हर वर्ष 4 दिसंबर को भारत में नौसेना दिवस मनाया जाता है, और यह अवसर केवल एक औपचारिक उत्सव भर नहीं, बल्कि उन गहराइयों तक झांकने का निमंत्रण भी है जहाँ भारतीय नौसेना के जवान और अधिकारी अपने अदृश्य संघर्षों के साथ देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाते हैं। स्थलीय सेनाओं का पराक्रम अक्सर हमारे सामने दृश्य रूप में उपस्थित रहता है, पर समुद्र के अनंत विस्तार में चौकसी करते नाविकों की कहानी प्रायः अनसुनी रह जाती है। नौसेना दिवस हमें उसी मौन पराक्रम की याद दिलाता है, जो बिना शोर किए, बिना रोशनी की मांग किए, राष्ट्र की संप्रभुता का कवच बनकर खड़ा है।
4 दिसंबर की तारीख भारतीय सैन्य इतिहास में विशेष महत्व रखती है क्योंकि यह 1971 के भारत-पाक युद्ध की उस निर्णायक रात की स्मृति है, जब भारतीय नौसेना ने दुनिया को चौंका देने वाला पराक्रम दिखाया। “ऑपरेशन ट्राइडेंट” के नाम से प्रसिद्ध यह हमला केवल सामरिक कुशलता का उदाहरण नहीं था, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी था कि सीमित संसाधनों के बावजूद दृढ़ निश्चय और योजनाबद्ध युद्धक चातुर्य के बल पर बड़ी से बड़ी चुनौती का सामना किया जा सकता है। मिसाइल बोटों से सुसज्जित भारतीय नौसैनिकों ने कराची बंदरगाह पर ऐसा प्रहार किया कि पाकिस्तान की समुद्री युद्ध क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई, कई जहाज नष्ट हुए, और भारतीय पक्ष को एक भी जहाज के नुकसान का सामना नहीं करना पड़ा। विश्व के युद्ध इतिहास में इतनी स्वच्छ, सटीक और प्रभावी नौसैनिक कार्रवाई के उदाहरण विरले ही मिलते हैं। इसी गौरव के कारण 4 दिसंबर को नौसेना दिवस चुना गया ताकि देश यह न भूले कि समुद्र की लहरों पर भी भारत का शौर्य उतना ही प्रखर है जितना भूमि सीमाओं पर।
भारतीय नौसेना केवल युद्धकाल में ही नहीं, शांति के समय भी राष्ट्र के लिए अनिवार्य भूमिका निभाती है। भारत की समुद्री सीमा हजारों किलोमीटर तक फैली है और इसके साथ विशाल आर्थिक क्षेत्र भी जुड़ा है, जिसकी सुरक्षा सीधे-सीधे आर्थिक स्थिरता से संबंध रखती है। दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग हिंद महासागर से होकर गुजरते हैं—तेल, गैस, खाद्यान्न, और असंख्य प्रकार की आवश्यक वस्तुएँ इसी जलमार्ग के सहारे भारत तक पहुँचती हैं। इन मार्गों की सुरक्षा बनाए रखने का भार नौसेना के कंधों पर है, और समुद्री डकैती, तस्करी तथा गैरकानूनी गतिविधियों पर अंकुश लगाने में उसकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। हर वर्ष नौसैनिक युद्धपोत हजारों किलोमीटर की समुद्री गश्त करते हैं और अनेक ऐसी घटनाओं को रोकते हैं जो समाचारों तक भी नहीं पहुँचतीं, लेकिन देश की सुरक्षा को स्थिर बनाए रखने में निर्णायक साबित होती हैं।
मानवीय सहायता और आपदा प्रबंधन भी नौसेना की पहचान का अभिन्न हिस्सा है। सुनामी हो, चक्रवात या किसी जहाज़ दुर्घटना की विकट रात—भारतीय नौसेना हमेशा अग्रिम पंक्ति में दिखाई देती है। अपने पड़ोसी देशों जैसे श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार और मोज़ाम्बिक में भी जब-जब संकट आया, भारतीय नौसेना ने बिना किसी राजनीतिक लाभ की अपेक्षा के, मानवता के आधार पर सहायता पहुँचाई। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में भारत को “नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर” कहा जाने लगा है—एक ऐसा देश जिसका समुद्री प्रभाव भय पर नहीं, बल्कि भरोसे पर आधारित है।
