गोवा के नाइट क्लब में लगी आग ने 25 लोगों की जान ले ली, वहीं 6 लोग घायल बताए जा रहे हैं। इनमें पांच पर्यटक(तीन महिलाएं) तथा 20 क्लब के कर्मचारी शामिल बताए जा रहे हैं।इन पर्यटकों में चार दिल्ली के हैं तथा तीन एक ही परिवार के हैं, यह बहुत ही दुखद है। हाल फिलहाल, इस मामले में क्लब प्रबंधक समेत चार को गिरफ्तार किया गया है। मीडिया में उपलब्ध जानकारी अनुसार यह हादसा 6 दिसंबर 2025 शनिवार देर रात पणजी से 25 किलोमीटर दूर अरपोरा नदी के पास स्थित ‘बर्च बाई रोमियो लेन’ नाइट क्लब में हुआ। बताया जा रहा है कि उस समय क्लब में 200 से अधिक लोग मौजूद थे। क्लब की पहली मंजिल पर आग की लपटें उठने लगीं तथा उस वक्त वहां डांस फ्लोर पर 100 से अधिक पर्यटक थे। कुछ ही पल में क्लब में धुआं भर गया और भगदड़ मच गई। जान बचाने के लिए लोग भूतल पर पहुंचे, लेकिन बाहर निकलने के दरवाजे छोटे और रास्ते संकरे होने से कई लोग फंसे रह गए और आग ने पूरे क्लब को चपेट में ले लिया।गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने आशंका जताई है कि क्लब के अंदर बिजली से संचालित आतिशबाजी के दौरान निकली तेज चिंगारियों से आग भड़की। हालांकि, पुलिस ने प्रारंभिक जांच में इसे सिलेंडर फटने से लगी बताया है। वास्तव में आग किस कारण से लगी,यह तो जांच के बाद ही सामने आ पाएगा। हाल फिलहाल, आगजनी की इस घटना पर हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, गृह मंत्री अमित शाह ने गहरा शोक जताया है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि उत्तरी गोवा के इस नाइट क्लब में आग लगने से हुई मौतों की वजह लापरवाही है। क्या यह हमारे देश की विडंबना नहीं है कि हमारे यहां कोई घटना घट जाती है तो उसके बाद तत्परता दिखाई जाती है। इससे पहले किसी चीज़ की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। चाहे नाइट क्लब हों या मॉल हों, होटल हों या बहुमंज़िला आवासीय इमारतें या कोई भी ऊँची इमारत, आज आगजनी जैसी दुर्घटनाएँ न हों-इसके लिए बने नियमों को अक्सर खुलेआम ताक पर रख दिया जाता है। वास्तव में कड़वा सच तो यह है कि आज भवन निर्माण से लेकर उसके संचालन तक हर स्तर पर लापरवाही साफ दिखाई देती है। फायर सेफ्टी के अनिवार्य इंतज़ाम-जैसे अग्निशमन यंत्र, स्मोक डिटेक्टर, फायर अलार्म सिस्टम, आपातकालीन निकास द्वार और नियमित मॉक ड्रिल आदि या तो काग़ज़ों तक सीमित रहते हैं या फिर दिखावे के लिए लगाए जाते हैं। नाइट क्लबों और बंद हॉल जैसी जगहों पर अधिक भीड़, ज्वलनशील सजावटी सामग्री, तेज़ रोशनी और ध्वनि उपकरण आग के खतरे को और बढ़ा देते हैं, फिर भी सुरक्षा मानकों की अनदेखी आम बात हो गई है। क्या यह सबसे चिंताजनक बात नहीं है कि कई इमारतों को अग्निशमन विभाग से वैध एनओसी मिले बिना ही संचालित कर दिया जाता है और जब कभी औपचारिक जांच होती भी है तो वह केवल खानापूर्ति बनकर रह जाती है। वास्तव में, मुनाफ़ा, जल्दबाज़ी और भ्रष्टाचार के गठजोड़ में इंसानी ज़िंदगियाँ सबसे सस्ती हो जाती हैं। दुर्घटना होने के बाद कुछ दिनों तक शोर-शराबा होता है, जांच समितियाँ बनती हैं, दोषियों पर कार्रवाई की बातें की जाती हैं, लेकिन समय गुजरते ही सब कुछ फिर पुराने ढर्रे पर लौट आता है। आगजनी की ये घटनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि सुरक्षा कोई विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता है। जब तक नियमों का सख्ती से पालन, नियमित निरीक्षण और जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक नाइट क्लब हों या कोई भी इमारत-हर जगह लोग मौत के साए में ही खुशियाँ मनाने को मजबूर रहेंगे। जरूरत इस बात की है कि कानून केवल किताबों में नहीं, जमीन पर भी उतरे, ताकि हर नागरिक निश्चिंत होकर सुरक्षित जीवन जी सके। गोवा में आगजनी की इस घटना के बाद जितनी तत्परता अब दिखाई जा रही है, अगर ऐसी संजीदगी नियमों का पालन करने और कराने में होती, तो इस हादसे से बचा जा सकता था। 