हर सांस जो हम भरते हैं, हर किरण जो सूरज से झरती है, और हर बूंद जो पृथ्वी को सींचती है — प्रकृति की ये सभी सौगातें हमें अनमोल जीवन देती हैं। लेकिन क्या हम वास्तव में इस जीवनदायिनी प्रकृति के ऋण को समझ पा रहे हैं? आधुनिकता की अंधी दौड़ में हमने जीवाश्म ईंधनों की लत में धरती को इतना प्रदूषित कर दिया है कि अब वह खुद कराहने लगी है। इन्हीं कराहों को सुनकर, हर वर्ष 10 अगस्त को विश्व जैव ईंधन दिवस मनाया जाता है — एक ऐसा दिन जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम ऊर्जा के स्रोतों को लेकर किस दिशा में जा रहे हैं, और क्या कोई हरित विकल्प हमारे हाथ में है। यह दिन केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक आह्वान है — एक ऐसी दुनिया की ओर बढ़ने का, जहां ऊर्जा का स्रोत न केवल टिकाऊ हो, बल्कि धरती के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी दर्शाए।
जैव ईंधन की शुरुआत 1893 में सर रूडॉल्फ डीज़ल ने मूंगफली के तेल से इंजन चलाकर की, जो आज पर्यावरण संरक्षण, ऊर्जा आत्मनिर्भरता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाली क्रांति बन चुका है। बायोएथेनॉल और बायोडीज़ल जैसे जैव ईंधन गन्ना, मक्का, शैवाल और कृषि अपशिष्ट से बनते हैं, जो जीवाश्म ईंधनों की तुलना में कम कार्बन उत्सर्जन करते हैं और कार्बन चक्र को संतुलित रखते हैं। विश्व बैंक (2022) के अनुसार, जैव ईंधन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 20-60% तक कम हो सकता है, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने का प्रभावी कदम है।
भारत, जहां 70% से अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, में जैव ईंधन का महत्व अत्यधिक है। संशोधित राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति 2022 के तहत, सरकार ने 2025-26 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य रखा है। इससे भारत की 80% कच्चे तेल आयात पर निर्भरता कम होगी और किसानों को फसलों व अपशिष्टों से अतिरिक्त आय मिलेगी। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में गन्ने से बायोएथेनॉल उत्पादन ने लाखों किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त किया। 2023 में 4.3 बिलियन लीटर बायोएथेनॉल उत्पादन से 50,000 करोड़ रुपये की तेल आयात बचत हुई, जो ऊर्जा आत्मनिर्भरता और ग्रामीण आर्थिक क्रांति का प्रतीक है।
जैव ईंधन का एक और महत्वपूर्ण पहलू है इसका पर्यावरणीय प्रभाव। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, वायु प्रदूषण हर साल वैश्विक स्तर पर 70 लाख से अधिक असमय मृत्यु का कारण बनता है। जीवाश्म ईंधनों से चलने वाले वाहनों का धुआं सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे हानिकारक प्रदूषकों को वायुमंडल में छोड़ता है। इसके विपरीत, बायोडीज़ल और बायोएथेनॉल से चलने वाले वाहन 30-50% कम प्रदूषक उत्सर्जन करते हैं, जिससे शहरी क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता में सुधार होता है। दिल्ली जैसे शहर, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) अक्सर खतरनाक स्तर को छूता है, जैव ईंधन का उपयोग एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है।
