जयपुर। मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण–2026 का कार्य राजस्थान में न केवल तेज़ गति से आगे बढ़ रहा है, बल्कि कई ऐसे प्रेरक उदाहरण सामने आए हैं, जिन्होंने इस अभियान को मानवीय संवेदना, समर्पण और अदम्य साहस का रूप दे दिया है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी श्री नवीन महाजन ने बताया कि राजस्थान लगभग 4 करोड़ से अधिक गणना प्रपत्र ECI-Net पर अपलोड कर देश में प्रथम स्थान पर है। साथ ही, देशभर के 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में चल रहे एसआईआर अभियान में राजस्थान एकमात्र राज्य है जहाँ 2000 से अधिक बूथ 100% डिजिटाइज किए जा चुके हैं। अब पूरी पंचायत भी डिजिटाइज होना शुरू हो चुकी हैं। मुख्य निर्वाचन अधिकारी की पहल पर 78 बीएलओ के सम्मान से शुरू हुआ कारवां अब 1800 से अधिक तक पहुंच गया है। इस उपलब्धि के पीछे कई निष्ठावान बीएलओ का योगदान है, पर इनमें से कुछ नाम विशेष रूप से प्रेरक हैं—क्योंकि उन्होंने अपनी शारीरिक सीमाओं को कमजोरी नहीं, बल्कि संकल्प का स्रोत बनाया।
1. बाबूलाल पुजारी – गोगुंदा (उदयपुर) दिव्यांगता के बावजूद 100% कार्य—कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल
उदयपुर जिले की गोगुंदा विधानसभा के भाग संख्या 18 के बीएलओ बाबूलाल पुजारी ने एसआईआर–2026 के तहत शत-प्रतिशत कार्य पूरा किया है। उनका यह कार्य न केवल प्रशासन बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए प्रेरणादायक बन गया है। इनका कार्य अत्यंत कठिन था क्यों कि ये क्षेत्र भौगोलिक रूप से चुनौतीपूर्ण है, कई घर दूर-दराज व पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है। यहां कई स्थानों पर नेटवर्क नहीं मिलता, कभी वाहन न मिलने पर पूरा रास्ता पैदल तय करना पड़ता—फिर भी बाबूलाल ने धैर्य, साहस और कर्तव्यनिष्ठा को अपना आधार बनाए रखा, और प्रशासन द्वारा दी गयी टीम के साथ मिलकर यह उपलब्धि सहजता से हासिल की। दिन भर घर-घर जाकर गणना प्रपत्र भरवाते और शाम को घर लौटकर डिजिटाइजेशन पूरा करते—यह उनका रोज़ का अनुशासन बन गया। समयबद्धता, संपूर्णता और कर्तव्यनिष्ठा—बाबूलाल की इन तीन विशेषताओं ने उन्हें एक उत्कृष्ट बीएलओ के रूप में स्थापित किया। उनकी कार्यशैली ने सिद्ध किया: “दिव्यांगता नहीं, जिम्मेदारी की भावना व्यक्ति को बड़ा बनाती है।”
2. सूरजमल धाकड़ – चित्तौड़गढ़—
“दिव्यांगता बाधा नहीं, दृढ़ निश्चय ही सच्ची पहचान”
चित्तौड़गढ़ जिले के रा.उ.प्रा.वि. मायरा के शिक्षक सूरजमल धाकड़ भाग संख्या 218 के दिव्यांग बीएलओ हैं। शारीरिक सीमाओं के बावजूद उन्होंने जिले में 100% उपलब्धि हासिल करने वाले पहले दिव्यांग बीएलओ बनकर इतिहास रच दिया।
• 90% से अधिक घरों की मैपिंग पहले ही पूरी कर ली, जिससे पूरे काम की गति बढ़ गई।
• बाहरी मतदाताओं का अलग रजिस्टर संधारित किया।
• जिन घरों में मतदाताओं की तस्वीरें उपलब्ध नहीं थीं, वहाँ वे स्वयं गए और फोटो की व्यवस्था की।
उनके शांत, संयमित और परिणाम-केंद्रित कार्यशैली ने ग्रामीण क्षेत्र में जागरूकता के नए मापदंड स्थापित किए।
सूरजमल धाकड़ का यह संदेश दूर-दूर तक गूंज रहा है— “सीमा शरीर की हो सकती है, संकल्प की नहीं।”
3. कल्याणमल मीणा, सहायक बीएलओ – सवाई माधोपुर,
सेवानिवृत्ति के बाद भी सेवा का जज्बा—जीवटता की अनोखी कहानी
सवाई माधोपुर के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अनियाला के अंतर्गत भाग संख्या 16 के सेवानिवृत्त दिव्यांग बीएलओ कल्याणमल मीणा की कहानी सबसे विशिष्ट है।
सेवानिवृत्ति के दो वर्ष बाद, जब एसआईआर की चुनौती सामने आई, उन्होंने अपने उत्तराधिकारी बीएलओ जीतराम मीणा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने का निर्णय लिया।
• उन्होंने जीतराम मीणा के साथ बैठकर प्रत्येक मतदाता पर अपनी पूर्व-जानकारी साझा की,
• अपनी पूर्व पहचान के कारण वार्ड-वार्ड जाकर एसआईआर के बारे में जानकारियां दी,
• कई महिला मतदाताओं की पहचान उनके प्रयासों के आधार पर संभव हुई,
• टीमवर्क में आंगनवाड़ी, आशा सहयोगिनी और पटवार टीम को जोड़कर काम किया,
• सुबह से देर शाम तक गणना प्रपत्रों को बहु-स्तरीय प्रक्रिया में सही ढंग से भरा, संधारित किया और अपलोड किया।
जो व्यक्ति सेवा निवृत्त था और स्वयं दिव्यांग था, उसने अपनी लगन से यह साबित किया कि कर्तव्य का रिश्ता पद से नहीं, भावना से होता है।
उनका योगदान टीमवर्क, अनुभव और जनसेवा का बेहतरीन उदाहरण है।
राजस्थान का मानवीय चेहरा—दिव्यांग बीएलओ की प्रेरक शक्ति—
श्री महाजन ने बताया कि विशेष गहन पुनरीक्षण–2026 सिर्फ दस्तावेज़ों का कार्य नहीं है—यह मानवीय समर्पण, आत्मबल और सेवा भावना की जीवंत मिसाल बन गया है। सूरजमल, बाबूलाल और कल्याणमल—इन तीनों ने यह सिद्ध किया है कि— “किसी भी बड़े लक्ष्य को पाने के लिए शरीर की नहीं, मन की स्वस्थता आवश्यक है।” राजस्थान आज देश में अग्रणी है, और इस अग्रणी भूमिका की नींव इन जैसे बीएलओ ने अपने कार्य एवं समर्पण से रखी है।


