कोई तो सीवरेज साफ-सफाई कर्मियों के बारे में सोचें

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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट अप्रैल-2025 के अनुसार भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है।नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने कुछ समय पहले इसकी पुष्टि करते हुए बताया था कि भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) अब 4 ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो चुकी है, यह हम सभी को गौरवान्वित महसूस कराता है, लेकिन विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था का तमग़ा हासिल करने के बाद भी जब हमारे यहां से सीवर की सफाई करते लोगों की मौत की खबरें आती हैं, तो यह हमें बहुत विचलित करतीं हैं। वाकई यह बहुत ही दुखद है कि आए दिन हमें मीडिया की सुर्खियों में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मजदूरों की मौत के मामले पढ़ने सुनने को मिलते रहते हैं। हाल ही में यूपी के वृंदावन में सीवर सफाई कर रहे दो युवकों की दर्दनाक मौत हो गई। उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह घटना केशव धाम पुलिस चौकी के निकट स्थित एक पेट्रोल पंप के पास गेस्टहाउस के सीवर की सफाई के दौरान हुई। दोनों श्रमिक सीवर चैंबर में जहरीली गैस के कारण बेहोश हो गए, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इस घटना के बाद परिजनों ने ठेकेदार पर लापरवाही का गंभीर आरोप लगाया है। हमारे देश में सीवरेज की सफाई का काम अक्सर समाज का सबसे कमजोर व गरीब वर्ग करता है, ऐसे में क्या इन सबसे कमजोर व गरीब वर्ग की चिंता हम सभी को तथा सरकार को नहीं करनी चाहिए, यह प्रश्न अपने आप में एक यक्ष व ज्वलंत प्रश्न है। पिछले साल एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक में छपी एक खबर के अनुसार सफाई के काम में लगे 38,000 कर्मचारियों में से 91.9% कर्मचारी अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदायों से हैं। बहरहाल,कहना ग़लत नहीं होगा कि हमारे देश में सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों के आंकड़े बहुत ही चिंताजनक हैं। यदि हम यहां पर आंकड़ों की बात करें तो एक प्रतिष्ठित टीवी चैनल के अनुसार पिछले 31 सालों में 1248 लोगों की मौत हुई है और इनमें से सबसे ज्यादा मौतें तमिलनाडु (253), गुजरात (183), उत्तर प्रदेश (133), और दिल्ली (116) में हुई हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार वर्ष 2019 से वर्ष 2023 के बीच 377 लोगों की मौत सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हुई है।जुलाई 2022 में लोकसभा में पेश सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पांच सालों में भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कम से कम 347 लोगों की मौत हुई, जिनमें से 40 प्रतिशत मौतें उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और दिल्ली में हुईं।यदि हम यहां पर सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों के प्रमुख कारणों की बात करें तो इनमें क्रमशः मैनुअल सीवर सफाई(सीवर और सेप्टिक टैंकों में जहरीली गैसों के कारण),सुरक्षा उपकरणों का अभाव(सीवर की सफाई के दौरान सुरक्षा उपकरणों का उपयोग न करना),लापरवाही(ठेकेदारों और स्थानीय प्रशासन की लापरवाही),सीवर सफाई के दौरान सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करना, तथा सीवर सफाई के खतरों के बारे में जागरूकता की कमी हैं। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि देश में साल 1993 में पहली बार सीवरों की मैनुअल सफाई और मैला ढोने की प्रथा पर बैन लगाया गया था तथा इसके 20 साल बाद मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट, 2013 के जरिए इस पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई थी, लेकिन इसके बाद भी आए दिन सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मजदूरों की मौत के मामले सामने आते रहे हैं, इससे बड़ी विडंबना और दुख की बात भला और क्या हो सकती है ? आज हम एआइ चैटबाट (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के आधुनिक युग में जी रहे हैं।देश के पास चांद तक पहुंचने की तकनीक उपलब्ध है, लेकिन सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए आज भी मशीनों , तकनीक और सुरक्षा उपकरणों की कमी है। शायद यही वजह है कि मजदूर इन जहरीली गैस वाले टैंकरों में खुद उतरकर मैन्रूयुअल रूप इन सीवरेज की सफाई करते हैं।हैरानी की बात तो यह है कि हमारे देश में आज मैनुअल सीवर की सफाई पर कानूनन बैन है, लेकिन फिर भी अक्सर ऐसे हादसे होते रहते हैं।