कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के केरल के वायनाड के साथ यूपी के रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा से देश की सियासत अचानक ही गरमा उठी है। वे अपनी परंपरागत अमेठी सीट छोड़कर केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ रहे है। वायनाड में वोटिंग के बाद राहुल ने रायबरेली से अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। यह सीट गाँधी परिवार की पुश्तैनी सीट है।
सोनिया गाँधी के राज्य सभा में निर्वाचित होने के बाद रायबरेली सीट पर उनकी बेटी प्रियंका वाड्रा के चुनाव लड़ने की चर्चा थी मगर उनके इंकार करने पर भाई को मैदान में उतरा गया है। बताया जाता है वायनाड संसदीय सीट अमेठी की तुलना में ज्यादा सुरक्षित होने के कारण उन्होंने वायनाड से चुनाव लड़ना पसंद किया था। हालाँकि साम्यवादी पार्टियों ने राहुल गाँधी के केरल से चुनाव लड़ने की निंदा की है और कहा है राहुल का यह फैसला जनविरोधी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2014 में अपनी लोकप्रियता के शिखर पर रहते हुए गुजरात की वडोदरा और उत्तर प्रदेश की वाराणसी सीट से चुनाव लड़ा था। दो जगहों से चुनाव लड़ने के पीछे राजनीतिक पार्टियों का यह तर्क होता है कि इससे पार्टी को संबंधित प्रदेश में मजबूती मिलती है। वर्तमान में भारत चुनाव आयोग किसी भी प्रत्याशी को दो लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की अनुमति देता है।
आयोग के नियमों का फायदा उठाकर विभिन्न दलों के नेता एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ते है और दोनों सीटों से जीतने के बाद एक सीट से इस्तीफा देते है फिर चुनाव आयोग द्वारा वहां दुबारा चुनाव कराया जाता है। इस भांति चुनाव आयोग को अनावश्यक व्यय का सामना करना पड़ता है। आजादी के बाद एक से अधिक सीटों पर लड़ने का रिवाज चल रहा है। जन प्रतिननिधित्व कानून, 1951 में संशोधन कर 1996 में यह नियम बनाया गया कि उम्मीदवार अधिकतम दो सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं।
इससे पहले उम्मीदवार कितनी भी सीट से चुनाव लड़ सकते थे। 2004 में चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों के एक से अधिक सीटों पर चुनाव लडने पर प्रतिबंध या उम्मीदवार द्वारा कोई जीती हुई सीट छोडने पर उसके बाद होने वाले उपचुनाव का खर्च उठाने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया । भारतीय राजनीति में एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ने की परंपरा की शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री और तत्कालीन जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने 1957 में दूसरे आम चुनाव से की थी।
वह उनके राजनीतिक जीवन का पहला चुनाव था। उस चुनाव में वे एक साथ उत्तर प्रदेश के तीन निर्वाचन क्षेत्रों- मथुरा, बलरामपुर और लखनऊ से खड़े हुए थे। बलरामपुर में वे जीत गए थे, जबकि मथुरा और लखनऊ में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। मथुरा में तो उनकी जमानत भी नहीं बच पाई। एक बार इंदिरा गांधी भी 1980 में अपनी पारंपरिक रायबरेली सीट के अलावा आंध्रप्रदेश की मेडक सीट से भी चुनाव लड़ी थीं।
वे दोनों जगह से जीती थीं और बाद में उन्होंने मेडक सीट से इस्तीफा दे दिया था। 1996 के आम चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने भी दो जगहों- आंध्रप्रदेश की नांद्याल और ओडिशा की बेरहामपुर सीट से चुनाव लड़ा था। दोनों जगह से जीतने पर उन्होंने नांद्याल सीट खाली कर दी थी, जिस पर उपचुनाव हुआ था।
प्रधानमंत्री बनने के आकांक्षी रहे समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव भी 1998 के मध्यावधि चुनाव में दो क्षेत्रों- संभल और कन्नौज से खड़े हुए थे। दोनों ही जगह वे विजयी रहे थे और बाद में उन्होंने कन्नौज सीट खाली कर वहां से अखिलेश यादव को चुनाव लड़ाया था। इसके अलावा भी अन्य कई नेता हुए हैं जिन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव में एक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा है।
इसके अलावा भी अन्य कई नेता हुए हैं जिन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव में एक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा है। यह उल्लेखनीय है कई पार्टियों के नेता एक से ज्यादा सीट से चुनाव लड़ते हैं और बाद में एक सीट को छोड़ देते हैं। जिस पर फिर से चुनाव होता है। माना जाता है कि ऐसा करन से वक्त तो ज्यादा लगता ही है, साथ ही संसाधन और पैसा भी खर्च होता है।
-बाल मुकुन्द ओझा