मोबाइल की लत बच्चों के स्वास्थ्य के साथ पढाई के लिए भी खतरा

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आज घर घर में बच्चे और युवा धड़ल्ले से मोबाइल पर स्क्रीनिंग कर रहे है। उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं है की यह उनके स्वास्थ्य और पढ़ाई के लिए कितना खतरनाक है। मीडिया में युवा पीढ़ी को मोबाइल लत के खतरे से लगातार आगाह किया जा रहा है। अनेक युवा इसके दुष्परिणामों के शिकार होकर अस्पतालों में अवसाद का इलाज़ करा रहे है। सेंसर टावर की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अपने देश में गत वर्ष मोबाइल पर 1.12 ट्रिलियन घंटे स्क्रीनिंग की गई जो दुनियाभर में सर्वाधिक आंकी गई है। इससे पता चलता है 18 वर्ष की आयु सीमा के 40 करोड़ बच्चे में से हर तीसरा बच्चा मोबाइल अवसाद का शिकार है, जिनकी संख्या 13 करोड़ से अधिक बताई जा रही है। इसी भांति एक अन्य नई रिसर्च के मुताबिक मोबाइल, टैबलेट और लैपटॉप जैसे गैजेट्स न केवल बच्चों के स्वास्थ्य अपितु उनके शैक्षिक जीवन के लिए भी खतरा बन रहे है। टेक्नोलॉजी के इस दौर में बच्चे मोबाइल फोन, टैबलेट से ही अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। खासकर कोविड में ऑनलाइन पढ़ाई के बाद उनके बीच स्क्रीन टाइम बहुत बढ़ा है। पांच हजार से ज्यादा कनाडाई बच्चों पर साल 2008 से 2023 तक चली एक रिसर्च बताती हैं कि बढ़ते स्क्रीन टाइम के कारण बच्चों में बेसिक मैथ्स और पढ़ने की समझ ठीक से विकसित नहीं हो पा रही है। यहां तक कि स्क्रीन टाइम की वजह से बच्चों के मार्क्स में 10 फीसदी तक कमी आई है। एक अन्य रिपोर्ट में यह सामने आया है कि 73 प्रतिशत स्कूली बच्चे अश्लील सामग्री देखते हैं। वहीं, 80 प्रतिशत बच्चे रोज़ाना सोशल मीडिया पर कम से कम 2 घंटे बिताते हैं। इसका सीधा असर उनकी पढ़ाई, सोचने-समझने की क्षमता और व्यवहार पर पड़ रहा है।मोबाइल आपका दोस्त है या दुश्मन। बिना विलंब किए इस पर गहनता से मंथन की जरुरत है। आजकल मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों को इंटरनेट एडिक्शन की तरफ ले जा रहा है। एक स्टडी रिपोर्ट में एक बार फिर मोबाइल के खतरे से सावचेत किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है पैरेंट्स बिना सोचे-समझे सिर्फ दो-ढाई साल के बच्चों के हाथ में मोबाइल थमा देते हैं। इसके बाद बिना मोबाइल यूज किए बच्चा खाना तक नहीं खाता है। हालांकि इंफॉर्मेशन, टेक्नॉलोजी और एआई के दौर में मोबाइल का इस्तेमाल जरूरी है। लेकिन छोटे-छोटे बच्चों को मोबाइल देने की क्या जरूरत है? अगर आप भी मोबाइल एडिक्शन को सीरियसली नहीं ले रहे हैं, तो आपको बता दें कि सेलफोन आपके बच्चों का सबसे बड़ा दुश्मन बन रहा है। कच्ची उम्र में बच्चों को डिजिटल डिमेंशिया जैसी घातक बीमारी हो सकती है। ब्रिटेन में हुई स्टडी के मुताबिक दिन में 4 घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम से वैस्कुलर डिमेंशिया और अल्जाइमर का जोखिम बढ़ जाता है। फोन पर घंटो स्क्रॉल करने पर ढेरों फोटोज, एप्स, वीडियोज सामने आते हैं जिससे आपके दिमाग के लिए सब कुछ याद रखना मुश्किल हो जाता है। परिणाम स्वरूप आपकी याद्दाश्त, कॉन्संट्रेशन और सीखने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है।
स्क्रीन टाइम ज्यादा होने का सबसे पहला असर बच्चों की आंखों की रोशनी पर पड़ रहा है। स्क्रीन को नजदीक और एकटक देखने से आंखें ड्राई होने लगती हैं यही हालात रहने पर आंखों की रोशनी कम होने लगती है। मोबाइल बच्चों का दोस्त है या दुश्मन। बिना विलंब किए अभिभावकों को इस पर गहनता से मंथन की जरुरत है। आजकल मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों को इंटरनेट एडिक्शन की तरफ ले जा रहा है। इस तरह के एडिक्शन से मानसिक बीमारियां पैदा होती हैं और ऐसे में बच्चे कोई न कोई गलत कदम उठा लेते हैं। आजकल के बच्चे इंटरनेट लवर हो गए हैं। इनका बचपन रचनात्मक कार्यों की जगह डेटा के जंगल में गुम हो रहा है। पिछले कई सालों में सूचना तकनीक ने जिस तरह से तरक्की की है, इसने मानव जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है बल्कि एक तरह से इसने जीवनशैली को ही बदल डाला है। बच्चे और युवा एक पल भी स्मार्टफोन से खुद को अलग रखना गंवारा नहीं समझते। इनमें हर समय एक तरह का नशा सा सवार रहता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर कहा गया है। जब से इंटरनेट हमारे जीवन में आया है तबसे बच्चे से बुजुर्ग तक आभासी दुनियां में खो गए है। हम यहाँ बचपन की बात करना चाहते है। देखा जाता है पांच साल का बच्चा भी आँख खोलते ही मोबाइल पर लपकता है। पहले बड़े इसे अपने काम के लिए करते थे। अब बच्चे भी इंटरनेट के शौकीन होते जा रहे हैं। बाजार ने उनके लिए भी इंटरनेट पर इतना कुछ दे दिया है कि वह पढ़ने के अलावा बहुत कुछ इंटरनेट पर करते रहे हैं। पेरेंट्स को बच्चों की ऐसी गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए और समय रहते उनकी ऐसी आदत को पॉजेटिव तरीके से दूर करना चाहिए।

-बाल मुकुन्द ओझा

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