हालांकि, जैव ईंधन की राह में कई चुनौतियां भी हैं। पहली पीढ़ी के जैव ईंधन, जो खाद्य फसलों जैसे मक्का और गन्ने से बनते हैं, खाद्य सुरक्षा पर दबाव डाल सकते हैं। विश्व खाद्य संगठन (एफएओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 10% जैव ईंधन उत्पादन खाद्य फसलों पर निर्भर है, जिससे खाद्य कीमतों में 5-10% की वृद्धि हो सकती है। इस समस्या से निपटने के लिए दूसरी पीढ़ी (2जी) और तीसरी पीढ़ी (3जी) के जैव ईंधन पर ध्यान देना जरूरी है। 2जी जैव ईंधन कृषि अपशिष्ट, जैसे भूसा और गन्ने की खोई, से बनते हैं, जबकि 3जी जैव ईंधन शैवाल और सूक्ष्मजीवों जैसे गैर-खाद्य स्रोतों से। भारत में, पुणे में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की 2जी बायोएथेनॉल रिफाइनरी एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो प्रतिदिन 100 किलोलीटर बायोएथेनॉल का उत्पादन कर रही है।
जैव ईंधन के क्षेत्र में तकनीकी नवाचार भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। शैवाल-आधारित जैव ईंधन, जो तीसरी पीढ़ी का हिस्सा हैं, एक एकड़ में पारंपरिक फसलों की तुलना में 10 गुना अधिक ईंधन उत्पादन कर सकते हैं। इसके अलावा, शैवाल कार्बन डाई-आक्साइड को अवशोषित करते हैं, जिससे वे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ दोहरी भूमिका निभाते हैं। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार, 2050 तक वैश्विक ऊर्जा मिश्रण में जैव ईंधन की हिस्सेदारी 27% तक बढ़ सकती है, बशर्ते तकनीकी और नीतिगत समर्थन मिले।
जैव ईंधन को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक और शैक्षिक जागरूकता को और प्रभावी ढंग से बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत में ग्रामीण समुदायों को जट्रोफा की खेती या बायोगैस संयंत्रों की स्थापना जैसे जैव ईंधन उत्पादन से जोड़ना न केवल उनकी आय को बढ़ाएगा, बल्कि ऊर्जा साक्षरता को भी गति देगा। स्कूलों और विश्वविद्यालयों में जैव ऊर्जा पर केंद्रित पाठ्यक्रम शुरू करने से युवा वैज्ञानिकों को इस क्षेत्र में अनुसंधान के लिए प्रेरित किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली और खड़गपुर में स्थापित जैव ऊर्जा शोध केंद्र नवाचार को बढ़ावा दे रहे हैं, जो इस दिशा में एक मज़बूत कदम है।
वैश्विक स्तर पर भी जैव ईंधन का महत्व बढ़ रहा है। ब्राजील, जो बायोएथेनॉल उत्पादन में विश्व नेता है, ने 2023 में 35 बिलियन लीटर बायोएथेनॉल का उत्पादन किया, जो इसके कुल ईंधन खपत का 30% है। अमेरिका और यूरोपीय संघ भी बायोडीज़ल और बायोएथेनॉल के उपयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत इन देशों से प्रेरणा ले सकता है, लेकिन इसके लिए नीतिगत स्थिरता, निवेश, और बुनियादी ढांचे के विकास की जरूरत है।
विश्व जैव ईंधन दिवस हमें यह याद दिलाता है कि ऊर्जा का भविष्य केवल तकनीक में नहीं, बल्कि हमारी सोच और व्यवहार में बदलाव में निहित है। यह एक अवसर है कि हम अपने दैनिक जीवन में छोटे-छोटे कदम उठाएं — जैसे बायोडीज़ल से चलने वाली गाड़ियों को प्राथमिकता देना, बायोगैस संयंत्रों को अपनाना, या अपशिष्ट प्रबंधन में योगदान देना। यह दिन हमें यह भी सिखाता है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं।
जैव ईंधन केवल एक ईंधन नहीं, बल्कि एक दर्शन है — एक ऐसी दुनिया का दर्शन, जहां मानव और प्रकृति एक-दूसरे के साथ सामंजस्य में रहें। यह हमें उस जिम्मेदारी की याद दिलाता है कि हमारी हर पसंद, चाहे वह ऊर्जा का चयन हो या जीवनशैली, धरती के भविष्य को प्रभावित करती है। 10 अगस्त का यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम न केवल उपभोक्ता बनें, बल्कि प्रकृति के संरक्षक भी बनें। यह एक नई शुरुआत का आह्वान है — एक ऐसी शुरुआत, जो हरित, स्वच्छ, और टिकाऊ भविष्य की नींव रखे।
-प्रो. आरके जैन