कानून के मुताबिक, अगर मजदूरों को परिस्थितिवश अगर सीवर में उतरना पड़ता है को उनको 27 दिशा-निर्देशों का पालन करना होता है, लेकिन इन दिशा-निर्देशों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता और मजदूरों को सीधा मौत में उतार दिया जाता है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार अगर कोई व्यक्ति या एजेंसी एमएस अधिनियम, 2013 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए किसी भी व्यक्ति को मैनुअल स्कैवेंजिंग के लिए नियुक्त करती है, उसे अधिनियम की धारा 8 के तहत दो साल तक की कैद या 1 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। बहुत बार जब सीवरेज में मौत के मामले सामने आते हैं तो ऐसे मामलों के तूल पकड़ने के बाद प्रशासन की ओर से इस संबंध में मामला दर्ज किए जाने और मुआवजा देने के आश्वासन जैसी औपचारिकताएं पूरी की जातीं हैं, लेकिन उससे पहले कुछ होता नहीं है,यह बहुत ही अफसोसजनक है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज जरूरत इस बात की है,हम विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में इतनी अधिक प्रगति कर चुके हैं,अब पारंपरिक तरीकों से सीवरेज की साफ-सफाई पर पूरी तरह से रोक लगनी चाहिए। फिर भी यदि किसी कारणवश इन सीवरेज की साफ-सफाई के लिए मजदूरों को इनमें उतरना ही पड़ता है तो सीवर सफाई के लिए सुरक्षा दिशा-निर्देशों का अक्षरशः पालन सुनिश्चित किया जाना बहुत ही जरूरी और आवश्यक है, ताकि मौत के आंकड़ों पर अंकुश लगाया जा सके। वास्तव में सीवर में उतरने वाले व्यक्तियों को गैस डिटेक्टर, सुरक्षात्मक कपड़े (जैसे कि दस्ताने, जूते, और सुरक्षात्मक सूट), और श्वसन उपकरण (जैसे कि गैस मास्क या एयर-सप्लाई रेस्पिरेटर) का उपयोग करना चाहिए। उचित प्रशिक्षण तो जरूरी है ही।सीवर को साफ करने से पहले, उसका अच्छी तरह से निरीक्षण किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह सुरक्षित रूप से साफ किया जा सकता है। इतना ही नहीं, सीवर में काम करने वाले व्यक्तियों को समय-समय पर निकासी करनी चाहिए, ताकि वे थकान से बच सकें और उन्हें ताजी हवा(आक्सीजन) मिल सके। जेटिंग मशीन,स्नेकिंग उपकरण( जो सीवर में एक धातु की छड़ डालकर रुकावटों को तोड़ता है), तथा अन्य आधुनिक मशीनों जैसे कि रोबोटिक उपकणों आदि का प्रयोग किया जाना बहुत ही जरूरी है। इसके साथ ही किसी भी सीवर को साफ करने के बाद, उसे ठीक से बंद करना चाहिए। कहना ग़लत नहीं होगा कि सीवर में काम करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की रक्षा करना बहुत आवश्यक है।सीवर सफाई के दौरान होने वाली किसी भी दुर्घटना या मृत्यु के मामले में, प्रभावित व्यक्तियों या उनके परिवारों को समय पर उचित मुआवजा भी मिलना चाहिए। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि हमारे देश की शीर्ष अदालत ने वर्ष 2023 में केंद्र और राज्यों को उचित उपाय करने, नीतियां बनाने और निर्देश जारी करने का निर्देश दिया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मैनुअल सीवर सफाई को चरणबद्ध तरीके से पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाए। इतना ही नहीं,उस समय माननीय न्यायालय ने कई निर्देश जारी करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों से सीवर की सफाई के दौरान मरने वालों के परिजनों को 30 लाख रुपये का मुआवजा देने को भी कहा था। इतना ही नहीं,न्यायालय ने उस समय आगे यह भी निर्देश दिया था कि किसी भी विकलांगता से पीड़ित सीवर पीड़ितों के मामले में न्यूनतम मुआवजा 10 लाख रुपये से कम नहीं होगा। माननीय न्यायालय ने कहा कि यदि विकलांगता स्थायी थी और पीड़ित आर्थिक रूप से असहाय हो गया था, तो मुआवजा 20 लाख रुपये से कम नहीं होना चाहिए। अंत में यही कहूंगा कि आज हम आधुनिक युग में जी रहे हैं और पारंपरिक तरीकों से सीवरेज की साफ-सफाई पर अब पूरी तरह से अंकुश लगना चाहिए, ताकि हमें सीवरेज से मौतों के हादसे न देखने को मिलें। वास्तव में आज जरूरत इस बात की है कि हम सीवर में साफ-सफाई करने उतरे मजदूरों की जोखिम भरी जिंदगी और इस काम में उनके अस्तित्व और गरिमा के सवाल पर चिन्तन-मनन करें और इस दिशा में आवश्यक और जरूरी कदम उठाएं। यह बहुत ही अफसोसजनक है कि आजादी के सात दशक बाद आज जब हम अंतरिक्ष की ऊंचाइयों को छू चुके हैं, चांद सूरज पर अनुसंधान कर रहे हैं, एआइ युग में जी रहे हैं, ऐसे में अक्सर सीवर की साफ-सफाई के लिए उसमें उतरे मजदूर अपनी जान गंवा रहे हैं। वास्तव में, इस समस्या के पीड़ितों या यूं कहें कि आमतौर पर समाज के सबसे कमजोर तबके से आने वाले लोगों पर हो रही अमानवीयता पर और अधिक चिंतन-मनन होना चाहिए।

सुनील कुमार महला

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