RTI बनी मजाकः लोक सूचना अधिकारियों से नगर निगम ग्रेटर ने नहीं वसूले 40.21 लाख रुपए

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जयपुर। कांग्रेस सरकार ने सूचना का अधिकार कानून इसलिए बनाया था ताकि सरकारी कामकाज में पारदर्शिता बनी रहे। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे औऱ आम नागरिकों के हितों की रक्षा हो सके। शुरुआती दिनों में भारत के लोगों को इसका काफी फायदा भी मिला। भ्रष्टाचार के कई बड़े मामले इसी सूचना का अधिकार कानून की वजह से खुले। कांग्रेस को खामियाजा भी भुगतना पड़ा औऱ वह भ्रष्टाचारियों के कारण सत्ता से बाहर हो गई। लेकिन, बाद में अफसरों ने इस कानून को मजाक बनाकर रख दिया। अब जयपुर नगर निगम ग्रेटर को ही ले लीजिए। अपने लोक सूचना अधिकारियों से जुर्माने की राशि ही नहीं वसूली। बल्कि खानापूर्ति करके छोड़ दी।

स्थानीय निधि अंकेक्षण विभाग की ओऱ से हाल ही राज्य विधानसभा में पेश की गई ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि राजस्थान सूचना आयोग द्वारा वित्तीय वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 के दौरान विभिन्न मामलों में नगर निगम के लोक सूचना अधिकारियों पर 40..21 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया। निगम द्वारा यह राशि लोक सूचना अधिकारियों से वसूल करके राज्य सूचना आयोग के कोष में जमा करवानी थी। लेकिन, वर्ष 2022 तक ऐसा नहीं किया गया।

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 20 (1) के अंतर्गत राजकीय विभागों एवं स्वायत्तशाषी संस्थाओं द्वारा नियत समय पर बिंदुवार पूर्ण सूचना नहीं देने औऱ सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराए जाने के कारण राजस्थान सूचना आयोग द्वारा जुर्माना लगाया जाता है। प्रशासनिक सुधार एवं समन्वय विभाग के परिपत्र दिनांक 8 अक्टूबर, 2021 द्वारा विभिन्न विभागों के राज्य लोक सूचना अधिकारियों पर लगाए गए जुर्माने की वसूली के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए हुए हैं। इसके तहत सभी प्रशासनिक विभाग और विभागाध्यक्षों को यह राशि संबंधित लोक सूचना अधिकारी के वेतन से कटौती करके राज्य सूचना आयोग के खाते में जमा करवाने के निर्देश दिए हुए हैं।

नगर निगम आयुक्तों की लापरवाही सामने आईः
इस मामले में आय़ुक्तों की लापरवाही भी सामने आई है। क्योंकि नगर निगम में वही विभागाध्यक्ष होते हैं। ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक इस संबंध में जांच दल ने 24 मई, 2023 को नगर निगम ग्रेटर को मीमो जारी किया। लेकिन, इसका उत्तर ही नहीं दिया गया। इसके बाद यह मामला मार्च, 2024 में स्वायत्त शासन विभाग के ध्यान में लाया गया। लेकिन, इस पर नगर निगम अफसरों द्वारा लीपापोती करने की कोशिश की गई। इस पर पुनः यह मामला अक्टूबर 2024 में स्वायत्त शासन विभाग के ध्यान में लाया गया। दिसंबर, 2024 में इसके लिए विभाग के साथ मीटिंग की गई।तब स्थानीय निकाय विभाग के वित्तीय सलाहकार ने 6 दिसंबर, 2024 को जवाब दिया कि नगर निगम ग्रेटर द्वारा संबंधित कर्मचारियों से 73000 रुपए की वसूली कर ली है। यानि पूरी राशि की वसूली नहीं की गई। ऑडिट रिपोर्ट में पूरी राशि की वसूली कर सूचना आयोग के खाते में जमा कराए जाने की सिफारिश की गई है।

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