गालियों का लोकतंत्र और नफरत की पराकाष्ठा

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बिहार चुनाव जैसे जैसे नजदीक आते जा रहे है वैसे वैसे सियासत में गालियों और नफरती भाषणों का जबरदस्त उबाल देखा जा रहा है। सत्ताच्युत होने के बाद से ही कांग्रेस और उनके सहयोगी दल मोदी के प्रति अपनी अथाह नफरत छिपाते नहीं है। कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी द्वारा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को तू तड़ाक से सम्बोधन के बाद दरभंगा में वोटर अधिकार यात्रा के दौरान मंच से मोदी को अपशब्द कहे गए। यहां तक की उनकी स्वर्गीय माताजी के लिए बेहद अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया। आजादी के बाद नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री है जिन्हें नाना प्रकार की सर्वाधिक गालियों से विभूषित कर वर्ल्ड रेकॉर्ड स्थापित किया गया। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की मौत का सौदागर और ज़हर की खेती के अलावा सांसद राहुल गांधी की चौकीदार चोर है और खून की दलाली, वोट चोर, सरीखी गालियों समेत कांग्रेस के मंत्री, नेताओं ने प्रधानमंत्री के लिए चायवाला, नीच आदमी, बिच्छू, सांप, गंदी नाली का कीड़ा, हत्यारा, यमराज, अनपढ़, गंवार, हिटलर और भस्मासुर आदि अपशब्दों का बार-बार इस्तेमाल किया है। गंगा जमुनी तहजीब से निकले देशवासी नफरत और घृणा के तूफान में बह रहे हैं। विशेषकर नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद घृणा और नफरत के तूफानी बादल गहराने लगे है। आज छोटे से लेकर बड़े नेता तक ने जैसे नफरत फैलाने का ठेका ले लिया है। चुनाव के दौरान इसका अधिक उपयोग होने लगा है। हमारे नेताओं के भाषणों, वक्तव्यों और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सुचिता के स्थान पर नफरत, झूठ, अपशब्द, तथ्यों में तोड़-मरोड़ और असंसदीय भाषा का प्रयोग धड़ल्ले से होता देखा जा सकता हैं। हमारे नेता अब आए दिन सामाजिक संस्कारों और मूल्यों को शर्मसार करते रहते हैं। स्वस्थ आलोचना से लोकतंत्र सशक्त, परंतु नफरत भरे बोल से कमजोर होता है, यह सर्व विदित है। आलोचना का जवाब दिया जा सकता है, मगर नफरत के आरोपों का नहीं। चुनाव आते ही हमारे नेताओं की बांछे खिल जाती है। मंच और भीड़ देखते ही सियासत की तकदीर लिखने लगते है। भाषणों में नफरत के तीर चलने लग जाते है। बंद जुबाने खुल जाती है। सियासी शत्रुता के गुब्बार फूटने लगते है। नीतियों और मुद्दों की बाते गौण हो जाती है। अब नफरत और घृणा पर भी घमासान हो रहा है। देश में इस समय नफरत की बयार बह रही है जिसे थामने वाला कोई सर्वमान्य व्यक्ति दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा है। देश में साधारण से लेकर असाधारण घटना के घटित होते ही बयान वीरों के तरकश से नफरत और घृणा के तीरों की बाढ़ सी लग जाती है। भारत में लोकतंत्र को स्थापित हुए 77 वर्षों से अधिक हो चुका है मगर हमारी सियासत अभी परिपक्व नहीं हुई है। हमारे नेता लोकतंत्र को शर्मसार करने वाले बिगड़े बोल के लिए कुख्यात हो रहे है। जहरीले बोल कोई एक पार्टी का नेता नहीं बोल रहा है। गालियों की इस गंगा में सभी पार्टियों के नेता डुबकी लगा रहे है। नफरत की आग को हवा देने में हमारे टीवी चैनल भी किसी से पीछे नहीं है। चैनलों पर हो रही बहस देश को आईना दिखाने में काफी है। राजनीतिक दलों के नुमाइंदों की स्तरहीन बहस सुनकर कई बार सिर शर्म से झुक जाते है। इसमें सबसे ज्यादा निशाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगाया जा रहा है। वीर सावरकर को भी गन्दी सियासत में घसीट लिया गया है। अपने विवादित बोल के लिए कुख्यात रहे एक नेता ने हाल ही इसारे इसारे में मोदी को कातिल तक कह दिया। नेताओं के बीच विवादित बयानबाजी का दौर जारी है। जिस तरह से एक के बाद एक नेता विवादित बयान दे रहे हैं, उसकी वजह से माहौल में सरगर्मी बढ़ गई है। कहते है राजनीति के हमाम में सब नंगे है। यहाँ तक तो ठीक है मगर यह नंगापन हमाम से निकलकर बाजार में आजाये तो फिर भगवान ही मालिक है। राजनीति में इन दिनों आपत्तिजनक और विवादित बयानों को लेकर हंगामा मचा हुआ है। सियासत में विवादास्पद बयान को नेता भले अपने पॉपुलर होने का जरिया मानें, लेकिन ऐसे बयान राजनीति की स्वस्थ परंपरा के लिए ठीक नहीं होते। चुनावी सीजन आते ही नेताओं की गंदी बात शुरू होजाती है। यह बेहद दुखद है कि पिछले कुछ सालों से भारत में राजनीतिक-वैचारिक पतन तो हुआ ही है, साथ ही राजनीति की भाषा स्तरहीन और गंदी हो गई है। हमारे माननीय नेता आजकल अक्सर ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। देश के नामी-गिरामी नेता और मंत्री भी मौके-बेमौके कुछ न कुछ ऐसा बोल ही देते हैं, जिसे सुनकर कान बंद करने का जी करता है। जो किसी भी हालत में लोकतान्त्रिक और सभ्य समाज के अनुकूल नहीं कही जा सकती। किसी नेता को चोर, लुटेरा तथा बलात्कारी बताया जा रहा है तो किसी को गधा कुत्ता, तड़ीपार और गेंडा बताया जा रहा है।

-बाल मुकुन्द ओझा

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