जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने आतंकवाद और अलगाववाद की राह पर चलने वालों को करारा सबक सिखाया है। तमाम अलगाववादी, आतंक के आरोपों का सामना कर रहे लोग तथा आतंकवादियों के रिश्तेदार चुनाव मैदान में उतरे थे लेकिन जनता ने सबको घर बैठा दिया। यही नहीं, जनता ने आतंक का शिकार बने परिवार की सदस्या को इस चुनाव में जीत दिलाकर यह भी दर्शा दिया है कि आतंक के पीड़ितों के साथ वह पूरी दृढ़ता के साथ खड़ी है। उम्मीद है कि अलगाववादी विचारधारा पर चलने वाले उम्मीदवारों को विधानसभा चुनावों में मिली बड़ी हार उन्हें देश के साथ चलने की सीख देगी।
हम आपको बता दें कि अलगाववाद की राह पर चलने वाले प्रमुख लोगों में इंजीनियर रशीद के नेतृत्व वाली अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) और जमात-ए-इस्लामी के उम्मीदवार भी शामिल हैं, जो चुनावों में कोई बड़ा प्रभाव डालने में विफल रहे। कुलगाम से जमात-ए-इस्लामी के ‘प्रॉक्सी’ उम्मीदवार सयार अहमद रेशी और लंगेट से चुनाव लड़ रहे शेख अब्दुल रशीद उर्फ इंजीनियर रशीद के भाई खुर्शीद अहमद शेख का प्रदर्शन ही थोड़ा बहुत ठीकठाक रहा। हालांकि कुलगाम में सयार अहमद रेशी को हार का सामना करना पड़ा, वहीं खुर्शीद अहमद शेख ने लंगेट से जीत हासिल कर ली। लेकिन इन समूहों से जुड़े अधिकतर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई, जो मतदाताओं की स्पष्ट अस्वीकृति को दर्शाता है। इंजीनियर रशीद की एआईपी ने 44 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। हालांकि कई की जमानत भी जब्त हो गई। जमात-ए-इस्लामी ने चार उम्मीदवार उतारे थे और चार अन्य का समर्थन किया था, लेकिन रेशी के अलावा, सभी न्यूनतम समर्थन भी हासिल करने में असफल रहे।

अलगाववादियों, अफजल के भाई और आजादी चाचा जैसे आतंकी समर्थकों को कश्मीरी जनता ने चुनावों में करारा सबक सिखाया है
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