प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जमकर तारीफ करने से संघ विरोधी हक्के बक्के रह गए है। मौका था स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से मोदी के सम्बोधन का। ऐसा पहली बार हुआ जब मोदी ने आज़ादी के मुख्य समारोह में संघ के सौ सालों की उपलब्धियों की खुले मन से सराहना की। मोदी ने कहा कि सेवा, समर्पण, संगठन और अप्रतिम अनुशासन इस संगठन की पहचान रही हैं। मोदी ने कहा संघ दुनिया का सबसे बड़ा गैर सरकारी संगठन (NGO) है और राष्ट्र निर्माण के काम में जुटा है। संघ की तारीफ से विरोधी हक्के बक्के रह गए है। उन्होंने इसे संविधान और तिरंगे का अपमान बताया। सियासी क्षेत्रों में कहा जा रहा है भाजपा और संघ के मध्य दूरी की जो अफवाहें फैलाई जा रही थी, उसपर अब पूरी तरह विराम लग गया है। ऐसा समझा जाता है कि मोदी के भाषण के बाद भाजपा को नया अध्यक्ष शीघ्र मिलने की संभावना है। इसके साथ ही उपराष्ट्रपति पद के लिए फैली भ्रांतियां भी दूर होंगी। गौरतलब है पिछले कुछ अर्से से यह भ्रान्ति फैलाई जा रही थी कि भाजपा और संघ के मध्य मतभेदों की खाई उत्पन्न हो गई है और संघ मोदी के पैर कतरने की तैयारी कर रहा है। मगर मोदी के भाषण से स्पष्ट है मोदी और संघ एक ही सिक्के के दो पहलू है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने विजयादशमी के दिन 1925 में की थी और इस वर्ष इसका शताब्दी वर्ष है। आज देश भर के 922 जिलों, 6597 खंडों और 27,720 मंडलों में संघ की 83 हजार से अधिक शाखाएं हैं। यह विश्व का सबसे विशाल संगठन है। समाज के हर क्षेत्र में संघ की प्रेरणा से विभिन्न संगठन चल रहे हैं जो राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू समाज को संगठित करने में अपना योगदान दे रहे हैं।
संघ के विरोधियों ने तीन बार 1948 1975 व 1992 में इस पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन तीनों बार संघ पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरा। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अनेक निर्णयों में माना है कि संघ एक सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन है। आजादी के बाद से ही कांग्रेस के निशाने पर रहा है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। लाख चेष्टा के बावजूद कांग्रेस संघ को समाप्त करना तो दूर हाशिये पर लाने में सफल नहीं हुआ। संघ को खत्म करने के चक्कर में खुद कांग्रेस अपना वजूद समाप्त करने की ओर अग्रसर है। बापू की हत्या के आरोप सहित कई बार प्रतिबन्ध की मार झेल चुका यह संगठन आज भी लोगों के दिलों में बसा है और यही कारण है की इसका एक स्वयं सेवक प्रधान मंत्री की कुर्सी पर काबिज है और अनेक स्वयं सेवक राज्यों के मुख्यमंत्री है। संघ सांप्रदायिक है या देशभक्त यह दंश आज भी सियासत पाले हुए है मगर यह सच है की देश की बहुसंख्यक जनता के दिलों में संघ अपना स्थान बना चुका है। समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया के बाद जयप्रकाश नारायण अकेले व्यक्ति हैं जिन्होंने आरएसएस को देश की मुख्यधारा में वैधता दिलाने और ‘गांधी के हत्यारे’ की छवि से बाहर निकालने में सबसे अहम भूमिका निभाई। बाद में यही कार्य जॉर्ज फर्नांडीज ने किया। उल्लेखनीय है लोकसभा चुनावों में संघ के स्वयंसेवक चुनावी गतिविधियों से दूर रहे जिसका खामियाज़ा अन्तोगत्वा भाजपा को भुगतना पड़ा। हरियाणा चुनाव में संघ ने अपनी रणनीतिबदली और संघ के कार्यकर्ताओं ने घर घर जाकर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया जिससे कांग्रेस जीती हुई बाज़ी हार गई। इसी भांति महाराष्ट्र में संघ के कार्यकर्ताओं ने अपना सक्रीय समर्थन भाजपा को दिया और भाजपा भगवा झंडा फहराने में सफल हुई। देश की राजधानी दिल्ली को आम आदमी पार्टी के शिकंजे से मुक्त कराने में भी संघ ने अपनी पूरी ताकत झोंकी जिससे भाजपा को अपने विजय अभियान में जोरदार सफलता मिली। तीनों ही चुनावों में संघ ने बिना शोर शराबे अपना काम बहुत चतुराई से किया। कहा जाता है सियासत में जो दिखता है, वो होता नहीं, और जो होता है, वो दिखता नहीं'' यह बात पूरी तरह संघ पर लागू होती है। विरोधी समझते इससे पहले ही संघ ने अपना काम कर दिया। संघ ने कई बार यह स्पष्ट किया है कि उनका संगठन राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं लेता मगर कार्यकर्त्ता अपना समर्थन भाजपा को देते है तो उसे कोई एतराज़ नहीं है। यही हुआ लोकसभा चुनावों में जो कार्यकर्त्ता सक्रीय नहीं थे उन्होंने विधानसभा सभा चुनावों में चुपचाप अपना करिश्मा दिखा दिया। संघ के एक विचारक का कहना था महाराष्ट्र और दिल्ली में कुछ राजनैतिक दल लगातार संघ के विरोध में अनाप शनाप बोल रहे थे जिसके विरोधस्वरूप संघ के कार्यकर्ताओं ने अपने विरोधियों को उनकी औकात दिखा दी।
-बाल मुकुन्द ओझा