प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने जब 2014 में शपथ ली थी, उसके बाद उन्होंने एक नारा दिया था- सबका साथ, सबका विकास। जब 2019 में वह दोबारा जीत के आए तब उन्होंने नारा दिया- सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास। हालांकि, ऐसा लगता है कि यह नारा कहीं गुम सा हो गया है। हाल में जितने विधानसभा चुनाव हुए, उनमें प्रचार करने के दौरान भाजपा के किसी बड़े नेता ने सबका साथ, सबका विश्वास के नारे पर जोर नहीं दिया। बल्कि एक है तो सेफ है और बटेंगे तो कटेंगे की बात डंके की चोट पर की गई। ऐसे में कहीं ना कहीं यह लगने लगा है कि भाजपा फिर से हार्डकोर हिंदुत्व की पॉलिटिक्स पर सवार हो गई है। जो 2024 के लोकसभा चुनाव में उसे नुकसान हुआ उसके भरपाई की कोशिश हो रही है। भाजपा को यह पूरी तरीके से लगने लगा है कि चाहे वह कुछ भी कर ले, लेकिन मुस्लिम मतदाता उसे वोट नहीं करेंगे। यही कारण है कि बंटोगे तो कटोगे और एक है तो सेफ है का नारा दिया गया। यह दोनों नारा ऐसा है जिससे विपक्ष के जातिगत जनगणना वाले दावों को कमजोर किया जा सकता है। हरियाणा से यह दोनों तारों के इस्तेमाल की शुरुआत हुई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सबसे पहले यह नारा दिया था। इसके बाद तमाम बड़े नेताओं ने इसे अपनी रैलियों कही। महाराष्ट्र में यह नारा काम करता हुआ दिखाई दे रहा है। वहीं हरियाणा में भी बंटोगे तो कटोगे का नारा सुपरहिट साबित हुआ था। महाराष्ट्र में शनिवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति ने महा विकास आघाडी (एमवीए) गठबंधन के खिलाफ अजेय बढ़ हासिल कर ली, जबकि झारखंड में ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस) सत्ता में वापसी करता दिख रहा है।

कितने दिनों से नहीं सुना ‘सबका साथ-सबका विकास’ का नारा, क्या ‘एक हैं तो सेफ हैं’ ने ले ली जगह
ram