नई दिल्ली। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध के दिग्गजों के साथ बातचीत के दौरान ऑपरेशन सिंदूर के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना की। पाकिस्तान के खिलाफ चार बड़े युद्धों और चीन के खिलाफ एक युद्ध का हवाला देते हुए, रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ “भाग्यशाली” नहीं रहा है, बल्कि उसने अपनी नियति खुद गढ़ी है। राजनाथ सिंह ने साउथ ब्लॉक में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि आज़ादी के बाद से, भारत अपने पड़ोसियों के साथ भाग्यशाली नहीं रहा है, लेकिन हमने इन चुनौतियों को नियति मानकर स्वीकार नहीं किया है; हमने अपनी नियति खुद गढ़ी है।
राजनाथ ने कहा कि हमने ऑपरेशन सिंदूर में इसका एक उदाहरण देखा। उस घटना ने हमें भारी मन और क्रोध से भर दिया, लेकिन इसने हमारा मनोबल नहीं तोड़ा। हमारे प्रधानमंत्री ने एक प्रतिज्ञा ली, और हमने दशकों से यह प्रदर्शित किया है कि जीत हमारी आदत बन गई है, जिसे हमें बनाए रखना चाहिए। राजनाथ सिंह ने युद्ध के दिग्गजों की बहादुरी और बलिदान की सराहना करते हुए कहा, “मैं सोच रहा था कि वह कौन सी भावना है जो हमें अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए प्रेरित करती है। आत्म-सम्मान की भावना सबसे बड़ी भावना है। अगर विदेशी ताकतें हमें बुरी नज़र से देखने की हिम्मत करती हैं, तो हम उनकी रक्षा के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देते हैं।”
उन्होंने कहा कि 1965 में आपने जो वीरता दिखाई, वह अतुलनीय है। एक कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से, मैं आपको नमन करता हूँ। हम देश की अखंडता से किसी भी तरह समझौता नहीं होने देंगे। उन्होंने आगे कहा कि युद्ध के दिग्गजों द्वारा साझा किए गए अनुभव इतिहास की किताबों में दर्ज अनुभवों से कहीं आगे हैं। उन्होंने कहा, “1965 के युद्ध पर कई किताबें हैं, लेकिन जब आज नांबियार साहब और बेदी साहब ने बात की, तो मुझे लगा कि सब कुछ किताबों में नहीं लिखा होता। टैंकों में बिताई रातें… आज यहाँ बैठा हर दिग्गज उन शहीदों को याद कर रहा होगा, लेकिन वह शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी। मैं उनकी स्मृति को नमन करता हूँ।”
1965 के युद्ध में परमवीर चक्र विजेता कंपनी क्वार्टरमास्टर हवलदार अब्दुल हमीद के बलिदान को याद करते हुए उन्होंने कहा कि बहादुरी का मतलब “दिल का आकार” होता है। उन्होंने कहा कि 1965 का युद्ध हमारे लिए आसान नहीं था। पाकिस्तान ने घुसपैठ की, लेकिन उस दौरान कई लड़ाइयाँ हुईं जो ऐतिहासिक थीं। दुनिया का सबसे बड़ा टैंक युद्ध वहीं हुआ था। हमारे बहादुर अब्दुल हमीद ने टैंकों की एक कतार को जला दिया। उन्होंने साबित कर दिया कि बहादुरी सिर्फ़ हथियार के आकार की नहीं, बल्कि दिल के आकार की होती है। राजनाथ सिंह ने युद्ध के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के “निर्णायक फैसलों” की भी सराहना की।