भगवान शंकर के द्वारा गाई जा रही ‘श्रीराम कथा’ का रस अकथनीय व संसार के समस्त रसों से परे है। जैसे मेंहदी लगाने वाले के हाथों से, सामने वाले के हाथों में मेंहदी लगती ही है, साथ में स्वयं के हाथों पर भी रंगत चढ़ जाती है। ठीक इसी प्रकार से जब भगवान शंकर द्वारा, देवी पार्वती को कथा सुनाई जा रही है, तो इसका आनंद केवल देवी पार्वती ही नहीं ले रही, भोलेनाथ भी इसमें बराबर के आनंद को बटोर रहे हैं। भोलेनाथ कहते हैं-
‘रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुख दानि।
सतसमाज सुरलाक सब को न सुनै अस जानि।।’
अर्थात श्रीराम जी की पावन कथा कामधेनु के समान है। कामधेनु क्या होती है। वास्तव में कामधेनु वह गाय है, जिसकी सेवा करने से संसार में कुछ भी ऐसा नहीं रह जाता, जो प्राप्त न किया जा सके। यहाँ गोस्वामी तुलसीदास जी एक अत्यंत ही गूढ़ तथ्य प्रगट कर रहे हैं। ज्ञान दृष्टि से देखने पर पायेंगे, कि ब्रह्म ज्ञान ही कामधेनु है। कामधेनु कोई बाहरी मास के लोथड़े से बना, जीव रुपी ढ़ाँचा नहीं है। अपितु साक्षात ईश्वरीय ज्ञान है। जिसे पाने के पश्चात हमें समस्त प्रकार के सुख प्राप्त हो जाते हैं। ऐसे संत महात्मा जो इस पावन कथा को जन-जन तब पहुँचाते हैं, वे सतपुरुष कोई साधारण मानव नहीं हुआ करते। अपितु साक्षात देवी देवता ही हुआ करते हैं। और यह सब मोती निकलते तभी हैं, जब वहाँ श्रीराम जी की दिव्य कथा का आनंद बरस रहा होता है।
भगवान शंकर श्रीराम कथा को एक और उदाहरण के साथ व्याख्यान करते हैं-
‘रामकथा सुंदर कर तारी।
संसय बिहग उड़ावनिहारी।।
रामकथा कलि बिटप कुठारी।
सादर सुनु गिरिराजकुमारी।।’
अर्थात श्रीराम कथा एक सुंदर ताली के समान है। ताली शब्द सुनकर, साधारण मानव सोच में पड़ सकता है, कि एक ताली भला श्रीराम जी की कथा के समान कैसे हो सकती है? तब गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, कि ताली तो तब भी बजती है, जब कोई किसी पर हँसता है, उसका उपहास करता है। किंतु ऐसी ताली का भला क्या लाभ, जो किसी के सम्मान को माटी में मिलने पर बजे? किंतु आपने खेत में, एक किसान को भी ताली बजाते देखा होगा। किसान किसी के उपहास में ताली नहीं बजाता। अपितु उन पक्षियों को उड़ाने पर ताली मारता है, जो पक्षी उसके खेतों को उजाड़ने पर आमादा होते हैं। प्रभु की भक्ति भी साधक रुपी किसान का खेत है। यह खेत तब तक हरा भरा व सुंदर रहता है, जब तक उसमें संशय रुपी पक्षी द्वारा उजाड़ा नहीं पड़ा है। संशय रुपी पक्षी, भक्ति रुपी खेत को बसता हुआ कभी नहीं देख सकते। इन्हें जितनी शीघ्रता से भगाया जा सके, भगा देना चाहिए। इस महान प्रयोजन के सिद्ध होने में, श्रीराम कथा से बढ़कर कोई ओर साधन हो ही नहीं सकता। फिर आपने अकसरा यह सुना होगा, कि कलयुग से कोई नहीं बच सकता। जिस घर में कलयुग के वृक्ष का वास हो जाता है, वहाँ सब कुछ नष्ट हो जाता है। ऐसा कलयुगी पेड़, घर में बसे जीवों की आयु खा जाता है। बसंत को पतझड़ में बदल देता है। इस खुँखार कलयुग के वृक्ष को जितनी शीघ्रता से काटा जा सकता है, उसे काट देना चाहिए। किंतु समस्या यह है, कि वृक्ष को काटने के लिए तो कुल्हाड़ी की आवश्यक्ता होती है। ओर वह कुल्हाड़ी है, भगवान श्रीराम जी की पावन कथा। जहाँ श्रीराम जी की कथा का वाचन व रसपान सदा चलता है, वहाँ पर कलयुग के वृक्ष का फलना संभव ही नहीं है। उस वृक्ष को उखड़ना ही उखड़ना है।