अमित शाह हैं संकटमोचन, संगठनशिल्पी और लौहपुरुष

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भारत की राजनीति में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो केवल पदों से नहीं, अपने कर्म, दृष्टि, दृढ़ता, संकल्प और राष्ट्रभावना से पहचान पाते हैं। अमित अनिलचंद्र शाह ऐसा ही एक नाम है-संघर्षों में तपे, संगठन के शिल्पी और राष्ट्र की सुरक्षा एवं एकता के प्रहरी। एक प्रभावशाली और कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में, अमित शाह का भारतीय राजनीति में एक प्रमुख स्थान है। गृह एवं सहकारिता मंत्री के रूप में उन्होंने भारत की आंतरिक सुरक्षा, सामाजिक एकता और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में जो क्रांतिकारी एवं युगांतकारी कार्य किए हैं, वे उन्हें हमारे समय का ‘लौहपुरुष’ सिद्ध करते हैं-सरदार वल्लभभाई पटेल की परंपरा के सच्चे उत्तराधिकारी। निश्चित ही शाह एक युगांतरकारी एवं युग-निर्माता लोकनायक हैं। उन्हें अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी सहयोगी, कुशल शासक और पार्टी के लिए एक प्रमुख चुनावी रणनीतिकार माना जाता है। एक किशोर के रूप में, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गए। यहीं से उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई। 1987 में वह भाजपा के युवा मोर्चा के सदस्य बने। गुजरात में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान, अमित शाह एक शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाले, जिनमें गृह, कानून और न्याय और परिवहन शामिल थे।
अमित शाह ने सहकारिता मंत्रालय को मात्र एक विभाग नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत के पुनर्जागरण का आंदोलन बना दिया। उनकी दृष्टि में सहकारिता केवल आर्थिक संरचना नहीं, बल्कि ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ का व्यवहारिक दर्शन है। उन्होंने शक्कर कारखानों से लेकर डेयरी, कृषि-उद्योग, बीज उत्पादन और विपणन तक सहकारिता को एक नई गति दी। देश के पहले राष्ट्रीय सहकारिता नीति मसौदे की तैयारी, पीएसी के डिजिटलीकरण और 200,000 प्राथमिक कृषि साख समितियों को मल्टी-डायमेंशनल मॉडल में बदलने की दिशा में उनका काम ऐतिहासिक है। उनके नेतृत्व में सहकारिता अब आत्मनिर्भर भारत की रीढ़ बन चुकी है, जहाँ किसान केवल उत्पादक नहीं, बल्कि साझेदार हैं। अमित शाह ने सहकारिता को नई भाषा दी-“सहकार से समृद्धि”।
भारत के भीतरी हिस्सों में दशकों से नक्सलवाद ने भय, असुरक्षा और विकासहीनता का माहौल बनाया था। अमित शाह के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने ‘समग्र रणनीति’ के तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में निर्णायक कार्रवाई की। कानून-व्यवस्था, खुफिया सूचना और स्थानीय विकास के त्रिस्तरीय ढांचे पर आधारित इस नीति ने नक्सलवाद को जड़ों से हिला दिया। आज भारत के 90 प्रतिशत से अधिक नक्सल क्षेत्र शांति के मार्ग पर लौट रहे हैं, निकट भविष्य में भारत नक्सल मुक्त राष्ट्र बन जायेगा, यह अमित शाह की सूझबूझ, संकल्प और दृढ़ता का परिणाम है। उनका विश्वास रहा-“गोलियों से नहीं, विकास और संवाद से आतंक मिटाया जा सकता