कांग्रेसी नेता राहुल गाँधी एक बार फिर अपने देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के बहाने देश के लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं पर हमला बोलते तनिक भी नहीं हिचकिचाएं। उन्होंने पूर्व की भांति मोदी पर ताबड़तोड़ हमला करते हुए इस बार सेना को भी अपने विवादित बयान में लपेट लिया। राहुल गांधी ने बिहार में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए दावा किया कि देश की 90 प्रतिशत आबादी (दलित, महादलित, पिछड़े, अति पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय) के बावजूद सेना, प्रमुख संस्थानों और नौकरियों पर सिर्फ 10 प्रतिशत आबादी का नियंत्रण है। इससे पूर्व राहुल गांधी द्वारा चीनी सैनिकों की ओर से भारतीय सैनिकों की पिटाई का बयान भी काफी चर्चित हुआ था। राहुल के इस विवादित बयान पर सदा की भांति एक बार फिर सियासत गरमा उठी है। इस बयान पर बीजेपी ने तीखा पलटवार किया और कहा, सेना को जातियों में बांटना चाहते है राहुल। मोदी के बहाने राहुल देश की संवैधानिक संस्थाओं को समय समय पर कटघरे में खड़ा करते आये है। वे लगातार तीन बार पार्टी की हार को पचा नहीं पाए है। मगर वे यह भूल गए देश की जनता ने नेहरू, इंदिरा और राजीव की भांति मोदी को भी प्रचंड बहुमत के साथ देश का ताज पहनाया है।
यह बात तो देशवासियों के समझ में आ रही है कि कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी के लिए बिहार विधान सभा के चुनाव करो या मरो वाले होंगे मगर गांधी के हालिया बयानों पर एक नज़र डाले तो पता चलेगा, उनका गुस्सा सातवें आसमान पर सिर चढ़कर बोलने लगा है। इससे पूर्व राहुल गाँधी ने बिहार में एक रैली को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बयान को आधार बनाते हुए देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी न केवल झूठा बताया अपितु तू तड़ाक वाले लहजे में अपनी बात रखी। लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने के बाद राहुल गांधी ने संवैधानिक संस्थाओं पर हमला तेज कर दिया है। उन्होंने चुनाव आयोग और मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ मोर्चा खोलकर तरह तरह के आरोप लगाए। उन्होंने चुनाव आयोग के अधिकारियों को चेतावनी दी कि चुनाव आयोग के हर अफसर और इलेक्शन कमिश्नर को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि एक न एक दिन आपको हमारा सामना करना होगा। गाँधी बिहार में रैलियों के जरिये भाजपा और चुनाव आयोग पर मिलीभगत कर वोट चोरी का आरोप भी लगाते रहे है। राहुल लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर है और ऐसा कोई भी मौका नहीं चुकते जब उनके निशाने पर मोदी होते है। यही नहीं राहुल ने देश की सवैंधानिक संस्थाओं यथा चुनाव आयोग, न्यायालय और प्रेस पर भी समय समय पर हमला बोला है।
लगातार तीसरा लोकसभा चुनाव हारने के बात कांग्रेस के नेता समय समय पर इस प्रकार के बयान देते रहे है। राहुल गाँधी का वह चर्चित बयान याद कीजिये जिसमें उन्होंने कहा था, अगर राफेल की जांच शुरू हुई, पीएम मोदी जेल जाएंगे। बाद में राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में खेद जताकर माना है कि वह राफेल डील पर आरोप राजनीति से प्रेरित होकर लगा रहे थे। उन्होंने बिना किसी आधार के केन्द्र सरकार की सुरक्षा डील पर सवाल उठाया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी बिना सिर पैर के आरोप लगाने में पीछे नहीं रहे है। खरगे भी एक बार यह कह चुके है, अगर हमें 20 सीटें और आ जाती तो ये सारे लोग जेल में होते। ये लोग जेल में रहने के लायक हैं।
ऐसा लगता है जैसे स्वस्थ और रचनात्मक बहस का स्थान घृणात्मक और नफरत से ओतप्रोत वाद विवाद ने ले लिया है। राहुल हमेशा मोहब्बत की बात करते है मगर मोदी और आरएसएस के बारे में अपनी नफरत छुपा नहीं पाते। हालाँकि वे कहते है मैं मोदी से नफरत नहीं करता। लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने के बाद राहुल कुछ अधिक ही उत्साहित हो रहे है। उन्हें होना भी चाहिए मगर विदेशी धरती पर जाकर मोदी और संवैधानिक संस्थाओं पर बेसिरपैर के आरोप लगाना देशवासियों के गले नहीं उतरता । राहुल के बयानों पर भाजपा आग बबूला हो रही है वहां इंडि गठबंधन की सहयोगी पार्टियां राहुल के बयानों का समर्थन कर अपनी एकजुटता प्रदर्शित कर रही है। राहुल को अपने आरोपों के समर्थन में अपने देश में ही सशक्त आंदोलन कर जनता का समर्थन जुटाना चाहिए मगर चीन जैसे दुश्मन देश के पक्ष में बोलकर देशवासियों की सहानुभूति खो रहे है।
कांग्रेस पार्टी के लोकसभा में 52 से 99 पर पहुँचने के बाद जो गंभीरता पार्टी में आनी चाहिए थी वह कमोवेश देखने को नहीं मिली है। नेता विपक्ष बनने के बाद राहुल गांधी के गुस्से में बढ़ोतरी देखी जा रही है। राहुल गांधी को बहुत गुस्सा आता है जब लोग उन्हें तरह तरह की उपमाओं से नवाजते है। राहुल कई बार यात्राएं निकालकर लोगों के बीच गए। हर तबके के लोगों से मिले। उनका प्यार भी उन्हें मिला । राहुल गांधी की एक दशक की सियासी यात्रा पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने मोदी पर तरह तरह के आरोप लगाए। गौरतलब है राहुल ने देश की सवैंधानिक संस्थाओं यथा चुनाव आयोग, न्यायालय और प्रेस पर भी समय समय पर हमला बोला है।
-बाल मुकुन्द ओझा