6 दिसंबर 2025 शनिवार को हुई यह घटना बताती है कि कैसे अनेकों बार छोटी-छोटी लापरवाहियाँ मिलकर बड़ी त्रासदी बन जाती हैं। शनिवार आधी रात को जब गोवा के इस नाइट क्लब में आग लगी, तब वहां लोग वीकेंड मनाने के लिए भारी संख्या में मौजूद थे। अचानक आग की लपटें और धुआं फैल गया। लोग घबरा गए, तथा वहां भगदड़ मच गई और कई लोगों को बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिला। उपलब्ध जानकारी के अनुसार फायर ब्रिगेड की गाड़ियाँ भी समय पर पास नहीं पहुंच सकीं, क्योंकि क्लब तक जाने का रास्ता बहुत संकरा था। आज अनियोजित शहरीकरण महानगरों में अनेक समस्याओं को लगातार जन्म दे रहा है। संकरे रास्ते, भीड़-भाड़ कहीं न कहीं समस्याओं को ही जन्म देते हैं। क्या यह चिंताजनक बात नहीं है कि मनोरंजन के नाम पर खुल रहे नाईट क्लब अक्सर सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर संचालित होते हैं। सबसे बड़ा खतरा तब पैदा होता है जब इन संकरी गलियों में स्थित क्लबों में आगजनी जैसी घटनाएँ होती हैं। दमकल की गाड़ियाँ इन स्थानों पर समय रहते पहुँच नहीं पातीं, निकासी के रास्ते अवरुद्ध होते हैं और भगदड़ में जान-माल का भारी नुकसान हो जाता है। हैरानी की बात यह है कि अग्निशमन उपकरण, आपातकालीन निकास द्वार, क्षमता से अधिक लोगों की मौजूदगी और अवैध निर्माण जैसे नियमों की खुलेआम अनदेखी होती है। प्रशासन की लापरवाही, सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार और नियमित निरीक्षण की कमी इन हादसों को और भयावह बना देती है। असल में, यह केवल एक नाइट क्लब या एक हादसे की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे शहरी ढांचे, प्रशासनिक व्यवस्था और हमारी सामाजिक ज़िम्मेदारी पर सवाल है। जब तक संकरी गलियों में बिना योजना के बने व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर सख्ती नहीं होगी और अग्नि-सुरक्षा नियमों का ईमानदारी से पालन नहीं कराया जाएगा, तब तक ऐसे हादसे बार-बार निर्दोष जिंदगियाँ लीलते रहेंगे। उपलब्ध जानकारी अनुसार गोवा नाईट क्लब में सजावट में ताड़ के सूखे पत्तों का इस्तेमाल किया गया था, जिससे आग और तेजी से फैल गई। सबसे बड़ी लापरवाही यह रही कि इमरजेंसी एग्जिट की सही व्यवस्था नहीं थी। इसी वजह से कुछ लोग रास्ता भटककर किचन तक पहुंच गए, जहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था और जान-माल का व्यापक नुक़सान हुआ। यह भी सामने आया है कि यह नाइट क्लब बिना किसी वैध अनुमति के चल रहा था और इसका निर्माण भी नियमों के खिलाफ था। यानी सुरक्षा से जुड़े नियमों को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया। यह पहली बार नहीं है, जब ऐसी लापरवाही जानलेवा साबित हुई हो। गौरतलब है कि इसी साल यानी कि 2025 में मई माह में हैदराबाद के गुलजार हौज इलाके में एक आवासीय इमारत में आग लगने से 17 लोगों की मौत हो गई थी, और वहां भी संकरे रास्ते और वेंटीलेशन को बड़ा कारण माना गया था।अब सरकार सभी क्लबों की जांच कराने की बात कर रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि इन जांचों को किसी हादसे के बाद नहीं, बल्कि पहले ही नियमित रूप से होना चाहिए। बिना लाइसेंस चल रहे क्लब, होटल और रेस्तरां बंद होने चाहिए और यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि वे खुलते कैसे हैं और सालों तक कैसे चलते रहते हैं ? यह भी कि गोवा की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का बहुत बड़ा योगदान है। आंकड़े बताते हैं कि यह राज्य के जीडीपी का 16% से भी ज्यादा हिस्सा है। इस साल गोवा में पर्यटकों की संख्या भी बढ़ी है। ऐसे में इस तरह की घटनाएं गोवा की छवि को नुकसान पहुंचाती हैं, जो पहले ही टैक्सी चालकों की मनमानी और पर्यटकों से बदसलूकी जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। इसलिए राज्य सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी दर्दनाक घटनाएं दोबारा न हों।
-सुनील कुमार महला



