डिजिटल युग में साक्षरता और विकास के मायने

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साक्षरता या शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए हर साल 8 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के रूप में मनाया जाता है। साक्षरता दिवस 2025 की थीम डिजिटल युग में साक्षरता को बढ़ावा देना है। यह थीम डिजिटल तकनीक के इस दौर में साक्षरता के महत्व को दर्शाता है, जहां प्रौद्योगिकी हमारे सीखने, काम करने, और संवाद करने के तरीके को बदल रही है। बच्चों को केवल स्कूल भेजना काफी नहीं है, बल्कि उन्हें डिजिटल रूप से सक्षम बनाना भी जरूरी है। साक्षरता और विकास का निकट का सम्बन्ध है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होंगी। 8 सितम्बर को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाने की घोषणा 17 नवम्बर 1965 को सयुक्त राष्ट्र संघ के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन द्वारा की गई। हर साल साक्षरता दिवस को एक नई थीम और लक्ष्य निर्धारित कर मनाया जाता हैं। साक्षरता दिवस हमें यह सोचने का अवसर देता है कि क्या हम साक्षरता को सिर्फ किताबों तक सीमित मान रहे हैं, क्या हम बच्चों और युवाओं को डिजिटल युग में आत्मनिर्भर बनने लायक तैयार कर पा रहे हैं, और क्या हमारी नीतियां हर तबके तक पहुंच पा रही हैं। आज भी दुनिया में 73.9 करोड़ युवा और वयस्क निरक्षर हैं। नई वैश्विक रैंक के मुताबिक सात देशों ने पूर्ण साक्षरता हासिल कर ली है, जबकि अमेरिका लगभग 99 प्रतिशत पर स्थिर है। यूक्रेन, उज़्बेकिस्तान, नॉर्थ कोरिया सम्पूर्ण साक्षर हो गया है। उच्च साक्षरता दर वाले देशों में फिनलैंड, नॉर्वे भी हैं, यहां भी 100 प्रतिशत साक्षरता दर है। एंडोरा, लक्जमबर्ग और लिकटेंस्टीन जैसे देश में भी साक्षरता दर 100 फीसदी है। इन देशों में मजबूत शिक्षा प्रणाली, मुफ्त शिक्षा, और उच्च जीवन स्तर साक्षरता को बढ़ावा देते हैं. अन्य देश जैसे डेनमार्क, स्वीडन, और जर्मनी भी 99 प्रतिशत से अधिक साक्षरता दर है। भारत ने साक्षरता दर में उल्लेखनीय प्रगति की है। 1951 में जहां साक्षरता दर केवल 18.3 प्रतिशत थी, वहीं 2025 तक इसके 81 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है। देश में 37 सालों से छिड़ी साक्षरता की मुहिम के बावजूद 20 प्रतिशत लोग आज भी असाक्षर है। हालांकि मिजोरम और गोवा जैसे छोटे राज्यों ने पूर्ण साक्षरता का दर्जा हासिल एक नई अलख जगाई है। सरकारी उम्मीद है 2030 तक देश सम्पर्ण साक्षर हो जायेगा। देश में साक्षरता का मुहिम मई 1988 में शुरू हुई थी।सरकारी उम्मीद है 2030 तक देश सम्पर्ण साक्षर हो जायेगा। देश में साक्षरता का मुहिम मई 1988 में शुरू हुई थी। संसद में बताया गया कि देश की साक्षरता दर 80.9 प्रतिशत है और सरकार 100 प्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य लेकर चल रही है। यूनेस्को के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा अनपढ़ लोग भारत में हैं। एक प्रगतिशील समाज में निरक्षरता को अभिशाप समझा जाता है। गरिमामयी तथा उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए व्यक्ति को कम से कम साक्षर होना बहुत जरूरी है। देश-दुनिया से गरीबी को जड़मूल से हटाने, आबादी के विस्फोट को रोकने के साथ जन जन तक लोक कल्याणकारी कार्यों को पहुँचाने के लिए यह बहुत जरूरी है की प्रत्येक व्यक्ति साक्षर हो। साक्षरता केवल शिक्षा का उजाला ही नहीं फैलाता अपितु मानव के सुखमय जीवन का मार्ग भी प्रशस्ति करता है। शिक्षा मानव के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाता है। यह किसी देश को तरक्की और विकास के रास्ते पर ले जाने की बुनियाद है। साक्षरता के साथ ज्ञान एवं कौशल विकास भी जरूरी है। साक्षरता और कौशल विकास का चोली दामन का साथ है। साक्षरता की सफलता रोजगार से जुडी है। हम साक्षर व्यक्ति को रोजी रोटी की सुविधा सुलभ करा कर देश से निरक्षरता के अँधेरे को भगा सकते है। हालाँकि केंद्र और राज्य सरकारें विभिन्न स्तरों पर कौशल विकास के कार्यक्रम संचालित कर रही है मगर जब तक ऐसे व्यक्ति अपने पैरों पर खड़े नहीं होंगे तब तक साक्षरता अभियान को पूर्ण रूप से सफल नहीं माना जा सकता। साक्षरता का मतलब केवल पढ़ना-लिखना या शिक्षित होना ही नहीं है। यह लोगों में उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता लाकर सामाजिक विकास का आधार बन सकती है। इसका सामाजिक एवं आर्थिक विकास से गहरा संबंध है। साक्षरता का कौशल मानव में आत्मविश्वास का संचार करता है। गरीबी उन्मूलन में इसका महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। महिलाओं एवं पुरुषों के बीच समानता के लिए जरूरी है कि महिलाएं भी साक्षर बनें। जीने के लिये खाने की तरह ही साक्षरता भी महत्वपूर्णं है। साक्षरता में वो क्षमता है जो परिवार और देश की प्रतिष्ठा को बढ़ा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाने का उद्देश्य व्यक्ति, समुदाय तथा समाज के हर वर्ग को साक्षरता का महत्व बताकर उन्हें साक्षर करना है।

-बाल मुकुन्द ओझा

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