सेहत के लिए वरदान आयुर्वेद को मिली वैश्विक पहचान

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भारत सरकार ने हर वर्ष 23 सितम्बर को आयुर्वेद दिवस मनाने का फैसला किया है। इससे पूर्व यह दिवस धनतेरस के दिन मनाया जाता था। आयुर्वेद की वैश्विक पहचान कायम करने के लिए यह निर्णय लिया गया बताया। इस वर्ष की थीम आयुर्वेद जन जन एवं पृथ्वी के कल्याण के लिए है रखी गई है। इस थीम का उद्देश्य है कि आयुर्वेद सिर्फ मनुष्यों के लिए ही नहीं बल्कि विश्व की वनस्पतियों और प्रकृति के संरक्षण के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सरकार की अगले वर्षों में इसे और बड़े स्तर पर मनाने की योजना है ताकि विश्वभर में आयुर्वेद को लेकर जागरूकता बढ़े और इसकी वैज्ञानिक मान्यता मजबूत हो। आयुष मंत्रालय के मुताबिक वर्ष 2024 में आयुर्वेद दिवस पर लगभग 150 देशों में गतिविधियों का आयोजन किया गया जो आयुर्वेद की बढ़ती वैश्विक पहुंच की पुष्टि करता हैं। इस वर्ष यह संख्या और भी अधिक होने की उम्मीद है। इस साल का मुख्य आयोजन अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान गोवा में होगा। गोवा, जो पर्यटन और वेलनेस के क्षेत्र में पहले ही एक अंतरराष्ट्रीय पहचान रखता है, अब भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली का वैश्विक द्वार बन गया है।
आयुर्वेद को हमारे देश में सेहत का खजाना कहा जाता है। आयुर्वेद की जड़ी-बूटी अपने भीतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के कई गुण समेटे हुए है। आज दुनिया में भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का डंका बज रहा है। विश्व के सभी देशों में आयुर्वेद पहुंच गया है। आयुर्वेद न केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि समग्र स्वास्थ्य के बारे में बात करता है। बारिश के मौसम में बीमारियां भी जल्दी पकड़ लेती हैं। सर्दी-जुकाम, बुखार, स्किन इंफेक्शन, पेट की समस्याएं और इम्युनिटी कमजोर होना आम बात हो जाती है। ऐसे में जरूरी है कि हम अपनी सेहत का खास ध्यान रखें। अगर आप बिना दवा के इन परेशानियों से दूर रहना चाहते हैं, तो आयुर्वेदिक नुस्खे आपकी मदद कर सकते हैं। आयुर्वेद में कुछ ऐसे आसान और असरदार उपाय बताए गए हैं, जो मॉनसून के मौसम में आपकी इम्युनिटी बढ़ाने और बीमारियों से बचाने में काफी कारगर साबित हो सकते हैं। आयुर्वेद के घरेलू नुस्खे इतने ज्यादा कारगर हैं कि डॉक्टर और मेडिकल साइंस भी उन्हें मानने से मना नहीं करते हैं। हल्दी वाला दूध हो या नमक मिले गरम पानी के गरारे जुकाम और गले दर्द में दोनों ही कारगर इलाज है। अदरक को पानी में उबालकर और फिर शहद के साथ खाया जाए तो यह कफ, गले में खराश और गला खराब होने की दिक्कत से छुटकारा दिला सकती है। अदरक को शहद के साथ खाने से गले में होने वाली सूजन और जलन में भी राहत मिलती है। इसी भांति अजवायन, लोंग, काली मिर्च, तुलसी गिलोय, मलेठीयुक्त पान, शहद, दालचीनी आदि के नुस्खे भी संजीवनी साबित हुए है। उल्टा लेटकर ऑक्सीजन प्राप्त करने के नुस्खे को एलोपेथी की मान्यता मिली है। यही नहीं इनमें से ज्यादातर नुस्खों का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।
आयुर्वेद का जन्म लगभग पांच हजार वर्ष पहले भारत में हुआ था। इस औषधि का वर्णन करने वाले प्राचीन ग्रंथ 1500 ईसा पूर्व के हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी आयुर्वेद को एक पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के रूप में स्वीकार किया गया है। आयुर्वेद प्राचीन भारतीय प्राकृतिक और समग्र वैद्य-शास्त्र चिकित्सा पद्धति है। संस्कृत भाषा में आयुर्वेद का अर्थ है जीवन का विज्ञान। आयुर्वेद के अनुसार व्यक्ति के शरीर में वात, पित्त और कफ जैसे तीनों मूल तत्त्वों के संतुलन से कोई भी बीमारी नहीं हो सकती, परंतु यदि इनका संतुलन बिगड़ता है, तो बीमारी शरीर पर हावी होने लगती है। अंग्रेजी दवाएं रोग से लड़ने के लिए डिजाइन की जाती हैं, वहीं आयुर्वेदिक औषधियां रोग के विरुद्ध शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती हैं ताकि आपका शरीर खुद उस रोग से लड़ सके। आयुर्वेद के अनुसार कोई भी शारीरिक रोग शरीर की मानसिक स्थिति, त्रिदोष या धातुओं का संतुलन बिगड़ने के कारण होती है। आयुर्वेद चिकित्सक मरीज की रोग प्रतिरोध क्षमता, जीवन शक्ति, पाचन शक्ति, दैनिक दिनचर्या, आहार संबंधी आदतों और यहां तक कि उसकी मानसिक स्थिति की जांच करके रोग निदान करते हैं। आयुर्वेद रोग को जड़ से खत्म करता है। हम कह सकते है आयुर्वेद स्वास्थ्य की देखभाल करने की कारगर प्रणाली है। चरक संहिता के अनुसार आयुर्वेद का उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी के विकारों को खत्म करना है। आयुर्वेद का अर्थ ही है आयु को जानने का संपूर्ण विज्ञान। आयुर्वेद सिर्फ एक चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है।
आयुर्वेद और योग भारत द्वारा पूरे मानव समाज और पृथ्वी को दिया अनमोल उपहार है। आयुर्वेद प्राकृतिक एवं समग्र स्वास्थ्य की पुरातन भारतीय पद्धति है। यदि हमें प्रकृति को बचाना है तो पर्यावरण संरक्षण पर जोर देना होगा। औषधीय पेड़-पौधे लगाने होंगे। जिससे पर्यावरण दूषित होने से तो बचेगा ही, साथ ही आयुर्वेद का प्रसार भी होगा।

-बाल मुकुन्द ओझा

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