इस्लामाबाद। पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के प्रमुख बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया है जिसने भारत-पाक संबंधों में एक बार फिर से राजनीतिक सरगर्मी पैदा कर दी है। उन्होंने कहा है कि यदि किसी व्यक्ति पर जांच के दायरे में आने वाले गंभीर आरोप हों और भारत उसकी मांग करे, तो उसे भारत को सौंपा जा सकता है। इस बयान को जहां एक ओर कुछ लोग एक “नरम पड़ती नीति” के संकेत के तौर पर देख रहे हैं, वहीं पाकिस्तान में विपक्ष और कट्टरपंथी हलकों में यह बयान ‘राष्ट्रहित के खिलाफ’ बताया जा रहा है। हम आपको बता दें कि बिलावल का यह बयान ऐसे समय आया है जब पाकिस्तान आंतरिक अस्थिरता, आर्थिक बदहाली और बढ़ते आतंकी नेटवर्क से जूझ रहा है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की छवि लगातार खराब हो रही है और FATF जैसे मंचों पर उस पर निगरानी की तलवार लटकी हुई है। ऐसे में भारत के प्रति कुछ हद तक सकारात्मक संकेत देने की कोशिश की जा रही है ताकि कूटनीतिक दबाव को कुछ कम किया जा सके। साथ ही भारत के साथ प्रत्यर्पण पर सार्वजनिक रूप से ऐसा बयान देना यह दिखाता है कि पाकिस्तान की युवा राजनीतिक पीढ़ी, विशेषकर बिलावल भुट्टो जैसे नेता, वैश्विक दबावों को समझते हुए यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना चाहते हैं। परंतु यह सवाल भी उठता है कि क्या यह बयान वास्तव में नीति परिवर्तन का संकेत है या फिर यह केवल एक “छवि निर्माण” की रणनीति भर है? हम आपको याद दिला दें कि हाल ही में बिलावल ने सिंधु जल संधि को भारत द्वारा स्थगित किये जाने के मुद्दे पर कहा था कि यदि पानी नहीं बहेगा तो खून बहेगा।
भारत को वांछित अपराधी सौंपने पर राजी हुए बिलावल भुट्टो, पाकिस्तान में मचा सियासी तूफान
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