है।” उनकी अलग कार्यशैली की झलक अध्यक्ष बनने के बाद से ही पार्टी को दिखने लगी थी। अमित शाह का नाम जम्मू-कश्मीर के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। उनकी रणनीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अनुच्छेद 370 का हटाया जाना केवल एक संवैधानिक निर्णय नहीं, बल्कि राष्ट्र की अखंडता का संकल्प था। यह उस विभाजनकारी मानसिकता पर अंतिम प्रहार था जिसने वर्षों तक कश्मीर को अलगाव की आग में झोंक रखा था। आज घाटी में तिरंगा गर्व से लहराता है, पर्यटन और निवेश के नए द्वार खुल रहे हैं, और युवाओं में आत्मविश्वास लौट रहा है-यह अमित शाह की निर्भीक राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिणाम है। उन्होंने संसद में कहा था-“कश्मीर भारत का मुकुट है, और जब तक इसकी हर घाटी में शांति और विकास नहीं आता, तब तक हमारा प्रयास अधूरा रहेगा।” शाह की कार्यशैली में सबसे अहम है कि किसी चीज को पहले से भांपने की। कश्मीर से 370 हटाने का मामला हो या फिर किसी चुनावी रणनीति की तैयारी, उन्हें अंदाजा हो जाता है कि किस मोहरे को कहां बिठाना है। इसी का असर है कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद अब तक कश्मीर में शांति एवं वहां शांतिपूर्ण चुनाव का होना है तो अयोध्या जैसे सदियों के विवाद का अंत शांतिपूर्ण तरीके से हो जाना है।
गृह मंत्री के रूप में अमित शाह ने देश की सुरक्षा व्यवस्था को नई ऊँचाई दी। आतंकी नेटवर्क के विरुद्ध कड़े कानून, एनआईए की शक्ति में वृद्धि, सीमा सुरक्षा में तकनीकी नवाचार और पुलिस सुधारों की नई पहल-इन सबने भारत की आंतरिक मजबूती को सुदृढ़ किया है। उन्होंने ‘शून्य सहनशीलता नीति’ को व्यवहार में उतारा। चाहे दिल्ली दंगे हों या सीमा पार आतंकवाद की चुनौती-हर परिस्थिति में उनका निर्णय तेज, संतुलित और राष्ट्रहित में रहा। उनके कार्यकाल में भारत में आंतरिक सुरक्षा का सबसे स्थिर दौर देखा जा रहा है, जहाँ आतंक, नक्सलवाद और अलगाववाद तीनों पर नियंत्रण स्थापित हुआ है। राजनीतिक दृष्टि से अमित शाह को ‘मोदी के हनुमान’ कहा जाता है, क्योंकि वे न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे विश्वसनीय सहयोगी हैं, बल्कि उनकी दृष्टि को व्यवहार में उतारने वाले कर्मयोद्धा भी हैं। 2014 से 2020 तक, उन्होंने भाजपा के 10वें अध्यक्ष के रूप पार्टी को 70 से अधिक देशों के बराबर सदस्य संख्या वाला विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक संगठन बनाया। 2014 और 2019 के चुनावों में उनकी रणनीति, संगठन और जनसंपर्क ने भाजपा को ऐतिहासिक विजय दिलाई। उनके रणनीतिक कौशल ने पार्टी को सफलता की नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। लेकिन उनकी पहचान राजनीति से परे है-वे राष्ट्रीय एकता के संरक्षक, सुरक्षा के प्रहरी और सहकारिता के संचारक हैं।
