बिहार चुनाव में सियासत और अपराध का नापाक गठजोड़

ram

भारतीय लोकतंत्र में अपराधी इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि कोई भी राजनीतिक दल उन्हें नजरअंदाज नहीं कर पा रहा। पार्टियाँ उन्हें नहीं चुनती बल्कि वे चुनते हैं कि उन्हें किस पार्टी से लड़ना है। उनके इसी बल को देखकर उन्हें बाहुबली का नाम मिला है। कभी राजनीति के धुरंधर, अपराधियों का अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करते थे अब दूसरे को लाभ पहुँचाने के बदले उन्होंने खुद ही कमान संभाल ली है। चुनाव आते हैं तो राजनीति और अपराध जगत का संबंध भी सुर्खियों में आ जाता है। हम बात कर रहे है बिहार की जहां चुनाव सुधारों को बेहतर बनाने के लिए काम करने वाले संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और बिहार इलेक्शन वॉच की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में पहले चरण का चुनाव लड़ रहे हर तीसरे उम्मीदवार पर आपराधिक मुकदमा दर्ज है। पहले चरण में चुनावी रण में कुल 1,314 उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं। ADR और बिहार इलेक्शन वॉच ने इन सभी के शपथ पत्रों का गहन विश्लेषण किया तो पता चला कि इसमें से 423 कैंडिडेट ने अपने ऊपर दर्ज हुए आपराधिक मुकदमों का ब्यौरा दिया है। हलफनामे के अनुसार 1,314 में से 354 उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। इनमें से 33 ने हत्या, 86 उम्मीदवारों ने हत्या की कोशिश, 42 ने महिला अपराध और 2 ने खुद पर दुष्कर्म के आरोपों की जानकारी दी है। इनमें CPI ML के 14 में 13, CPI के 3 में 3, जबकि राजद के 70 में से 53 उम्मीदवारों पर आपराधिक मुकदमें दर्ज़ है। जबकि बीजेपी के 48 में से 31, कांग्रेस के 23 में से 15, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के 13 में 7, जनसुराज पार्टी के 114 में 50 तथा जदयू के 57 में 22 उम्मीदवारों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज है। कहने का तात्पर्य है कोई भी पार्टी अपराधी तत्वों को टिकट थमाने में पीछे नहीं है। अन्य पार्टियों की भी कमोवेश यही स्थिति है। ये आंकड़ा बताता हैं कि राजनीति को अपराध मुक्त बनाने की लाखों कोशिशों के बावजूद ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है जिनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। लोकतंत्र की दुहाई देने वाले नेताओं और सियासी पार्टियों के नापाक गठजोड़ से जनता जनार्दन को जागरूक होने की जरुरत है। अपराधियों को नेताओं का समर्थन हो या नेताओं की अपराधियों को कानून के शिकंजे से बचाने की कोशिश, आखिर राजनैतिक दलों पर अपराधियों का ये कैसा असर है।
राजनीति में शुचिता को लेकर ऊपरी तौर पर सभी सियासी दल सहमत है मगर व्यवहार में उनकी कथनी और करनी में भारी अंतर है। लगभग सभी दल चुनाव जीतने के लिए ऐसे उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारते है जो बाहुबली होने के साथ आपराधिक आचरण वाले है। नेताओं के खिलाफ अदालती मुकदमें कोई नयी बात नहीं है। आजादी के बाद से ही नेताओं को विभिन्न धाराओं में दर्ज मुकदमों का सामना करना पड़ रहा है। पिछले दो दशकों में ऐसे मामलों में यकायक ही तेजी आयी। दर्ज मुकदमों में हत्या, हत्या के प्रयास, सरकारी धन का दुरूपयोग, भ्रष्टाचार, बलात्कार जैसे गंभीर प्रकृति के मुकदमें भी शामिल है। कई नामचीन नेता आज भी जेलों में बंद होकर सजा भुगत रहे है और अनेक नेता जमानत पर बाहर आकर मुकदमों का सामना कर रहे है। वर्षों से इन मुकदमों का फैसला नहीं होने से हमारी लोकतान्त्रिक प्रणाली पर सवाल उठते रहे है। लम्बे मुकदमें चलने से सबूत मिलने में काफी परेशानी होती है और अंततोगत्वा आरोपी बरी हो जाते है। सुप्रीम अदालत यदि ऐसे मुकदमों के शीघ्र निस्तारण के लिए कोई सख्त कदम उठाये तो पीड़ितों को न्याय मिल पायेगा।
पिछले सालों में देश में जिस तरह हमारी राजनीति का अपराधीकरण हुआ है और आपराधिक तत्वों की ताकत बढ़ी है, वह जनतंत्र में हमारी आस्था को कमजोर बनाने वाली बात है। राजनीतिक दलों द्वारा अपराधियों को शह देना, जनता द्वारा वोट देकर उन्हें स्वीकृति और सम्मान देना और फिर कानूनी प्रक्रिया की कछुआ चाल, यह सब मिलकर हमारी जनतांत्रिक व्यवस्था और जनतंत्र के प्रति हमारी निष्ठा, दोनों, को सवालों के घेरे में खड़ा कर देते हैं। प्रधानमंत्रीजी आपने वादा किया था देश को दागी राजनीति से मुक्त कराने का। केवल एक परिवार पर कार्यवाही से देश इस दंश से मुक्त नहीं होगा। आज हर दल में दागी शीर्ष पर बैठे है। वे देश के भाग्यविधाता बन बैठे है। थोड़ी हिम्मत दिखाइए और इन काले नागों का फन कुचल दीजिये। पूरा देश आपको सदियों याद रखेगा। दागी राजनीति को समाप्त करने में आपके अप्रतिम योगदान को इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा।

– बाल मुकुन्द ओझा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *