राष्ट्रीय एकता की भावना को मजबूत करते हैं पटेल के विचार

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आज लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की 150 वीं जयंती है। यह दिन देश की एकता, अखंडता और बहुसांस्कृतिक विविधता को समर्पित है। सरदार पटेल की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में शुक्रवार को पूरे देश में एकता दौड़ का आयोजन किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से 31 अक्टूबर को देश भर में आयोजित होने वाली ‘रन फॉर यूनिटी’ में शामिल होने का आग्रह किया। 31 अक्टूबर से 25 नवंबर तक यूनिटी पदयात्राएं होंगी। पदयात्राओं का मुख्य उद्देश्य युवाओं को ‘ एक भारत ‘ और ‘ आत्मनिर्भर भारत ‘ के लिए प्रेरित करना है। पदयात्रा से पहले स्कूलों और कॉलेजों में निबंध प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता, सरदार पटेल के जीवन पर संगोष्ठी और नुक्कड़ नाटक जैसे कार्यक्रम होंगे। इसी भांति 26 जनवरी की तर्ज़ पर भव्य परेड का आयोजन भी किया जा रहा है। इन आयोजनों से युवाओं में राष्ट्रीय गौरव की भावना जगेगी। आयोजनों के दौरान युवाओं को नशामुक्ति की शपथ दिलाई जाएगी। स्वदेशी मेलों का भी आयोजन होगा। यह पहल भारत को एक और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में है।
नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद देश की एकता, अखंडता और अस्मिता के प्रतीक सरदार वल्लभभाई पटेल की उल्लेखनीय उपलब्धियों को दुनियाभर में एक नई पहचान मिली। यहां इस सच को स्वीकार किया जाना चाहिए कि महात्मा गाँधी का प. जवाहर लाल नेहरू के प्रति असीम लगाव नहीं होता तो देश के पहले प्रधानमंत्री सरदार पटेल होते। सरदार पटेल स्वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने। भारत के राजनैतिक एकीकरण में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता के अदभुत शिल्पी थे जिनके ह्रदय में भारत बसता था। वास्तव में वे भारतीय जनमानस की आत्मा थे। मोदी ने 2018 में लौह पुरुष सरदार पटेल की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा के रूप में स्टैचू ऑफ यूनिटी को देश को समर्पित कर उनकी ख्याति को जन जन तक पहुंचाने का ऐतिहासिक कार्य किया। यह स्थल आज गुजरात और देश के सबसे बड़े पर्यटन स्थलों में से एक बन गया है और अब तक करोड़ों पर्यटकों को आकर्षित कर चुका है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के एक छोटे से गाँव नाडियाड में हुआ था। स्वतंत्रता की लड़ाई में उनका महत्वपूर्ण योगदान था, जिसके कारण उन्हें भारत का लौह पुरुष भी कहा जाता है। गरीब परिवार से आते थे, इसलिए शायद उनके मन में देश के गरीबों के लिए दर्द था। वल्लभ भाई वकील बनना चाहते थे। उन्होंने अपने एक परिचित वकील से पुस्तकें उधार ली और घर पर अध्यन आरम्भ कर दिया। समय-समय पर उन्होंने अदालतों के कार्यवाही में भी भाग लिया और वकीलों के तर्कों को ध्यान से सुना। तत्पश्चात वल्लभ भाई ने वकालत की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण कर की। सरदार पटेल ने गोधरा में अपनी वकालत शुरू की और जल्द ही उनकी वकालत चल पड़ी। अपने मित्रों के आग्रह पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और उसमे विजयी हुए। सरदार पटेल गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से काफी प्रभावित थे। 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया जिससे पुरे गुजरात में आन्दोलन और तीव्र हो गया और ब्रिटिश सरकार गाँधी और पटेल को रिहा करने पर मजबूर हो गयी। इसके बाद उन्हें मुंबई में एक बार फिर गिरफ्तार किया गया। 1931 में गांधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर करने के पश्चात सरदार पटेल को जेल से रिहा किया गया और कराची में 1931 सत्र के लिए उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। लंदन में गोलमेज सम्मेलन की विफलता पर गांधीजी और सरदार पटेल को जनवरी 1932 में गिरफ्तार कर लिया गया और येरवदा की सेंट्रल जेल में कैद किया गया। कारावास की इस अवधि के दौरान सरदार पटेल और महात्मा गांधी एक दूसरे के करीब आये और दोनों के बीच में स्नेह, भरोसे और स्पष्टवादिता का रिस्ता बना। अंततः जुलाई 1934 में सरदार पटेल को रिहा किया गया। अगस्त 1942 में कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन आरम्भ किया। सरकार ने वल्लभ भाई पटेल सहित कांग्रेस के सारे विशिष्ट नेताओ को कारावास में डाल दिया।
आजादी से पहले भारत में दो तरह का शासन था। भारत का एक हिस्सा वो था जिसपर अंग्रेजों का सीधा शासन था जबकि देश का बाकी हिस्सा 562 से ज्यादा रियासतों और रजवाड़ों के रूप में था, जहां अंग्रेजों के अधीन राजाओं और नवाबों का शासन था। भारत को विभाजित रखने की चाल के तहत अंग्रेजों ने बड़ी चालाकी से आजादी के समझौते में इन रजवाड़ों के लिए दो विकल्प रखवा दिए थे। पहला विकल्प भारत या पाकिस्तान में से किसी एक के साथ विलय करना था जबकि आजाद देश के रूप में वजूद में आने का था। उन्होंने 565 रियासतों के राजाओं को यह स्पष्ट कर दिया की अलग राज्य का उनका सपना असंभव है और भारतीय गणतंत्र का हिस्सा बनने में ही उनकी भलाई है। इसके बाद उन्होंने बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता के साथ छोटी रियासतों को संगठित किया। उनके इस पहल में रियासतों की जनता भी उनके साथ थी। उन्होंने हैदराबाद के निजाम और जूनागढ़ के नवाब को काबू में किया जो प्रारम्भ में भारत से नहीं जुड़ना चाहते थे। उन्होंने एक बिखरे हुए देश को बिना किसी रक्तपात के संगठित कर दिया। अपने इस विशाल कार्य की उपलब्धि के लिए सरदार पटेल को लौह पुरुष का खिताब मिला।
सरदार पटेल का देहांत 15 दिसम्बर 1950 को ह्रदय की गति रुक जाने के कारण हुआ। देश के प्रति उनकी सेवाओं के लिए सरदार पटेल को 1991 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

-बाल मुकुन्द ओझा

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