एकबार फिर वही हो गया,जो वास्तव में नहीं होना चाहिए था।आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के कस्सीबुग्गा स्थित श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में 01 नवंबर 2025 शनिवार को भगदड़ में कुल नौ लोगों की मौत हो गई तथा इस हादसे में 13 लोग घायल हो गए। मृतकों में 8 महिलाएं व एक बच्चा शामिल बताए जा रहें हैं, वास्तव में यह बहुत ही दुखद घटना है। जानकारी के अनुसार श्री वेंकटेश्वर मंदिर में सुबह करीब 11:30 बजे भगदड़ की घटना हुई। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार मंदिर में करीब 2500 श्रद्धालुओं के पहुंचने की व्यवस्था है, लेकिन वहां इस क्षमता से पांच गुना अधिक लोग अचानक पहुंच गए। इस दौरान लोगों की धक्का-मुक्की से मंदिर रेलिंग टूट गई और भगदड़ मच गई।दरअसल, एकादशी के दिन काशीबुग्गा स्थित वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी थी। अधिकारियों का मानना है कि भीड़ प्रबंधन में लापरवाही, सुरक्षा योजना का अभाव, चल रहा निर्माण कार्य और आधिकारिक मंज़ूरी का अभाव, ये सब मिलकर इस त्रासदी/हादसे का कारण बने। जानकारी के अनुसार मंदिर के सकरे प्रवेश द्वार से ही बाहर आने और अंदर जाने का रास्ता था,जिससे जाम की स्थिति पैदा हो गई और अफरा-तफरी और बढ़ गई। मीडिया रिपोर्टों से पता चला है कि जिस जगह पर तीर्थयात्री इकट्ठा हुए थे, वहां निर्माणाधीन था, जिससे आवाजाही के लिए जगह कम हो गई और भीड़ और बढ़ गई। बताया जा रहा है कि मंदिर एक निजी तीर्थस्थल था, जो धर्मस्व विभाग के तहत पंजीकृत नहीं था तथा कार्यक्रम आयोजकों ने इतनी ज्यादा भीड़ के लिए कोई अनुमति नहीं ली थी।साथ ही,राज्य सरकार को भी इस कार्यक्रम के बारे में पहले से सूचित नहीं किया गया था।इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘श्रीकाकुलम जिले के काशीबुग्गा वेंकटेश्वर मंदिर में हुई भगदड़ से मुझे बहुत दुख हुआ। यह बहुत दुखद है कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में श्रद्धालुओं की मृत्यु हो गई। मैं पीड़ितों के परिवारों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूँ।’ इस हादसे पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु व पीएम नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त करते हुए मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख रुपए और घायलों को 50-50 हजार रुपए दिए जाने की घोषणा की है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि भगदड़ एक ऐसी स्थिति है जब बड़ी संख्या में लोग अचानक किसी भय, अफवाह या आपात स्थिति में एक साथ भागने लगते हैं। यह भीड़ के नियंत्रण से बाहर हो जाने पर होती है, जिससे अव्यवस्था और दबाव उत्पन्न होता है।अक्सर भगदड़ में लोग एक-दूसरे पर गिर पड़ते हैं और गंभीर चोटें या मृत्यु तक हो जाती है तथा ऐसी घटनाएं अक्सर मंदिरों, रेल स्टेशनों, खेल मैदानों, रैलियों जैसी जगहों पर अधिक होती हैं। भगदड़ मानव जीवन और सामाजिक व्यवस्था के लिए अत्यंत खतरनाक परिस्थिति मानी जाती है। यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि पिछले बीस-पच्चीस सालों के दौरान मंदिरों, विभिन्न धार्मिक आयोजनों और मेलों में हुई भगदड़ की घटनाओं में सैकड़ों लोगों की जान गई है और दुखद पहलू यह है कि अधिकतर हादसे भीड़-नियंत्रण की कमी, अपर्याप्त सुरक्षा व्यवस्थाओं,संकरे स्थानों, बहुत अधिक भीड़ के जुटने, अफवाहों और प्रशासनिक लापरवाही के कारण हुए हैं। दरअसल,हमारा देश एक ऐसा देश है जहां विभिन्न सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में हर साल लाखों-करोड़ों शामिल होते हैं। फिर चाहे वह कुंभ मेला हो, मंदिरों में दर्शन हो, तीज-त्योहारों का कोई अवसर हो अथवा सत्संग वगैरह, हम भारतीय बहुत आस्थावान लोग हैं। ऐसे अवसरों पर अक्सर प्रबंधन की कमी, जानलेवा साबित होती है और बहुत सी घटनाएं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण भी हैं।