पापों से मुक्ति और आत्मिक शुद्धि का पर्व है नरक चतुर्दशी

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सनातन धर्म में नरक चतुर्दशी का त्योहार बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। दीपावली से एक दिन पहले नरक चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 19 अक्टूबर को मनाया जाएगा। नरक चतुर्दशी कई नामों से जानी जाती है। प्रत्येक नाम एक विशेष अनुष्ठान तथा महत्व को दर्शाता है। यथा छोटी दीपावली, रूप चौदस, रूप चतुर्दशी, यम चतुर्दशी, और काली चौदस। यह दिन हमें नरक के भय से मुक्ति, पापों के निवारण और आत्मिक शुद्धता का मार्ग दिखाता है। चतुर्दशी तिथि 19 अक्टूबर को दोपहर 1:51 बजे से शुरू होकर 20 अक्टूबर को दोपहर 3:44 बजे तक रहेगी। इस शुभ अवसर पर ऐन्द्र योग, सर्वार्थसिद्धि योग और सर्वाअमृत योग का विशेष संयोग भी बन रहा है, जो इसे और भी फलदायी बनाता है। इस दिन रूप निखारा जाता है। इसलिए इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। इसके लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने की परंपरा है। देश में पंच दिवसीय दीपावली पर्व की श्रृंखला में नरक चतुर्दशी का त्योहार लोग बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाते है। नरक चतुर्दशी बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। पौराणिक मान्यता है नरक चतुर्दशी के दिन घरों में माता लक्ष्मी का आगमन होता है और दरिद्रता दूर होती है। नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम होता है और सकारात्मकता ऊर्जा का संचार होता है। विद्वानों के अनुसार इस दिन पर भगवान कृष्ण की पूजा- अर्चना करनी चाहिए। इस दिन को हमारे देश में छोटी दिवाली के रूप में भी मनाते हैं। मान्यता है नरक चतुर्दर्शी पर घर को रोशनी, फूलों और अन्य सजावटी सामग्री से सजाना चाहिए। इस अवसर पर भगवान कृष्ण का आशीर्वाद और शाम के समय अपने घर में 11 मिट्टी के दीपक जलाएं। नरक चतुर्दशी के दिन घरों में दीपक जलाने की परंपरा है। नरक चतुर्दशी पर मिट्टी का चौमुखी दीपक जलाने का विशेष महत्व बताया गया है। इस दीपक में सरसों का तेल डालकर चारों दिशाओं की ओर मुख करके चार बत्तियां लगाई जाती हैं। इसे ‘यम दीपक’ कहा जाता है, जो मृत्यु के देवता यमराज को प्रसन्न करता है। दीपक को घर के बाहर मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर रखकर जलाएं, क्योंकि दक्षिण दिशा यमराज की मानी जाती है। पंचांग के अनुसार इस दिन यमराज के नाम का दीया जलाया जाता है। बताया जाता है। इस दिन यम देव की पूजा करने से अकाल मृत्यु का डर खत्म होता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करके यम तर्पण एवं शाम के समय दीप दान का बड़ा महत्व है। नरक चतुर्दशी के पर्व को मनाए जाने के पीछे एक बड़ी ही रोचक कथा जुड़ी हुई है। पौराणिक मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में नरकासुर नाम के राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवताओं और ऋषि-मुनियों के साथ 16 हजार एक सौ सुंदर राजकुमारियों को भी बंधक बना लिया था। इसके बाद नरकासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था, इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार एक सौ कन्याओं को आजाद कराया। कैद से आजाद करने के बाद समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया। एक अन्य कथा के अनुसार, इस दिन यमराज की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि वे मृत्यु के देवता हैं और सभी प्राणियों के कर्मों का हिसाब रखते हैं। शास्त्रों में उल्लेख है कि यमराज की पूजा करने से व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता और वह अपने पापों से मुक्त होकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। नरकासुर से मुक्ति पाने की खुशी में देवगण व पृथ्वीवासी बहुत आनंदित हुए। कहा जाता है कि तभी से इस पर्व को मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई।

-बाल मुकुन्द ओझा

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