‘धौंस और धमकी’, ट्रंप टैरिफ वॉर के बीच भारत से बोला चीन; अमेरिका को जमकर सुनाया

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नई दिल्ली। गलवान घाटी में सेना संघर्ष के बाद भारत और चीन रिश्तों को सुधारने में जुटे हुए हैं। इस कहानी की स्क्रिप्ट ऐसे समय में लिखी जा रही है जब डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ टैरिफ वॉर झेड़ दिया है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी भारत दौरे पर हैं और उन्होंने कल विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर से बातचीत की। यह यात्रा एक मील का पत्थर साबित हो सकती है क्योंकि दोनों एशियाई शक्तियां ट्रंप के टैरिफ युद्ध से उत्पन्न वैश्विक व्यवधानों का मुकाबला करने के लिए अपने संबंधों को बेहतर बना रही हैं।

एस. जयशंकर ने क्या कहा?
बैठक में डॉ. जयशंकर ने कहा कि वांग की यात्रा द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा का अवसर है। उन्होंने बैठक के दौरान कहा, “महामहिम, हमारे संबंधों में एक कठिन दौर देखने के बाद अब दोनों देश आगे बढ़ना चाहते हैं। इसके लिए दोनों पक्षों की ओर से एक स्पष्ट और रचनात्मक दृष्टिकोण की जरूरत है।” उन्होंने आगे कहा, “इस कोशिश में हमें तीन परस्पर सिद्धांतों – परस्पर सम्मान, परस्पर संवेदनशीलता और परस्पर हित से निर्देशित होना चाहिए। मतभेद विवाद नहीं बनने चाहिए, न ही प्रतिस्पर्धा संघर्ष।” उन्होंने यह भी कहा, “महामहिम जब दुनिया के दो बड़े देश मिलते हैं तो स्वाभाविक है कि अंतर्राष्ट्रीय स्थिति पर भी चर्चा होगी। हम एक निष्पक्ष, संतुलित और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था चाहते हैं, जिसमें बहुध्रुवीय एशिया भी शामिल हो। सुधारित बहुपक्षवाद भी आज की जरूरत है। वर्तमान परिवेश में, वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखना और उसे बढ़ाना भी स्पष्ट रूप से जरूरी है।”

चीन ने अमेरिका को दिखाई आंख
बैठक के बाद जारी एक चीनी बयान में कहा गया कि वांग यी ने डॉ. जयशंकर से कहा कि दुनिया तेज गति से सदी में एक बार होने वाले बदलाव से गुजर रही है। वॉशिंगटन डीसी के दबाव का स्पष्ट रूप से हवाला देते हुए, उन्होंने कहा कि एकतरफा धौंस-धमकी बढ़ चुकी है और मुक्त व्यापार तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। उन्होंने कहा, “2.8 अरब से अधिक की संयुक्त जनसंख्या वाले दो सबसे बड़े विकासशील देशों के रूप में, चीन और भारत को प्रमुख देशों के रूप में वैश्विक चिंता और जिम्मेदारी की भावना का प्रदर्शन करना चाहिए, विकासशील देशों के विशाल बहुमत के लिए एकजुट होने और खुद को मजबूत करने के लिए एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए और एक बहुध्रुवीय विश्व को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लोकतंत्रीकरण में योगदान देना चाहिए।”

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