गोपाष्टमी पर्व : अमृत समान है गाय का दूध, मूत्र और गोबर

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देश में हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का त्योहार मनाए जाने की परंपरा है। इस साल गोपाष्टमी 30 अक्टूबर को है। भारत में गाय को मां कहा जाता है और उसकी पूजा की जाती है। घरों में आज भी पहली रोटी गौ माता को खिलाई जाती है। गौ वंश को लेकर इस समय देश की सियासत में गर्माहट है। महाराष्ट्र ने गाय को माता का दर्ज़ा घोषित कर दिया है और अन्य राज्य भी माता घोषित करने की प्रक्रिया में है। केंद्र सरकार से भी मांग की जा रही है कि वह पूरे देश में गाय को माता का दर्ज़ा प्रदान करें। हिंदू धर्म में गाय को मां का दर्जा दिया गया है, साथ ही गाय को बेहद पवित्र और पूजनीय माना गया है।
गाय को छत्तीस कोटि देवी-देवताओं का वास माना जाता है। इस अवसर पर गौ माता की पूजा और सेवा करने का सनातनी विधान है। बताया जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने गोपाष्टमी पर ही गौ-चारण यानी गायों को चराना शुरू किया था। चूंकि श्रीकृष्ण स्वंय गायों की सेवा करते थे, इसलिए इस दिन गौ सेवा का विशेष महत्व बताया गया है। इस गोपाष्टमी के दिन गाय या गाय के बछड़े को हरा चारा खिलाना बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि इस दिन गाय को हरा चारा खिलाने से दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है।
यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण और गायों को समर्पित है। यह मथुरा, वृंदावन और अन्य ब्रज क्षेत्रों में गोपाष्टमी प्रसिद्ध त्योहार है। इस दिन गायों को उनके बछड़े के साथ सजाने और पूजा करने की परंपरा है। आज के दिन श्रीकृष्ण के पिता नंद महाराज ने श्रीकृष्ण को गायों की देखभाल की जिम्मेदारी दी थी और श्रीकृष्ण गायों को चराने वन ले गये थे। गोपाष्टमी पर प्रातः काल में ही धूप-दीप अक्षत, रोली, गुड़, आदि वस्त्र तथा जल से गाय का पूजन किया जाता है और आरती उतारी जाती है। इस दिन कई व्यक्ति ग्वालों को उपहार आदि देकर उनका भी पूजन करते हैं। गायों को खूब सजाया जाता है। इसके बाद गाय को चारा आदि डालकर परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा करने के बाद कुछ दूर तक गायों के साथ चलते हैं। ऐसी आस्था है कि गोपाष्टमी के दिन गाय के नीचे से निकलने वालों को बड़ा ही पुण्य मिलता है।
गोपालन भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं। गाय को माता रूप में पूजने और उसके पालन में आमजन के साथ कई संस्थाएं भी लगी हैं जो देशभर में गौशालाएं संचालित करती है। महंगाई के जमाने में गोपालन के प्रति लोगों का मोह भंग सा हो चला था, लेकिन कोरोना काल के बाद देसी नस्ल की गाय के दूध और दुग्ध से बने उत्पादों की मांग फिर से बढ़ी है। मिलावटी खानपान से बचने और इम्युनिटी बढ़ाने के लिए शुद्ध दूध,छाछ, दही, घी आदि को लोग प्राथमिकता दे रहे हैं चाहे ये उत्पाद बाजार भाव से भले ही चार गुणा में ही क्यों ना उपलब्ध हो। गाय का दूध, गाय का घी, दही, छांछ यहाँ तक की मूत्र भी मनुष्य जाति के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। गोबर का धुआं अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है। इसके धुएं से घर की सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एवं पशुपालन का विशेष महत्व है। सकल घरेलू कृषि उत्पाद में पशुपालन का 28-30 प्रतिशत का योगदान सराहनीय है जिसमें दुग्ध एक ऐसा उत्पाद है जिसका योगदान सर्वाधिक है। भारत में विश्व की कुल संख्या का 15 प्रतिशत गायें है और देश के कुल दुग्ध उत्पादन का 43 प्रतिशत गायों से प्राप्त होता है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 19.91 करोड़ गायें है। गौसेवा हमारे देश की प्राचीन संस्कृति है। यह संस्कृति ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में भी सहायक होती है। परन्तु वर्तमान समय में हमारी यह संस्कृति धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। गाय कलियुग में संजीवनी स्वरूपा है, गाय मानव जीवन में माता की भूमिका का निर्वाह करती है। गाय का दूध अमृत के सामान होता है और मूत्र औषधि का काम करता है। पहले हर घर में गाय-भैंस का पालन होता था, जिसके कारण बच्चों को दूध के रूप में पौष्टिक आहार भी मिलता था। गौ पालन और पशुपालन से भारी मात्रा में लाभकारी रोजगार का सृजन हो सकता है।

-बाल मुकुन्द ओझा

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