जोधपुर : दुष्यन्त कुमार युगदृष्टा और मानवीय संस्कारों के कवि हैं, शब्दरंग की साहित्यिक चर्चा सम्पन्न

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जोधपुर । शहर में पिछले कुछ समय से साहित्य जगत में भी बदलाव की बयार बहने लगी है। नये चेहरों को मंच मिलने लगा है, कार्यक्रमों का स्वरुप भी नये कलेवर व नये उत्साह के साथ सामने आ रहा है। इस दिशा में कुछ नई संस्थाएं तेज़ी से आई और अपने काम पर जुट गई। इन्ही संस्थाओं में एक शब्दरंग है जिसके बैनर तले जब प्रसिद्ध ग़ज़लकार, कवि, कहानीकार और उपन्यासकार दुष्यन्त कुमार के समग्र साहित्य और चिंतन पर चर्चा आयोजित की तो सभागार में उपस्थित श्रोताओं की संख्या जता गई कि ये बदलाव सबको पसन्द आ रहा है। संस्था की अध्यक्ष डाॅ. रेणुका श्रीवास्तव ने बताया कि नेहरू पार्क स्थित डाॅ. मदन-सावित्री डागा साहित्य भवन में आयोजित इस विचार गोष्ठी में दुष्यन्त कुमार के दो उपन्यास आंगन में एक वृक्ष और छोटे-छोटे सवाल का विश्लेषण करते हुए युवा साहित्कार मोहित कुलश्रेष्ठ ने कहा कि सवाल तो बहुत हैं, पर उनके जवाब नहीं मिलते, उन्होने तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए कहा कि मुंशी प्रेमचंद जैसे अपने लिखे में हर सवाल का जवाब भी साथ देते थे, वही दुष्यन्त कुमार इसको सवाल ही रखकर आगे निकल जाते हैं। इसके अलावा इनके उपन्यास लेखन की बारीकियों को भी रेखांकित किया। दुष्यन्त कुमार की कविताओं पर बात करते हुए डाॅ. रंजना उपाध्याय ने कहा कि उनकी कविताएं सामाजिक, राजनीतिक और वैयक्तिक स्थितियों को उकेरते हुए समकालीन भूमिका का सशक्त निर्माण करती हैं। सूर्य का स्वागत, आवाज़ों के घेरे, जलते वन का बसन्त के माध्यम से रची कविताओं से वे आस्था और संघर्ष का स्वर दर्शाती कविताएं युगबोघ के कवि थे। इसके साथ ही वे युगदृष्टा और मानवीय संस्कारों के भी कवि थे। उनके नाटक एक कंठ विषपायी पर अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ रंगकर्मी डाॅ. सुनील माथुर ने बताया कि नाटक वर्तमान की राजनीतिक व सामाजिक व्यवस्था पर कटाक्ष करता नजर आता है, जो चरित्रों के संवाद में धार्मिक और सामाजिक दृश्यों में परिलक्षित होता है। भाषा का शिल्प प्रभावशाली है और पात्र प्रतीकात्मक हैं, जो नाटक को और सशक्त बनाते हैं। अपनी इन्हीं बातों को पुरज़ोर तरीक़े से रखने के लिये माथुर ने कुछ चुने हुए संवादों का उसी संवेदना के साथ पाठ करके उपस्थित सभी लोगों को भावविभोर कर दिया। दुष्यन्त कुमार की सबसे चर्चित विधा हिन्दी ग़ज़ल पर अपने विचार व्यक्त करते हुए साहित्यकार डाॅ. मनीषा डागा ने साये में धूप ग़ज़ल संग्रह का विश्लेषण किया। उन्होने कहा कि कविता और पाठक के बीच की दूरी त्रासद है जिसको बहुत हद तक दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लें दूर करती हैं, इसका सीधा उदहरण है कि सत्ता के गलियारों से लेकर हर छोटे बड़े आयोजन में नारों और नाटकों का सशक्त हिस्सा हैं आज भी दुष्यन्त कुमार की गजलें। ये अपनी ग़ज़लों को हिन्दी और उर्दू के खांचें से मुक्त करना चाहते थे जिसमें वे काफी हद तक सफल भी रहे। उनको पढ़कर लगता है कि ग़ज़ल अनुभव से ज़्यादा अनुभूति का माध्यम हैं। कार्यक्रम का प्रारम्भ अतिथियों द्वारा मां सरस्वती की तस्वीर पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन से हुई, तत्पश्चात अतिथि वक्ताओं का माल्यार्पण करके स्वागत किया गया। अध्यक्ष डाॅ. रेणुका श्रीवास्तव ने दुष्यन्त कुमार के परिचय के साथ शब्दरंग के एक साल पूरे होने पर सबको बधाई प्रेषित की। इस अवसर पर डाॅ. कौशलनाथ उपाध्याय, शब्बीर हुसैन, डाॅ. पद्मजा शर्मा, आशा पाराशर, ऋचा अग्रवाल, दीप्ति कुलश्रेष्ठ, कविता डागा, अंजना चौधरी, डाॅ. सूरज माहेश्वरी, राहुल गुप्ता, रमेश भाटी नामदेव, प्रमोद वैष्णव, रवीन्द्र माथुर, बसंती पंवार सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार और रंगकर्मी उपस्थित थे, कार्यक्रम का संचालन कवयित्री मधुर परिहार ने किया।

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