भारत की राजधानी दिल्ली में एक ऐसी जगह है जहाँ बंगाल की परंपरा, संस्कृति और देवी-भक्ति की गूंज अपने पूर्ण वैभव के साथ सुनाई देती है। यह जगह है चित्तरंजन पार्क (सी.आर. पार्क) और इसका आध्यात्मिक केंद्र है काली मंदिर। यह मंदिर केवल देवी उपासना का स्थल नहीं, बल्कि दिल्ली में बसे बंगाली समाज की सांस्कृतिक चेतना, पहचान और सामुदायिक एकता का प्रतीक है।
सी.आर. पार्क को अक्सर ‘मिनी कोलकाता’ कहा जाता है। इसकी गलियों में दुर्गा पूजा की तैयारियाँ, रसगुल्ले और मिष्टी दोई की मिठास और रवींद्र संगीत की धुनें यह अहसास कराती हैं कि आप दिल्ली में होकर भी बंगाल के किसी हिस्से में हैं। इस सांस्कृतिक आत्मा का केंद्र है काली मंदिर, जो न केवल धार्मिक श्रद्धा का स्थल है, बल्कि प्रवासी बंगाली समुदाय की सामाजिक स्मृति और सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव का जीवंत प्रतीक भी है।
सी.आर. पार्क काली मंदिर की स्थापना 1970 के दशक में बंगाली समाज के सामूहिक प्रयासों से हुई थी। दिल्ली में बसे प्रवासी बंगाली परिवारों ने अपने देवी-भक्ति के पारंपरिक केंद्र की कमी को महसूस किया और उसी के समाधान के रूप में इस मंदिर की नींव रखी। आज यह मंदिर न केवल बंगाली समाज बल्कि समूचे दिल्लीवासियों के लिए आस्था और आध्यात्मिकता का प्रमुख केंद्र बन चुका है।
मंदिर परिसर का वास्तुशिल्प पारंपरिक बंगाली मंदिरों की शैली को प्रतिबिंबित करता है। ऊँचे शिखर, लाल ईंटों की सजावट और कलात्मक नक्काशी इसे विशिष्ट बनाती है। देवी काली की भव्य प्रतिमा यहाँ की मुख्य आस्था का केंद्र है, जो अपने उग्र रूप में भी भक्तों को मातृत्व और सुरक्षा का सन्देश देती हैं।
काली मंदिर केवल पूजा-पाठ का स्थल नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक केंद्र भी है। पूरे वर्ष यहाँ अनेक पर्व-त्योहार मनाए जाते हैं, लेकिन दुर्गा पूजा, काली पूजा और दीपावली के समय मंदिर परिसर का दृश्य अलौकिक हो उठता है।
शारदीय नवरात्र में यहाँ आयोजित दुर्गा पूजा न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि दिल्ली की सांस्कृतिक कैलेंडर का भी प्रमुख आयोजन बन चुकी है। भव्य प्रतिमाएँ, पारंपरिक ढाक की धुनें, नृत्य-नाटिकाएँ और भोग प्रसाद की सुगंध एक अद्भुत बंगाली परिवेश रच देती हैं। साथ ही कार्तिक अमावस्या पर आयोजित काली पूजा में रात भर मंत्रोच्चार, आरती और दीपों की ज्योति से पूरा परिसर आलोकित रहता है।
काली मंदिर का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी अत्यंत गहरा है। यहाँ वर्ष भर भाषण, संगीत समारोह, नाट्य प्रस्तुतियाँ, और साहित्यिक गोष्ठियाँ आयोजित होती हैं। ये कार्यक्रम दिल्ली में रह रहे बंगाली समुदाय के लिए अपनी परंपराओं को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का माध्यम बनते हैं। इसके अलावा मंदिर प्रबंधन समाजसेवा और शिक्षा के क्षेत्र में भी सक्रिय है। समय-समय पर स्वास्थ्य शिविर, शिक्षण कार्यक्रम और सांस्कृतिक कार्यशालाएँ आयोजित की जाती हैं, जो इसे केवल आस्था का ही नहीं, बल्कि सामाजिक विकास का भी केंद्र बनाती हैं।