्थानों पर तस्करी से जाते हैं। ऊंट को राज्य पशु का दर्जा देकर सरकार ने 2015 में कानून बनाकर राज्य से बाहर ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बावजूद पिछले दिनों बीकानेर की छतरगढ तहसील में तस्करी ले जाए जा रहे 16 ऊंटों को गौ रक्षा दल ने मुक्त करवाया। इससे पहले चूरू में ऊंटों से भरा ट्रक पकड़ा गया। यह ट्रक हनुमानगढ़ से 14 ऊंट लेकर उत्तर प्रदेश जा रहा था। बीकानेर, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, चूरू से होकर ऊंटों की तस्करी होती है। ये ऊंट अलवर होते हुए ट्रकों व कंटेनरों में बंद करके अररिया, पूर्णियां, किशनगंज के रास्ते कुर्बानी के लिए बांग्लादेश जाते हैं। बिहार से भी ऊंटों की तस्करी के बडे नेटवर्क का खुलासा हुआ था। पश्चिमी राजस्थान में जैसलमेर में 50 हजार ऊंट बचे हैं। बाकी जिलों में ऊंटों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है। राजस्थान सरकार की ऊंटो की तस्करी रोकने की प्रभावी नीति नहीं होने से ऊंटों को बूचड़ खाने में जाने से रोक नहीं पा रहे हैं। पशु क्रूरता अधिनियम और राजस्थान ऊष्ट्र अधिनियम ज्यादा प्रभावी नहीं हो पाए हैं। राजस्थान सरकार ने ऊंटों के संर्वधन और संरक्षण के लिए बनाई ऊष्ट्र विकास योजना में ऊंट पालकों को तीन किश्तों में 10 हजार रुपए देने की योजना बंद कर दी गई है। ऊंटों को पर्यटन और दूध से प्रोडेक्ट बनाने का काम भी आगे नहीं बढ़ पा रहा है। रेगिस्तान का जहाज डूबने के कगार पर है। अखिल भारतीय कृषि गो सेवा संघ के ट्रस्टी व एनीमल वेलफेयर कमेटी के सदस्य कमलेश शाह का कहना है कि हमारे कार्यकर्ता तैलगाना, हैदराबाद, यूपी, बिहार और पश्चिमी बंगाल में बांग्लादेश बूचड़ खाने में तस्करी से ले जाते ऊंटो को छुडाते है। ये ऊंट ज्यादातर राजस्थान से आते हैं। राजस्थान सरकार को ऊंटों की तस्करी रोकने के कडे प्रयास करने की जरूरत है अन्यथा ऊंटों को बचाना मुश्किल हो जाएगा। राजस्थान में ऊंटों की घटती संख्या पर कोई बोलने वाला नहीं है। सरकार ने भी चुप्पी साध रखी है। ऊंट पालक परम्परागत राईका जाति के लोग भी ऊंट पालन छोड़ रहे हैं। ऐसे में ऊटों के अस्तित्व पर संकट छाया हुआ है।

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