अमित शाह ने संगठन के बाद सरकार में भी अपनी कौशल क्षमता का लोहा मनवाया तो जब भी संसदीय इतिहास में भारत के मोदीमय होने की गाथा का वर्णन होगा, उसमें ‘चाणक्य नीति’ की तरह ‘शाह नीति’ का जिक्र स्वाभाविक होगा। अमित शाह की यह रणनीति पार्टी नेताओं को भी तब समझ आई जब चुनावों के आधिकारिक पोस्टरों-बैनरों पर भी शाह की तस्वीर नजर नहीं आई, दरअसल वे पूरे चुनाव को मोदीमय करने की ‘शाह नीति’ थी। इसलिए शाह ने एक स्पष्ट निर्णय लिया कि प्रचार सामग्रियों पर सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही होंगे। आधुनिक राजनीति का चाणक्य कहें या फिर मोदी के भरोसेमंद सारथी, इसी खास सोच की वजह से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की यह अमिट पहचान बन चुकी है।
अमित शाह को एक उत्कृष्ट संगठक और अभियान रणनीतिकार माना जाता है। उनके समर्थक उन्हें हिंदू धर्म का महान रक्षक मानते हैं, जबकि उनके आलोचक उन्हें एक धु्रवीकरण करने वाली शख्सियत के रूप में देखते हैं। वह अपनी राजनीतिक कुशलता और जमीन से जुड़कर काम करने के लिए जाने जाते हैं। अमित शाह का राजनीतिक करियर उनके रणनीतिक कौशल, संगठन क्षमता और कठोर निर्णय लेने की प्रवृत्ति को दर्शाता है। एक छोटे कार्यकर्ता से लेकर देश के गृह मंत्री तक का उनका सफर भारतीय राजनीति में उनके मजबूत प्रभाव का प्रमाण है। वह भविष्य में भी भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बने रहने की संभावना है। अमित शाह का व्यक्तित्व सरदार वल्लभभाई पटेल की स्मृति को सजीव करता है। जहाँ पटेल ने रियासतों का विलय किया, वहाँ शाह ने विचारों का एकीकरण किया। जहाँ पटेल ने लौह इच्छाशक्ति से भारत का नक्शा जोड़ा, वहाँ शाह ने अखंड भारत की भावना को राजनीतिक और सामाजिक धरातल पर साकार किया। उनके जीवन का सूत्रवाक्य रहा है-“व्यक्ति नहीं, राष्ट्र सर्वाेपरि।” शाह ने राष्ट्रवाद को सर्वाेपरि रखा तो ‘काम रुके ना, देश झुके ना’ के नारे के साथ विकास को भी उसमें जोड़ा। चुनौतियों से जूझने की उनकी छवि ही उन्हें जुझारू और लक्ष्य के प्रति जुनूनी बनाती रही है।
अमित शाह की कार्यशैली अनूठी एवं विलक्षण है, वे जब कोई काम हाथ में लेते हैं तो स्पष्ट लक्ष्य सामने होता है और उसके हिसाब से रणनीति पर काम करते हैं। भले नतीजे पक्ष में आए या खिलाफ, इसकी परवाह नहीं करते। उनका विजन स्पष्ट रहता है और नतीजों के बजाए काम करने पर फोकस रहता है। इसलिए मोदी-शाह की जोड़ी हर चुनाव को युद्ध के रुप में लड़ने के लिए जानी जाती है। शाह का मानना है कि संगठन को हमेशा 24 घंटे 365 दिन गतिशील रखना चाहिए। यह काम वे अपने पांच दशक के राजनीतिक सफर में, वार्ड के बूथ प्रभारी के तौर से करते रहे हैं। गीत-संगीत के शौकीन शाह निदा फाजली के प्रशंसकों में से हैं। खाने-पीने के शौकीन जरुर हैं, लेकिन संयमित और अनुशासित भोजन ही लेते हैं। अमित शाह केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि एक युग का नेतृत्व करने वाले कर्मयोगी हैं। उनकी राजनीति में चातुर्य नहीं, दृष्टि है; उनके निर्णयों में कठोरता नहीं, राष्ट्रभक्ति की गहराई है। चाहे सहकारिता का नवजागरण हो, सुरक्षा का सुदृढ़ीकरण या कश्मीर का एकीकरण-हर क्षेत्र में उन्होंने यह सिद्ध किया है कि यदि नीयत सच्ची हो और दृष्टि व्यापक तो कोई भी परिवर्तन असंभव नहीं। भारत के इतिहास में अमित शाह उस विरल श्रेणी के नेता हैं जिनके कार्यों ने राष्ट्र की दिशा बदली है-वास्तव में वे आज के “संकटमोचन, संगठनशिल्पी और लौहपुरुष” हैं।

-ललित गर्ग

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