भक्तों की पुकार पर आए भगवान, नरसिंह और वामन अवतार की अद्भुत कथाएं जानिए

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जब भी पृथ्वी पर अधर्म बढ़ा और तब-तब जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया है। जब भी किसी भक्त पर संकट आता है, तो भगवान उसकी रक्षा के लिए स्वयं अवतार लेते हैं। भगवान श्रीहरि विष्णु ने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध करके उसको अभय प्रदान किया। वहीं त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। वामन देव को भगवान विष्णु का पांचवां अवतार माना जाता है। इससे पहले भगवान विष्णु ने मत्स्य, कूर्म, वाराह और नरसिंह अवतार लिया है। तो आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको नरसिंह और वाराह अवतार की कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं।

नरसिंह अवतार की कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक बहुत समय पहले एक ऋषि हुआ करते थे। उनका नाम कश्यप था और उनकी पत्नी का नाम दिति था। ऋषि कश्यप और दिति के दो पुत्र हुए, जिनमे से एक का नाम ‘हिरण्याक्ष’ और ‘हिरण्यकश्यप’ था। भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर दिया था। अपने भाई के वध से दुखी होकर हिरण्यकश्यप ने अपने भाई की मृ्त्यु का बदला लेने की ठानी। फिर हजारों वर्षों तक घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से खुश होकर हिरण्यकश्यप ने ब्रह्माजी से वरदान लिया कि उसको कोई न घर में मार सके और न कोई बाहर। न अस्त्र से वध होगा और न शस्त्र से, न दिन में मरेगा और न रात में मरेगा। न मनुष्य से मरेगा और न पशु से, न आकाश में और न पृथ्वी में मरेगा। ब्रह्मा जी से वरदान पाकर हिरण्यकश्यप ने इंद्र से युद्ध करके स्वर्ग पर अधिकार जमा लिया। वहीं सभी लोकों पर उस असुर का राज हो गया। हिरण्यकश्यप इतना अधिक अहंकारी हो गया कि उसने अपनी प्रजा से खुद को भगवान की तरह पूजे जाने का आदेश दे दिया। वहीं उसका आदेश न मानने वाला सजा का हकदार होता था। इसके बाद उस असुर के अत्याचार की कोई सीमा नहीं रही और उसमें प्रभु के भक्तों पर अत्याचार करना शुरूकर दिया। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद असुर था, लेकिन वह भगवान विष्णु का भक्त था। हिरण्यकश्यप को अपने पुत्र की यह बात बिलकुल भी पसंद नहीं थी। लेकिन प्रह्लाद अपने पिता से विपरीत था। विष्णु भक्त होने के कारण हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद का कई बार वध करने का प्रयास किया, लेकिन वह हर बार असफल रहा। जब हिरण्यकश्यप के अत्याचार की सभी सीमाएं पार हो गईं, तो भ्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया। इसके बाद भगवान नरसिंह ने दिन और रात के बीच के वक्त में आधे मनुष्य और आधे शेर का रूप धारण किया। भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को मुख्य दरवाजे के बीच अपने पैरों पर लिटा दिया। शेर जैसे अपने तेज नाखूनों से हिरण्यकश्यप का पेट फाड़ दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की।

वामन अवतार की पौराणिक कथा
दैत्यराज बलि बेहद शक्तिशाली और बलशाली राजा था, उसने अपने बल पर तीनों लोकों पर कब्जा जमा लिया था। भले ही राजा बलि अत्यंत क्रूर और घमंडी था। लेकिन वह भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था। वह खूब दान-पुण्य करता था और इस वजह से उसने इंद्रदेव की जगह खुद को स्वर्ग का स्वामी बना दिया। जैसे ही बलि स्वर्ग का स्वामी बना तो उसने अपने पद और बल का गलत इस्तेमाल करना शुरू किया और देवी-देवताओं को परेशान करना शुरू किया। बलि के अत्याचार से देवी-देवता परेशान हो गए और सभी ने भगवान विष्णु से मदद की गुहार लगाई। तब श्रीहरि ने सभी को यह आश्वासन दिया कि वह राजा बलि के घमंड को तोड़ेंगे और उसके कब्जे से तीनों लोगों को मुक्त कराएंगे। इस वचन को निभाने के लिए भगवान विष्णु ने त्रेतायुग में धरती पर भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मां अदिति और ऋषि कश्यप के पुत्र के रूप में जन्म लिया। इसको ही भगवान विष्णु का वामन अवतार कहा जाता है। भगवान विष्णु एक बौने या बटुक ब्राह्मण का रूप धारण करके राजा बलि के पास पहुंचे। इस रूप में उनके एक हाथ में लकड़ी और दूसरे में छाता था। वामन देव ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि अपने वचनबद्धता और दान देने के लिए जाने जाते थे। इसलिए असुर गुरु शुक्रचार्य ने राजा बलि से किसी भी तरह का कोई वचन देने की चेतावनी दी। लेकिन इसके बाद भी राजा बलि ने बटुक ब्राह्मण को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया। इसके बाद भगवान वामन देव ने विशाल रूप धारण करके अपने एक पग में पूरी धरती नाप ली और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। फिर जब तीसरे पग के लिए कुछ नहीं बचा तो राजा बलि ने अपना सिर आगे कर लिया। इस तरह से भगवान वामन ने राजा बलि का घमंड तोड़ दिया। लेकिन राजा बलि की वचनबद्धता से भगवान वामन अति प्रसन्न हुए और उसको पाताल का राजा बना दिया। जैसे ही वामन देव ने राजा बलि के सिर पर पैर रखा, तो वह तुरंत पाताल चले गए। वहीं भगवान विष्णु की कृपा से राजा बलि ने पाताल लोक में अनंतकाल तक राज किया।

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