लोक नायक भगवान परशुराम का जन्मोत्सव देशभर में शुक्रवार को हर्षोल्लाष और धूमधाम से मनाया जायेगा। परशुराम अन्यायी राजतंत्र के विरुद्ध संघर्ष के योद्धा थे। इस अवसर पर शोभा यात्रा, हवन पूजन सहित धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन होगा। देशभर से मिली जानकारी के अनुसार शनिवार को समूचा देश भगवान परशुराम के जयकारे से गूंजेगा। ब्राह्म्ण जाति के कुल गुरु भगवान परशुराम की जयंती हिन्दू पंचांग के मुताबिक वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है।
इस वर्ष परशुराम जयंती 10 मई शुक्रवार को है। परशुराम जयंती मनाने की सभी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा चुका है। हिंदू मान्यता के अनुसार परशुराम जयंती पर शुभ मुहूर्त में भगवान परशुराम की साधना-अराधना करने से जीवन से जुड़े तमाम कष्ट दूर और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 10 मई 2024 को सुबह 4:17 पर शुरू होगी और अगले दिन 11 मई 2024 को प्रात: 2:50 पर इसका समापन होगा।
इस तिथि पर प्रदोष व्यापिनी में पूजा करनी चाहिए क्योंकि भगवान परशुराम का प्राकट्य काल प्रदोष काल है, इसलिए परशुराम जी की पूजा शाम को करें। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाने वाले भगवान परशुराम जी का जन्म पुर्नवसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर में पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दिये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से साहस में वृद्धि होती है और भय से मुक्ति मिलती है।
उनका जीवन हमें सदा सर्वदा अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध दृढ रहने, और संघर्ष करके विजय प्राप्त करने को प्रेरित करता है। परशुराम की गाथा अनीति, अन्याय, अत्याचार, छल-प्रपंच का संहार करने की सच्चाई वर्णित करती है जो आज भी हमारे लिए प्रासंगिक है। मान्यता है कि परशुराम का जन्म धरती पर राजाओं द्वारा किए जा रहे अधर्म, पाप का विनाश के लिए हुआ था। इसीलिए कहा जाता है कि भगवान परशुराम चिरंजीवी है।
मान्यता है कि पराक्रम के प्रतीक भगवान परशुराम का जन्म छह उच्च ग्रहों के योग में हुआ, इसलिए वह तेजस्वी, ओजस्वी और वर्चस्वी महापुरुष बने। भगवान परशुराम के बारे में देश और समाज में अनेक कहानी किस्से प्रचलित है। उन्हें क्रोधी, अहंकारी और पृथ्वी से क्षत्रियों का नामों निसान मिटाने वाले के रूप में चित्रित किया गया है।
मगर यह पूरा सत्य नहीं है। विभिन्न पौराणिक ग्रंथों और शोध पुस्तकों के अनुसार परशुराम ने अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध अपना फरसा उठाया था। उनके इस कदम से आम लोगों को राहत मिली थी। उन्होंने समाज के दीन हीन लोगों को संरक्षण दिया था। आतताइयों का वध कर शांति स्थापित की थी। इससे उन्हें समाज का व्यापक समर्थन हासिल हुआ। दरअसल वे एक जाति या समूह के नायक नहीं हो कर सर्व समाज के महानायक थे।
वे पैदा अवश्य ब्राह्मण के घर हुए थे मगर संस्कारों से समाज भूषण थे। यही कारण है कि आज परशुराम समाज के सभी वर्गों के प्रिय है। भगवान परशुराम का आदर्श चरित्र देश में आज भी प्रासंगिक है। भक्ति और शक्ति के प्रतीक परशुराम का चरित्र सत्ताधीशों को त्याग, जन कल्याण और उत्तम आचरण की शिक्षा देता है। वह शोषित पीड़ित जनमानस को उसकी शक्ति और सामर्थ्य का अहसास दिलाता है। शासकीय दमन के विरूद्ध क्रांति का शंखनाद है। सर्वहारा वर्ग के लिए अपने न्यायोचित अधिकार प्राप्त करने की प्रेरणा है। वह राजशक्ति पर लोकशक्ति का विजयघोष है।
जनता पर अत्याचार रोकने के लिये उन्होंने हिंसा का सहारा लिया और 21 बार इसका प्रायश्चित कर जीती हुई सारी धरती दान कर स्वयं ही देश निकाला लेकर महेंद्रपर्वत पर चले गए। बताया जाता है भगवान परशुराम ने जनकल्याण के लिए अपने समय में नदियों की दिशा बदल दी थी। उन्होंने अपने बल से आर्यों के शत्रुओं का भी नाश किया था। भगवान परशुराम को भागवत पुराण में सोलहवां अवतार माना गया है। अपनी घोर तपस्या के बल पर अन्याय और अत्याचार का खात्मा करने में वे सफल रहे। उन्होंने अधर्मियों, अन्यायियों व अत्याचारियों के खिलाफ शस्त्र उठाए।
बाल मुकुन्द ओझा