उच्चतम न्यायालय ने एक अहम फैसले के तहत उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले में यमुना एक्सप्रेसवे और उसके आसपास के क्षेत्रों के एकीकृत विकास के लिए भूमि अधिग्रहण की वैधता को मंगलवार को बरकरार रखा। शीर्ष अदालत ने जमीन मालिकों और यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (वाईईआईडीए) की ओर से दायर अपील और ‘क्रॉस-अपील’ पर सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया। ये मामले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो विरोधाभासी फैसलों से उपजे थे। एक फैसले में वाईईआईडीए की ओर से भूमि अधिग्रहण को बरकरार रखा गया था, जबकि दूसरे फैसले में अति आवश्वयक धाराओं को लागू करते हुए किसानों की जमीन अधिग्रहीत करने की राज्य सरकार की कार्रवाई रद्द कर दी गई थी।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने जमीन मालिकों की याचिकाएं खारिज कर दीं, जबकि वाईईआईडीए की ओर से दाखिल अर्जियों को स्वीकार कर लिया। इसी के साथ भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 के अति आवश्यक प्रावधानों को लागू करने पर लंबे समय से चले आ रहे विवाद का समाधान हो गया। न्यायमूर्ति मेहता ने पीठ के लिए 49 पन्नों का फैसला लिखते हुए कहा कि अधिग्रहण को यमुना एक्सप्रेसवे के विकास के लिए अहम माना गया है। फैसले में इस बात पर जोर दिया गया कि एक्सप्रेसवे का निर्माण और आसपास के क्षेत्रों का विकास सार्वजनिक-हित की एक एकीकृत परियोजना के दो अविभाज्य घटक हैं।
इसमें कानून के अति आवश्यक प्रावधानों को लागू करने के फैसले को बरकरार रखा गया है और कहा गया है कि यह क्षेत्र की विकास नीति के तहत उचित था। फैसले में कहा गया है कि अवैध निर्माण और अतिक्रमण के बारे में चिंता और तेजी से विकास की आवश्यकता के कारण संबंधित कानून के तहत सामान्य जांच को दरकिनार करना जरूरी है।पीठ ने कहा कि प्रभावित जमीन मालिकों में से अधिकांश ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से निर्धारित मुआवजे को स्वीकार कर लिया है और ‘नो लिटिगेशन बोनस’ के रूप में दिए जाने वाले 64.7 फीसदी बढ़े हुए मुआवजे का समर्थन किया है।