नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने वक्फ संशोधन अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी है, जबकि कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने अंतरिम आदेश में वक्फ के लिए 5 साल तक इस्लाम का पालन करने की शर्त के लागू होने पर भी रोक लगाई है। उच्चतम न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि सरकारी जमीन पर कब्जा जारी रहेगा। इस फैसले से याचिकाकर्ताओं को कुछ हद तक राहत मिली है। हालांकि, कोर्ट ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों के मनोनयन के प्रावधान पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की दलील है कि वक्फ कानून मुसलमानों से भेदभाव करने वाला और उनके धार्मिक मामलों में दखल है, लेकिन सरकार का कहना है कि सैकड़ों साल पुराने वक्फ कानून की खामी को दूर करने के लिए सरकार यह कानून लाई है। इस कानून को व्यापक विचार विमर्श और सदन में चर्चा के बाद पास किया गया है। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले पर 22 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ संशोधन कानून में वक्फ करने के लिए 5 साल प्रैक्टिसिंग मुस्लिम के प्रावधान पर दलील रखते हुए कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में शादी, तलाक, वसीयत आदि के लिए खुद को मुस्लिम साबित करना होता है। इस कानून में अंतर बस इतना है कि इसमें कम से कम पांच साल की समय सीमा तय की गई है। वक्फ करने के लिए 5 साल से इस्लाम प्रैक्टिस करने की शर्त रखी गई है।
वक्फ संशोधन कानून के समर्थन में राजस्थान सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि वक़्फ़ बाय यूजर इस्लाम का मुख्य अंग नहीं है। सुनवाई के दौरान वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि वक्फ काउंसिल्स में गैर-मुस्लिमों को सदस्य बनाना धर्मनिरपेक्षता नहीं है। उन्होंने कहा था कि हमारी आपत्ति भी यही है कि किसी भी हिंदू धर्म स्थान की बंदोबस्ती में एक भी व्यक्ति गैर हिंदू नहीं है। 17 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय में केंद्र सरकार ने कहा था कि वक्फ संशोधन कानून के विवादित प्रावधान फिलहाल लागू नहीं होंगे। आज के फैसले के बाद अब वक्फ संशोधन कानून के विवादित प्रावधान भी लागू होंगे।