इतिहास ब्राह्मणों के स्वाभिमान से भरा पड़ा है। मगर ब्राह्मण कौन है इस पर लगातार चर्चा और मंथन होता रहता है। जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निरंजन देव तीर्थ और स्वामी करपात्री जी 1972 में एक बार मेरे गांव चूरू [ राजस्थान ] आये तब इस विषय पर काफी सार्थक विचार मंथन हुआ। यह सर्व सम्मत हुआ कि जो मानव पृथ्वी के पाप कर्म से बचा हुआ है वही सच्चे अर्थों में ब्राह्मण है। ब्राह्मण को विद्वान, सभ्य, संस्कारी, सुसंस्कृत और शिष्ट माना जाता है। विवेक, सदाचार, स्वाध्याय और परमार्थ ब्राह्मणत्व की कसौटी है। जो व्यक्ति इस कसौटी पर खरा उतरता है, असल में वही सम्पूर्ण अर्थों में सच्चा ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी है। यजुर्वेद के मुताबिक ब्राह्मणत्व एक उपलब्धि है, जिसे प्रखर प्रज्ञा, भाव – संवेदना और प्रचंड साधना से और समाज की निःस्वार्थ अराधना से प्राप्त किया जा सकता है। ऋग्वेद के अनुसार ब्राह्मण वह है जो शांत, तपस्वी और सृजनशील है। जो स्वयं ज्ञानवान हो और संसार को भी ज्ञान देकर भूले भटकों को सन्मार्ग पर ले जाता हो। ऐसो को ही ब्राह्मण कहते है। मनु समृति के अनुसार ब्राह्मण को चहिये वह सम्मान से डरता रहे और अपमान की अमृत के सामान इच्छा कर्त्ता रहे। ब्राह्मण, क्षेत्रीय, वैश्य और शूद्र चार वर्ण है। इन वर्णों में ब्राह्मण ही प्रधान है, ऐसा वेद वचन है और समृति में भी वर्णित है। ब्राह्मण भारत में आर्यों की समाज व्यवस्था का सबसे ऊपर का वर्ण है। भारत के सामाजिक बदलाव के इतिहास में जब भारतीय समाज को हिन्दू के रूप में सम्बोधित किया जाने लगा । तब ब्राह्मण वर्ण जाति में परिवर्तित हो गया। ब्राह्मण वर्ण अब हिन्दू समाज की एक जाति भी है। ब्राह्मण को विप्र, द्विज, द्विजोत्तम या भूसुर भी कहा जाता है। ब्राह्मण समाज का इतिहास प्राचीन भारत के वैदिक धर्म से शुरू होता है। मनु समृति के अनुसार आर्यावर्त वैदिक लोगों की भूमि है।
पाप कर्म से बचा हुआ है वही सच्चा ब्राह्मण है
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