आज नौसेना दिवस के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन यह है कि भारतीय नौसेना तेज़ी से स्वदेशीकरण की दिशा में आगे बढ़ रही है। आईएनएस विक्रांत—पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत—राष्ट्र की तकनीकी क्षमता और आत्मनिर्भरता का सशक्त प्रतीक है। आधुनिक विध्वंसक, फ्रिगेट, पनडुब्बियाँ और गश्ती जहाज भारतीय शिपयार्ड में बन रहे हैं, और डिज़ाइन से निर्माण तक, भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की भूमिका पहले से कहीं अधिक निर्णायक है। यह केवल सुरक्षा का प्रश्न नहीं, बल्कि औद्योगिक विकास, तकनीकी नवाचार और राष्ट्रीय आत्मगौरव का भी प्रतीक है। जब कोई युवा किसी स्वदेशी युद्धपोत को देखता है, तो उसके सामने केवल एक जहाज नहीं, बल्कि देश के परिश्रम, बुद्धि और जिजीविषा की साकार तस्वीर खड़ी होती है।
नौसेना दिवस मनाते समय उन सैनिकों के निजी संघर्षों को भी समझना जरूरी है जो समुद्र में महीनों तक तैनात रहते हैं। अनिश्चित मौसम, तूफानी लहरें, सीमित जगह और निरंतर तकनीकी सतर्कता के बीच उनका हर दिन एक चुनौती होता है। वे जिन जहाजों या पनडुब्बियों पर रहते हैं, वे अपने आप में एक चलती-फिरती दुनिया होती हैं, जहाँ अनुशासन और टीमवर्क ही जीवन का आधार है। इन वीरों के परिवार भी एक विशेष प्रकार की सीमा पर तैनात रहते हैं—इंतज़ार की सीमा पर। उनका धैर्य, उनका साहस और उनका मौन त्याग भी उतना ही सम्माननीय है जितना किसी सैनिक की वर्दी।
ऐसे समय में नौसेना दिवस का सामाजिक संदेश और भी व्यापक हो जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि समुद्री सुरक्षा केवल नौसेना या सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना का हिस्सा होनी चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में इस विषय पर अधिक संवाद हो, ताकि युवा समझ सकें कि नौसेना केवल युद्ध का माध्यम नहीं, बल्कि तकनीकी, वैज्ञानिक और रणनीतिक करियर की एक रोमांचक और प्रतिष्ठित राह भी है। भारत सदियों से समुद्री सभ्यता, व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का केंद्र रहा है; आज जब देश इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक उभरती शक्ति के रूप में देखा जा रहा है, समुद्री कूटनीति और सामरिक साझेदारी पहले से अधिक महत्व रखती है।
अंततः नौसेना दिवस तीन शब्दों का उत्सव है—आभार, गर्व और संकल्प। आभार उन वीरों के प्रति जो समंदर की अनिश्चितता से जूझते हुए हमारी सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं; गर्व इस पर कि भारतीय नौसेना आज विश्व की प्रमुख नौसेनाओं में शुमार है; और संकल्प इस बात का कि एक नागरिक के रूप में हम समुद्री शक्ति के महत्व को समझें, आत्मनिर्भर भारत के सपने को मजबूती दें, और समुद्र को केवल संसाधन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक के रूप में देखें। 4 दिसंबर की शुभकामनाएँ देते समय यह स्मृति अवश्य रहे कि यह दिवस उन अदृश्य प्रहरियों का सम्मान है, जो चौबीसों घंटे हमारे लिए लहरों से संवाद करते रहते हैं।
– महेन्द्र तिवारी



