पहले सैम पित्रोदा और फिर मणिशंकर अय्यर ने विवादित बयान देकर चुनाव के मैदान में अपनी ही पार्टी (कांग्रेस पार्टी) की फजीहत करा दी हैं। कांग्रेस के इन बयानवीरों ने एक बार फिर ऐसा बयान दिया है, जिससे कांग्रेस बैकफुट पर आ गई है। राजनीति में शुचिता की दुहाई देने वाले नेता खुद बयानवीर होकर पहले अपनी पार्टी और फिर देश का बेड़ा गर्क करने की होड़ में जुट गए है।
जनता ने इनमें से बहुत से नेताओं को चुनावी पटखनी देकर इनकी औकात बता दी तो कुछ की चुनावी बेतरणी पार लगाकर गले लगा लिया। देश को अमूमन हर साल कोई न कोई चुनाव का सामना करना ही पड़ता है । जैसे ही चुनाव आते है नेताओं के बांछे खिल जाती है । गंदे बोलों से चुनावी बिसात बिछ जाती है।
पिछले दो दशक से गंदे और विवादित बोल बोले जा रहे है। नेताओं के बयानों से गाहे बगाहे राजनीति की मर्यादाएं भंग होती रहती है। अमर्यादित बयानों की जैसे झड़ी लग जाती है। राजनीति में बयानबाजी का स्तर इस तरह नीचे गिरता जा रहा है उसे देखकर लगता है हमारा लोकतंत्र तार तार हो रहा है।
देश में दिग्विजय सिंह, संजय राउत, लालू यादव जैसे दर्जनों नेता है जो गाहे बगाहे अमर्यादित बयान देकर सुर्ख़ियों में बने रहते है। ये नेता मोदी पर विवादित बयान देने के लिए कुख्यात है। कभी मोदी को मौत का सौदागर बताते है तो कभी जमीन में गाड़ देने की धमकी देते है। बयानवीरों पर मोदी के बयान से देश की सियासत एक बार फिर गरमा गयी है।
लोकसभा चुनाव में बयानवीरों के विवादित बयानों ने देश को शर्मसार कर दिया था। इन दिनों आपत्तिजनक और विवादित बयानों को लेकर हंगामा मचा हुआ है। सियासत में विवादास्पद बयान को नेता भले अपने पॉपुलर होने का जरिया मानें, लेकिन ऐसे बयान राजनीति की स्वस्थ परंपरा के लिए ठीक नहीं होते।
यह बेहद दुखद है कि पिछले कुछ सालों से भारत में राजनीतिक-वैचारिक पतन तो हुआ ही है, साथ ही राजनीति की भाषा स्तरहीन और गंदी हो गई है। हमारे माननीय नेता आजकल अक्सर ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। देश के नामी-गिरामी नेता और मंत्री भी मौके-बेमौके कुछ न कुछ ऐसा बोल ही देते हैं, जिसे सुनकर कान बंद करने का जी करता है।
जो किसी भी हालत में लोकतान्त्रिक और सभ्य समाज के अनुकूल नहीं कही जा सकती। चुनावी सीजन में किसी नेता को चोर, लुटेरा तथा बलात्कारी बताया जा रहा था तो किसी को गधा, कुत्ता, तड़ीपार और गेंडा बताया गया। कहते है राजनीति के हमाम में सब नंगे है। यहाँ तक तो ठीक है मगर यह नंगापन हमाम से निकलकर बाजार में आजाये तो फिर भगवान ही मालिक है।
सियासत में विवादास्पद बयान को नेता भले अपने पॉपुलर होने का जरिया मानें, लेकिन ऐसे बयान राजनीति की स्वस्थ परंपरा के लिए ठीक नहीं होते। हमारे माननीय नेता आजकल अक्सर ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। देश के नामी-गिरामी नेता और मंत्री भी मौके-बेमौके कुछ न कुछ ऐसा बोल ही देते हैं, जिसे सुनकर कान बंद करने का जी करता है।
राजनीति में पिछले एक दशक से गंदे और विवादित बोल बोले जारहे है। चुनाव के बाद बयानवीरों की नयी खेफ सामने आयी वहीँ कुछ पुराने भी हाथ साफ करने से बाज नहीं आ रहे है। विवादित बयान देने में कांग्रेस और भाजपा सहित कोई भी नेता पीछे नहीं है। सब एक दूसरे पर अटैक कर उसको भी अपनी रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।
अमर्यादित बयानों की जैसे झड़ी लग गई है। राजनीति में बयानबाजी का स्तर इस तरह नीचे गिरता जा रहा है उसे देखकर लगता है हमारा लोकतंत्र तार तार हो रहा है। देश में कई नेता अपने विवादित बयानों के लिए सुर्खियों में रहे है। इनकी लम्बी सूची है।
इनमें राहुल गाँधी, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, मणिशंकर अय्यर, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, दिग्गी राजा, अखिलेश यादव, कपिल सिब्बल ,मणिशंकर अय्यर, केजरीवाल,असदुद्द्दीन ओवैसी, मायावती, ममता और शिवसेना ठाकरे गुट के नेता आदि प्रमुख है जिनके बयानों से गाहे बगाहे राजनीति की मर्यादाएं भंग होती रहती है।
ये बयानवीर मीडिया में सुरखी पाने के लिए न्यूज चैनलों के कैमरे देखते ही बहकने लगते है। आग में घी डालने में खबरिया चैनल की भूमिका भी कम जिम्मेदार नहीं है। खबरिया चैनल बयानवीरों के विवादित बोल दिखाने बंद करदे तो आधी समस्या तो स्वतः ही निपट जाएगी।
-बाल मुकुन्द ओझा