बिहार चुनाव : यह महासंग्राम है दीये और तूफ़ान का

ram

बिहार विधानसभा चुनाव अपने परवान पर है। एनडीए और महागठबंधन के बीच आक्रामक चुनावी जंग की बिसात बिछ गई है। सियासी पार्टियों ने चुनाव जीतने के लिए साम, दाम, दंड और भेद को अपना चुनावी हथियार बना लिया है। मुफ्त रेवड़ियों की बौछारों के बीच इस चुनाव में एक बार फिर 36 साला युवा तेजस्वी का 75 साल के बुजुर्ग नीतीश कुमार से मुकाबला है। इसे दीये और तूफ़ान की लड़ाई कहे तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पिछले विधानसभा चुनाव में बहुत कम सीटों यानि मात्र 15 सीटों से लालू – तेजस्वी के नेतृत्व वाले महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा। इस बार फिर तेजस्वी, मुख्यमंत्री नीतीश से दो दो हाथ कर रहे है। इस चुनाव में दो पेच जबरदस्त तरीके से भिड़ रहे है। नीतीश दीये की तरह टिमटिमा रहे है वहीं तेजस्वी का युवा जोश तूफानी साबित हो रहा है। यदि यह चुनावी दंगल सिर्फ तेजस्वी और नीतीश के बीच होता तो निश्चय ही नीतीश की हार तय मानी जा रही थी। दोनों के सियासी भविष्य के साथ प्लस माइनस स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे है। है। थके हारे नीतीश के साथ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी दमखम के साथ खड़े है। यह एनडीए के साथ प्लस पॉइंट है। तेजस्वी यादव बेहद आक्रामक तरीके से अपना चुनाव लड़ रहे है। उनके साथ माइनस पॉइंट के रूप में जंगल राज, चारा कांड तथा नौकरी के बदले जमीन जैसे घोटाले जिन्न के रूप में पीछा नहीं छोड़ रहे है।
बिहार में विधान सभा के चुनाव की सियासत गरमा रही है। इसी के मधे नज़र आरोप प्रत्यारोप की सियासत तेज हो गई है। विपक्षी पार्टियों के नेता नीतीश की मानसिक स्थिति पर हमले करने में नहीं चूक रहे है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है चुनाव में सियासत में कई रंग देखने को मिल रहे है। बिहार की राजनीति जातीय वोटों में बंटी हुई है। विश्लेषकों की राय है तेजस्वी का मज़बूत पक्ष उनका यादव और मुस्लिम मतों का गठजोड़ है। वहीं नीतीश की झोली में 15 प्रतिशत वोट पुख्ता है और भाजपा का साथ मिलने से उनके गठबंधन एनडीए की मज़बूत स्थिति का दावा किया जा रहा है। नीतीश के इन्हीं वोटों को तोड़ने के लिए विपक्षी उन पर ताबड़तोड़ हमला कर रहे है। बिहार की सियासत के खेल बड़े अजब गजब है। पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव को चारा कांड में सजा होने के बाद प्रदेश की सियासत वर्तमान मुख्य मंत्री और जेडी यू के सर्वेसर्वा नीतीश कुमार के इर्द गिर्द घूम रही है। नीतीश के पाला बदलने की कहानी काफी रोमांचक है। पिछले दो दशकों से यही कहानी बार बार दोहराई जा रही है। इसके बावजूद नीतीश सत्ता पर मज़बूती से जमे हुए है। हालांकि लालू और नीतीश मिलते मिलाते, लड़ते झगड़ते अब बुजुर्ग की श्रेणी में आ गए है। लालू सहारा लेकर चलते है तो नीतीश की मानसिक स्थिति पर सवाल उठाये जाने लगे है।
सियासी समीक्षकों का कहना है, बिहार विधानसभा चुनाव का असर राष्ट्रीय राजनीति पर निश्चित रूप से पड़ेगा। यह कहने वालों की कोई कमी नहीं है कि मगध में सता की हनक दिल्ली तक शिद्दत से महसूस की जाएगी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडी यू के पास लोकसभा की 12 सीटें है। यदि नीतीश और मोदी बिहार का चुनाव हार जाते है तो इसका असर नीतीश की पार्टी पर पड़ेगा और आरजेडी सुप्रीमों को विश्वास है उस स्थिति में नीतीश के गिरते स्वास्थ्य का फायदा उठाकर उनकी पार्टी में सेंध लगाने में सफल हो जायेंगे। हालाँकि हाल फिलहाल यह दूर की कौड़ी है। बिहार चुनाव को लेकर समय एनडीए एकजुट है। आरजेडी सुप्रीमो लालू के बेटे तेजस्वी को विश्वास है कि यदि बिहार फ़तेह कर लिया तो नीतीश की पार्टी में भगदड़ मच जाएगी और अंततोगत्वा इसका सीधा नुक्सान मोदी सरकार को होगा। इसके बाद चंद्रबाबू नायडू को भी मोदी से भटकाया जा सकता है। एनडीए के सूत्रों का कहना है सपना लेने का अधिकार सब को है। उनका सपना तो टूटेगा ही साथ ही एनडीए फिर बिहार में अपनी सरकार बना लेगा। बहरहाल चुनावी सरगर्मियां बिहार में बहुत तेजी पर है। यह चुनाव एक राज्य का चुनाव न होकर राष्ट्रीय स्थिति पर सियासी तस्वीर बदलने वाले चुनाव के रूप में लड़ा जा रहा है । वक्फ संशोधन कानून बनने के बाद बिहार में यह पहला चुनाव होगा। देखना होगा कि नीतीश मुस्लिम मतदाताओं का वोट अपनी झोली में ले जाते है या नहीं। वक्फ विधेयक के चलते मुस्लिम नेताओं के इस्तीफे से पार्टी के अल्पसंख्यक चेहरों की कमी हुई है। नीतीश को मुस्लिम वोटों का नुक्सान होने का अंदेशा है मगर कहा जा रहा है इसकी भरपाई भाजपा और चिराग पासवान की पार्टी से हो जायेगा। इसी बीच चुनावी रणनीतिकार और जन सुराज पार्टी के मुखिया प्रशांत किशोर दोनों ही गठबंधनों के खिलाफ बिगुल बज़ा चुके है। प्रशांत ने लोगों से नया बिहार बनाने के लिए उनका समर्थन माँगा है। यह कहने वालों की कमी भी नहीं है की बिहार में भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहती है और नीतीश के लिए संभवत यह आखिरी चुनाव होगा। हालाँकि यह तो चुनावी नतीजे ही बता पाएंगे कि बिहार का ताज लोग किसे सौंपते है। बहरहाल बिहार के साथ देशभर के लोगों की निगाहे इस चुनाव पर नज़रे गड़ाये हुए है।

-बाल मुकुन्द ओझा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *