टोंक : समाधि साधना में कर्म रूपी शत्रुओं से संयम चारित्र रूपी रत्न की सावधानी से रक्षा करना होगी : आचार्य वर्धमान सागर

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टोंक । आचार्य वर्धमान सागर संघ सहित आदिनाथ जिनालय नसिया में विराजित हैं।मुनि चिन्मय सागर को संबोधन में आचार्य ने बताया कि आपको गुरु के द्वारा दिए गए दीक्षा व्रत का पालन करना है चारित्र की विशुद्धता पर प्रमाद आलस्य नहीं करें । आपका संयम कीमती रत्न है इसकी सुरक्षा करनी है। जीवन का सार चारित्र है। हर समय सजग और सावधान रहना है जीर्ण काया, शरीर में समाधि रूपी विशुद्धता का लक्ष्य ध्यान में रखना चाहिए। हर समय 12 भावना और पांच नमस्कार भाव की आराधना धीरता पूर्वक करें। संघ के सभी साधु आपकी सेवा में तत्पर रहेंगे सभी के प्रति आपको साम्य क्षमा भाव रखना है।यह मंगल देशना में वात्सल्य वारिधी आचार्य वर्धमान सागर जी ने दिनांक7 अगस्त को क्षपक मुनि चिन्मय सागर को अमृत रूपी वचनों का पान कराया। राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य ने मुनि को संबोधित कर सभी क्रियाएं सज$गता से करना है, भाव ,परिणाम निर्मल रखने , मृत्यु से भयभीत नहीं होने की प्रेरणा दी। उन्होंने बताया कि रत्नत्रय से सज्जित आत्मा में संकल्प , विकल्प, राग, द्वेष, व्याकुलता को दूर कर अंतरंग परिणाम भावों को सम्हाल कर देव ,शास्त्र ,गुरु ओर आत्मा की साधना का लक्ष्य रखे।

संयम युद्ध के समान है जिसमें कर्म रूपी शत्रुओं पर आपको विजय प्राप्त करना है दीक्षा रुपी मंदिर पर समाधि संलेखना का कलशारोहण करना है।आपने संयम साधना की सफलता की कामना की है।88 वर्षीय मुनि चिन्मय सागर ने वर्ष 1989 में आचार्य अजित सागर से मुनि दीक्षा ली। आज आपने जी का पंचामृत अभिषेक देखा। जी एवं आचार्य वर्धमान सागर से क्षमा याचना कर संस्तरारोहण का निवेदन में बताया कि मेरा शरीर अब संयम साधना में बाधक है इसलिए मेरी संघ सानिध्य में सम्यक समाधि हो आप मुझे भी संसार समुद्र से पार लगा दीजिए। संयम साधना में संबल और मार्ग दर्शन का निवेदन किया ।गुरु और संघ ही माता पिता सब कुछ है। आपने पुन: आचार्य सहित सभी मुनिराज आर्यिका माताजी से क्षमा याचना की। सभी ने मुनि चिन्मय सागर से नमोस्तु कर क्षमा ली।इसके बाद आचार्य वर्धमान सागर ने कमरे की मंत्रोच्चार पूर्वक शुद्धि की। इस अवसर पर काफी श्रद्धालुओं ने आपके जय कार लगाकर संयम तपस्या की अनुमोदना की।

संस्तरारोहण अर्थात क्षपक साधु जिस स्थान पर बैठते ,लेटते हैं उसे संस्तर कहते हैं और उस पर बैठना, उठना आरोहण कहलाता है इस प्रकार संस्तरारोहण किया जाता है। मुनि जीवित अवस्था में संयमी जीवन में क्रम पूर्वक आहार का त्याग कर रहे हैं । समाज प्रवक्ता पवन कंटान एवं विकास जागीरदार अनुसार आज आचार्य के सानिध्य में जी का नित्य अभिषेक शांतिधारा की गई । तत्पश्चात आचार्य का नवधा भक्ति पूर्वक आहार देने का सौभाग्य तारा अम्मा के यहा हुआ । प्रसिद्ध भामाशाह श्रेष्ठि अशोक पाटनी आर के मार्बल ग्रुप के चेयरमैन किशनगढ़ ने राजकीय अतिथि आचार्य वर्धमान सागर के दर्शन कर आचार्य से आशीर्वाद प्राप्त किया।समाज के पदाधिकारियों भागचंद फूलेता, धर्मचंद दाखिया, महावीर प्रसाद देवली, राजेश सर्राफ,श्याम लाल फूलेता, संजय संघी, कमल सर्राफ, नीटू छामुनिया, विनायक जैन, अमित छामुनिया, अशोक झिराना, लाल चंद फूलेता , सुनील आड़रा, धर्मचंद , पारस जैन, जयदीप बड़जात्या ने सम्मान किया। इससे पूर्व अशोक पाटनी किशनगढ़ से हेलीकॉप्टर के माध्यम टोंक हेलीपेड पर उतरे जहां पर वात्सल्य वारिधि आचार्य वर्धमान वर्षायोग समिति के पदाधिकारीयो ने गुलदस्ता देकर स्वागत किया ।

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