जैसलमेर। अतिरिक्त जिला कलक्टर परसाराम ने कहा कि भीषण गर्मी में जैसलमेर जिले में गायों में फैल रहे कर्रा रोग की रोकथाम एवं बचाव उपायों को लेकर जिला प्रशासन संवेदनशीलनता के साथ मुस्तैदी के साथ निरन्तर कार्य रहा है। कर्रा रोग की प्रभावी मॉनिटरिंग एवं गौवंश को इस रोग से बचाव के लिए जिला प्रशासन द्वारा प्रचार-प्रसार के विभिन्न माध्यमों से लोगों को अधिकाधिक इस रोग के प्रति जागरुक किया जा रहा है।
अतिरिक्त जिला कलक्टर की अध्यक्षता में बुधवार को कलक्टेªट स्थित एडीएम सभागार में गायों में फैल रहे कर्रा रोग की रोकथाम एवं बचाव उपायों की तैयारियों के संबंध में समीक्षा बैठक आयोजित हुई। इस अवसर पर उन्होंने पशुपालन विभाग के अधिकारियों को बीमारी की प्रभावी रोकथाम के लिए हर संम्भव आवश्यक प्रयास करने के निर्देश दिए। साथ ही उन्होंने कहा कि संबंधित अधिकारी इस कार्य मिशन के रुप में लेते हुए जिले में एक-एक गाय की जांच करें ताकि गौवश की इस रोग से कम से कम मृत्यु हो।
बैठक में अतिरिक्त जिला कलक्टर परसाराम ने कहा कि इस बीमारी के प्रति लोगों में ज्यादा से ज्यादा जन जागरुकता के लिए सोशल मीडिया ग्रुप्स सहित अन्य प्रचार माध्यमों से इस रोग के लक्षण एवं बचाव के उपायों की जानकारी दी जायें। साथ ही उन्होंने कहा कि विभाग द्वारा 24ग्7 घण्टें इस रोग की प्रभावी मॉनिटरिंग की जायें एवं क्षेत्रवार इस रोग से ग्रस्त/मृत गौवंश की सूचना संधारित रजिस्टर में अनिवार्य रुप से दर्ज करें। इस अवसर पर वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉं. सुरेन्द्र सिंह तंवर, पशु चिकित्सा अधिकारी डॉं. अंकित पाण्डे, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के सहायक निदेशक प्रवीण प्रकाश चौहान, महिला एवं अधिकारिता विभाग के उप निदेशक अशोक गोयल सहित अन्य विभागीय अधिकारी उपस्थित रहे।
कर्रा रोग (बोटूलिज्म) क्या है?
पशुपालन विभाग के वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉं. तंवर ने बताया कि जैसलमेर जिले के शुष्क एवं रेगिस्तानी क्षेत्रों में गर्मियों के मौसम की शुरुआत के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में गायों में मृत पशुओं के शवों के अवशेष व हड्डीयां इत्यादि खाने से कर्रा रोग (बोटूलिज्म) होता है। क्योंकि मृत पशुओं के शवों के सड़ने से “कलोस्ट्रीडियम बोटूलाईनम“ जीवाणु के द्वारा “बोटूलाईनम“ नामक अत्यंत तेज विष (टोक्सिन) उत्पादित होता है। उन्होंने बताया कि जिले में उत्पादित होने वाले चारे में फासफोरस तत्व की कमी एवं दुधारु गायों में दुग्ध उत्पादन के कारण उसके शरीर में फासफोरस व अन्य पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिससे इनकी पूर्ति के लिये गाये मृत पशुओं की हड्डीया खाना शुरु कर देती है एवं यह रोग उनमें फैल जाता है।