सभ्य समाज के मुंह पर तमाचा है बाल विवाह

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देश के कई प्रदेशों में आखातीज पर ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में चोरी छिपे बाल विवाह होते हैं। बाल विवाह एक सामाजिक बुराई होने के साथ ही कानूनन अपराध भी है। जिसकी रोकथाम और उन्मूलन के लिए सरकार प्रयासरत है। ऐसा देखा गया है सरकार की सख्ती, प्रचार प्रसार और कानूनी प्रावधानों के बावजूद लोग बाल विवाह कराने से चूकते नहीं हैं ऐसे में प्रतिवर्ष सरकार इनकी रोकथाम के लिये अलग से प्रयास करती है।

इसी कड़ी में सरकार अपनी वैधानिक और कानूनी खानापूर्ति करती है। कई स्थानों पर ऐसे विवाह रुकवाए भी है मगर फिर भी इस सामाजिक बुराई को पूरी तरह नहीं रोका जा सका है। लोग अपनी पुरानी परम्पराओं और लड़की की सुरक्षा का हवाला देकर कानून की परवाह नहीं करते हुए गलत कृत्यों को अंजाम देते है। बाल विवाह का अर्थ है छोटी आयु में शादी। अर्थात् 21 वर्ष से कम आयु के लड़के और 18 वर्ष से कम आयु की लड़की का विवाह होना।

भारत में बाल विवाह की प्रथा का अनादिकाल से प्रचलन है। लाख कोशिशों के बाद भी हम इस कुप्रथा को समाप्त नहीं कर पाये हैं। सभ्य समाज के मुंह पर यह एक तमाचा है। यह मानव जीवन की सबसे बड़ी और दुःखदाई त्रासदी है।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत बाल विवाह के मामले में दूसरे स्थान पर है। बाल विवाह केरल राज्य, जो सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य है, में अब भी प्रचलन में है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय क्षेत्रों से अधिक बाल विवाह होते है। भारत में दुनिया के 40 प्रतिशत बाल विवाह होते हैं।

देश में 49 प्रतिशत लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से कम आयु में ही हो जाता है लिंगभेद और अशिक्षा का ये सबसे बड़ा कारण है। राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सबसे खराब स्थिति है। भारत में लंबे समय से बाल विवाह पर अंकुश लगाने के प्रयास होते रहे हैं। बाल विवाह पर रोक संबंधी कानून सर्वप्रथम सन् 1929 में पारित किया गया था।

बाद में सन् 1949, 1978 और 2006 में इसमें संशोधन किए गए। इस समय विवाह की न्यूनतम आयु बालिकाओं केलिए 18 वर्ष और बालकों के लिए 21 वर्ष निर्धारित की गई है। छोटी आयु में विवाह का मुख्य कारण अशिक्षा और गरीबी है। अभिभावक गरीबी के कारण अपनी बेटी का जल्दी विवाह कर एक सामाजिक दायित्व से निवृत्त होना चाहते हैं।

नासमझी और अशिक्षित होने के कारण उन्हें यह ज्ञान नहीं है कि वे अपनी बेटी को एक अंधे कुंए की ओर धकेल रहे हैं जिसमें से वह ताउम्र नहीं निकल पायेगी। छोटी आयु में विवाह के कारण लड़की को गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ता है। खेलने-कूदने के दिनों में वह सेक्स की शुरूआती एवं प्रारम्भिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझती रहती है।

इसके अलावा बालिका वधु को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है। शारीरिक रूप से अपरिपक्वता के साथ-साथ उसे शिक्षा से भी वंचित होना पड़ता है। बाल विवाह आज भी ज्वलन्त समस्या के रूप में हमारे सामने है। यह अनादिकाल से चली आ रही है। सामाजिक मान्यता मिलने के कारण इसे बढ़ावा मिला। इसी कारण इस कुप्रथा ने विकराल रूप धारण कर लिया। अशिक्षा एवं अंधविश्वासी समाज ने इस कुप्रथा को अपना लिया।

बाल विवाह को बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन भी माना गया है। जब तक बच्चे बालिग या समझदार न हो जायें और अपने भले-बुरे की पहचान के योग्य नहीं हो जायें तब तक बाल विवाह किसी भी स्थिति में नहीं किये जाने चाहिये। यह भी वैज्ञानिक परिणामों से स्पष्ट है कि बाल विवाह से अच्छे स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा का अधिकार, खेलने-कूदने के अवसर हासिल नहीं होते।

कच्ची उम्र में शादी होने से स्वास्थ्य एवं जननांगों पर खराब असर पड़ता है जिसे बच्चों को ताउम्र झेलना पड़ता है। बाल विवाह के समर्थक इसके पक्ष में अनेक कुतर्कों का सहारा लेकर समाज को गुमराह करने का कुत्सित प्रयास करते हैं। अनेक अभिभावक यह मानते हैं कि जल्दी विवाह से लड़कियों को यौन हिंसा से बचाया जा सकता है।

सामाजिक चेतना के अभाव और कानून की शिथिलता के कारण निश्चय ही बाल विवाह की सामाजिक कुरीति को बढ़ावा मिलता है। बाल विवाह को रोकने के लिए समाज में जन चेतना के प्रयास आवश्यक हैं। पिछले कुछ दशकों से इस दिशा में किये गये प्रयासों का असर देखने को मिला है। शिक्षित समाज ने इस सामाजिक बुराई को समझा है।

मगर ग्रामीण तबका आज भी बाल विवाह का पक्षधर है। इस तबके को समझाने के लिए साम, दाम, दण्ड और भेद के जरिये बाल विवाह को रोकने के सभी सम्भव प्रयास करने होंगे। इसके लिए बुजुर्गों का सहयोग जरूरी है। आखातीज पर बड़े स्तर पर बाल विवाह होते हैं जिन्हें रोकने के लिए सामाजिक चेतना और सामूहिक सहभागिता जरूरी है।

बाल मुकुन्द ओझा

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