धर्मांतरण विरोधी कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश समेत नौ राज्यों से मांगा जवाब

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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश समेत नौ राज्यों को उनके धर्मांतरण विरोधी कानून को चुनौती देने वाली नयी याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किया है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने इन राज्यों को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद होगी। उच्चतम न्यायालय ने सिटिजंस फॉर जस्टिस की दायर याचिका पर उत्तर प्रदेश के अलावा मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गुजरात और हरियाणा को नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया है कि इन राज्यों की ओर से बनाया गया कानून विभिन्न धर्मों के जोड़ों को परेशान करने का जरिया बन गया है। याचिका में कहा गया है कि ये कानून नागरिकों की स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है, इसलिए मांग की गयी है कि मामले की सुनवाई होनेव तक इस कानून के तहत कोई कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया जाए। याचिका में कहा गया है कि यूपी धर्मांतरण संशोधन कानून की धाराएं 2 और 3 काफी भ्रमपूर्ण है। उन्होंने कहा कि ये कानून स्वतंत्र अभिव्यक्ति और धार्मिक विश्वास को आघात पहुंचाता है। याचिका में कहा गया है कि यूपी का धर्मांतरण कानून संविधान के अनुच्छेद 14 और 19, 21 और 25 का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि यूपी धर्मांतरण संशोधन कानून भेदभावपूर्ण है। इस कानून में प्रशासन की ओर से दुरुपयोग रोकने का कोई प्रावधान नहीं है। अगर किसी निर्दोष नागरिक को इस मामले में फंसाया जाता है तो उसे रोकने का कोई प्रावधान इस कानून में नहीं है। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन की ओर से भी इन कानूनों के खिलाफ याचिका दायर की गई है। कोर्ट ने वकील सृष्टि अग्निहोत्री और रुचिरा गोयल को इन मामलों का विस्तृत विवरण तैयार करने के लिए नोडल वकील नियुक्त करने का आदेश दिया।

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