यह बहुत ही अफसोसजनक बात है कि साल-दर-साल मची इन भगदड़ों में सैकड़ों निर्दोष ज़िंदगियां चली जाती हैं, जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। हाल फिलहाल, इस साल यानी कि वर्ष 2025 की ही बात करें तो 8 जनवरी 2025 को तिरुपति के श्री वेंकटेश्वर मंदिर में,29 जनवरी 2025 (प्रयागराज) में महाकुंभ के संगम क्षेत्र में ‘अमृत स्नान’ के दिन,15 फरवरी 2025 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर प्रयागराज कुंभ में शामिल होने के लिए ट्रेन पकड़ने की होड़ के चलते, तथा 3 मई 2025 को गोवा के श्री लैरे देवी मंदिर के वार्षिक मेले में पूजा-अर्चना के दौरान भगदड़ की घटनाएं घट चुकीं हैं तथा जिनमें क्रमशः तिरूपति आंध्र प्रदेश में कुल 6, महाकुंभ में 30, नई दिल्ली स्टेशन पर 18, तथा गोवा में 6 लोगों की मौत हुई। इससे पहले वर्षों में भी अब तक भगदड़ की अनेक घटनाएं घटित हो चुकीं हैं, और सबसे दुःखद यह है कि हम पूर्व में घटित घटनाओं/हादसों से कोई भी सबक नहीं लेते हैं। जब भी कोई घटना घटित होती है,तो एक बार खूब हंगामा मचता है और बाद में स्थिति ढाक के तीन पात वाली हो जाती है। बहरहाल, अंत में संक्षेप में यही कहूंगा कि हमारे देश में भगदड़ की घटनाएं अक्सर विभिन्न धार्मिक आयोजनों, त्योहारों, रेल या सड़क हादसों और भीड़भाड़ वाले स्थलों पर होती हैं। ये हादसे कहीं न कहीं प्रबंधन(मैनेजमेंट) की कमी, अफवाहों और सुरक्षा इंतज़ामों के अभाव के कारण बढ़ जाते हैं। हाल की कई घटनाओं ने यह दिखाया है कि भीड़ नियंत्रण और आपातकालीन निकासी के लिए हमारे यहां पर्याप्त तैयारियां नहीं होतीं हैं। बहरहाल, यहां यह गौरतलब है कि इसी साल 8 जनवरी को तिरुपति में हुई भगदड़ के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने धार्मिक स्थलों पर सुरक्षा के इंतजाम करने के निर्देश दिए थे। हालांकि इन उपायों को कही भी लागू नहीं किया गया। वास्तव में, ऐसे हादसों से हमें सबक लेना चाहिए कि भीड़ प्रबंधन एक गंभीर जिम्मेदारी है। सरकार, पुलिस और आयोजकों को मिलकर सुव्यवस्थित प्रवेश-निकास मार्ग बनाने चाहिए। इतना ही नहीं, लोगों में भी संयम और अनुशासन का भाव भी बहुत ही जरूरी व आवश्यक है। तकनीक का उपयोग कर भीड़ की निगरानी और दिशा-निर्देश देना मददगार साबित हो सकता है। प्रशिक्षण प्राप्त सुरक्षाकर्मी हर छोटे-बड़े बड़े आयोजन का हिस्सा होने चाहिए।हर कहीं पर सुरक्षा मानकों का पालन अनिवार्य किया जाना चाहिए। सतर्कता और संयम तो बनाए रखना जरूरी है ही। दूसरे शब्दों में कहें तो संयम, अनुशासन और सतर्कता से ही भगदड़ जैसी दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है। लाउडस्पीकर से लगातार दिशा-निर्देश दिए जाएं ताकि अफवाहें न फैलें। दूसरे शब्दों में कहें तो संचार व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए, ताकि सूचना तुरंत पहुंचाई जा सके। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रशासन को सुरक्षा प्रबंधन, बैरिकेडिंग और चिकित्सा सहायता की व्यवस्था पहले से ही सुनिश्चित करनी चाहिए। कहना ग़लत नहीं होगा कि भीड़ प्रबंधन के लिए प्रभावी रणनीतियाँ अपनाना किसी भी बड़े आयोजन या आपात स्थिति में जनसुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। आयोजन स्थल का पूर्व सर्वेक्षण और योजना बनानी चाहिए, ताकि संभावित जोखिमों की पहचान की जा सके। सीसीटीवी कैमरों और मॉनिटरिंग सिस्टम का प्रयोग भीड़ के रुख पर नजर रखने में मदद करता है।आपातकालीन निकासी योजना पहले से तैयार रहनी चाहिए और लोगों को इसके बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। टिकटिंग या एंट्री सिस्टम को नियंत्रित और सीमित रखा जाना चाहिए ताकि संख्या अधिक न हो। साथ ही, प्रशासन और आयोजकों में समन्वय होना बहुत ही महत्वपूर्ण और जरूरी है। स्थानीय स्वयंसेवकों और पुलिस का सहयोग लेकर स्थिति पर मानवीय और संयमित नियंत्रण बनाए रखा जा सकता है।भगदड़, सामूहिक भय और असंगठित व्यवहार का परिणाम मानी जाती है। अतः भगदड़ रोकने के लिए प्रशासनिक सजगता और जनता की समझदारी बहुत ही महत्वपूर्ण और आवश्यक है, तभी हम भगदड़ जैसी त्रासदियां रोक सकते हैं।
-सुनील कुमार महला


