जोधपुर। गर्म दोपहर की धूप थी, मगर राजसागर गांव के पंचायत मुख्यालय में कुछ चेहरों पर उम्मीद की ठंडी छांव थी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय संबल पखवाड़ा के अंतर्गत आयोजित शिविर में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसकी फाइलें बीते चार दशकों से बंद पड़ी थीं — खातेदार मूलाराम (पुत्र भीखाराम), जाति मेघवाल, निवासी राजसागर का इंतकाल मामला।हुआ यूं था कि…. मूलाराम जी का निधन वर्ष 1980 में हो गया था। उनके इकलौते पुत्र रावलराम जी की भी मृत्यु हो चुकी थी। तब से यह विरासत रिकॉर्डों में अधूरी थी, और परिवार को ज़मीन पर अधिकार तो था, मगर का$गज़ों में नहीं। एक आवेदन ने वेदनाएं की दूर: शिविर में मूलाराम के पौत्र पुखराज ने जब आवेदन किया, तो राजस्व विभाग ने तत्परता और संवेदनशीलता से मौके पर ही जांच की। सभी दस्तावेज़ों और वारिसान की पुष्टि के बाद, पुखराज व उनकी बहनों के नाम पर विरासत का इंतकाल दर्ज कर दिया गया। यह घोषणा हमारे लिए किसी सौगात से कम नहीं: शिविर में जैसे ही यह घोषणा हुई, पुखराज की आंखों में चमक आ गई। उन्होंने भावुक होते हुए कहा यह इंतजार हमने नहीं, हमारे पूरे परिवार ने किया था। आज इस शिविर में हमें न सिर्फ का$गज़ मिला, बल्कि सुकून मिला। मैं सरकार का दिल से आभार प्रकट करता हूं, यह पखवाड़ा हमारे लिए किसी सौगात से कम नहीं है। सुविधा नहीं, समाधान बन रहे ये शिविर: राजस्व विभाग की टीम की तत्परता और शासन की संवेदनशीलता ने यह सिद्ध कर दिया कि सरकारी योजनाएं जब जमीनी स्तर तक पहुंचती हैं, तो वे सिर्फ सुविधा नहीं, समाधान बन जाती हैं। राजसागर ग्राम पंचायत में आयोजित यह शिविर उन हजारों ग्रामीणों के लिए उम्मीद की किरण है, जिनकी समस्याएं इन शिविरों के माध्यम वे सुलझ रही हैं।
जोधपुर: 45 साल बाद मिली ज़मीन पर अधिकार की मुहर, राजसागर में अंत्योदय संबल शिविर बना विरासत के इंतकाल का सा पुखराज और उनके परिवार के चेहरे पर लौटी मुस्कान
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