पटना। लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विधानमंडलों की बैठकों की घटती संख्या और उनकी गरिमा और मर्यादा में कमी की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि विधानमंडल चर्चा- संवाद के मंच हैं और जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करें। लोक सभा अध्यक्ष ने आगाह किया कि बैठकों की संख्या कम होने के कारण विधानमंडल अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने में विफल हो रहे हैं। उन्होंने विधिनिर्माताओं से आग्रह किया कि वे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों के समाधान के लिए कुशलता से कार्य करते हुए सदन में समय का उपयोग प्रभावी ढंग से करने को प्राथमिकता दें और सुनिश्चित करें कि जनता की आवाज पर्याप्त रूप से उठाई जाए । उन्होंने यह भी कहा कि हमारे सदनों की गरिमा और प्रतिष्ठा को बढ़ाना अति आवश्यक है। उन्होंने सुझाव दिया कि सभी दलों को सदन में सदस्यों के आचरण के संबंध में अपनी आचार संहिता बनानी चाहिए ताकि लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान हो । बिरला ने कहा कि जनप्रतिनिधियों को राजनीतिक विचारधारा और संबद्धता से ऊपर उठकर संवैधानिक मर्यादा का पालन करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जनप्रतिनिधियों को अपनी विचारधारा और दृष्टिकोण व्यक्त करते समय स्वस्थ संसदीय परंपराओं का पालन करना चाहिए। उन्होंने आज पटना में बिहार विधानमंडल परिसर में 85वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन (एआईपीओसी) का उद्घाटन करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
इस बात पर जोर देते हुए कि पीठासीन अधिकारियों को संविधान की भावना और उसके मूल्यों के अनुरूप सदन चलाना चाहिए, बिरला ने कहा कि पीठासीन अधिकारियों को सदनों में अच्छी परंपराएं और परिपाटियाँ स्थापित करनी चाहिए और लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत बनाना चाहिए। लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करते हुए पीठासीन अधिकारियों को विधानमंडलों को लोगों के प्रति अधिक जवाबदेह बनाना चाहिए और उनके माध्यम से लोगों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करना चाहिए। उन्होंने आग्रह किया कि एआईपीओसी की तरह राज्य विधान सभाओं को भी अपने स्थानीय निकायों के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के मंच तैयार करने चाहिए।
विधानमंडलों को अधिक प्रभावी और कुशल बनाने पर जोर देते हुए, बिरला ने पीठासीन अधिकारियों से विधानमंडलों के कामकाज में प्रौद्योगिकी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और सोशल मीडिया के उपयोग को बढ़ावा देने का आग्रह किया। इस बात पर ज़ोर देते हुए कि संसद और राज्य विधानमंडलों को जनता के लिए अधिक सुलभ बनाना समय की मांग है, उन्होंने सुझाव दिया कि तकनीकी नवाचारों के माध्यम से विधायी कार्यों की जानकारी आम जनता को उपलब्ध कराई जा सकती है। यह टिप्पणी करते हुए कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित साधनों से संसदीय और विधायी कार्यवाही में पारदर्शिता और प्रभावशीलता बढ़ाई जा सकती है, बिरला ने कहा कि भारत की संसद ने इस प्रक्रिया की शुरुआत पहले से ही कर दी है जिसके सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं। इस संदर्भ में, बिरला ने बताया कि 2025 के अंत तक ‘एक राष्ट्र, एक विधायी मंच’ का कार्य पूरा हो जाएगा ।
बिरला ने इस बात पर बल दिया कि सहमति और असहमति के बीच सदनों में अनुकूल वातावरण में काम होना चाहिए ताकि कार्योत्पादकता अधिक हो । उन्होंने बेहतर जवाबदेही और पारदर्शिता के लिए सदनों और समितियों की दक्षता में सुधार करने पर भी जोर दिया। अध्यक्ष महोदय ने कहा कि हमारी संसदीय समितियों की कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए सभी विधानमंडलों की समितियों के बीच संवाद होना चाहिए तथा समितियों का कार्य वास्तविक तथ्यों पर आधारित होना चाहिए ताकि जनता के धन का उपयोग बेहतर ढंग से हो तथा अधिक से अधिक लोगों का कल्याण हो ।
राज्य विधान सभाओं की स्वायत्तता को संघीय ढांचे का आधार बताते हुए बिरला ने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची में उल्लिखित यह शक्ति तभी सार्थक होगी जब राज्य विधानमंडल निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा के साथ अपना कार्य करें। अध्यक्ष महोदय ने कहा कि राज्यों के विधायी निकायों को अपनी शक्तियों का उपयोग इस प्रकार की नीतियां बनाने में करना चाहिए जो स्थानीय आवश्यकताओं और लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप हों तथा देश की सर्वांगीण प्रगति में भी सहायक हों।