उत्तराखंड के त्रियुगीनारायण में भगवान शिव और मां पार्वती ने किया था विवाह, जानिए धार्मिक महत्व

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नई दिल्ली। हिंदू धर्म में सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। वहीं सावन महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। वहीं कई भक्त भगवान शिव के मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं। ऐसे में अगर आप भी भगवान शिव और मां पार्वती की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप भी भगवान शिव के मंदिर में दर्शन के लिए जा सकते हैं। बता दें कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में एक स्थान ऐसा है, जहां पर भगवान शिव ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में कदम रखा था। इस विवाह में भगवान शिव के गणों समेत सभी देवी-देवताओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था।

जानिए कहां हुआ था विवाह
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगीनारायण गांव में शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। जहां पर वर्तमान समय में त्रियुगीनारायण मंदिर स्थित है। त्रियुगीनारायण मंदिर गंगा और मंदाकिनी सोन नदी के संगम पर बना है। यह खूबसूरत गांव 1,900 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह पूरा क्षेत्र पहाड़ों से घिरा है। सर्दियों में यहां पर बर्फ गिरने से इस जगह की खूबसूरती बहुत बढ़ जाती है।

क्या हैं धार्मिक मान्यताएं
इस मंदिर के आसपास का प्राकृतिक दृश्य मन मोह लेता है। लेकिन यहां से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं व्यक्ति को यहां पर आने को मजबूर कर देती है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस मंदिर में आज भी वह पवित्र अग्नि जल रही है। जिसको साक्षी मानकर भगवान शिव और मां पार्वती ने विवाह किया था। बताया जाता है कि यह अग्नि तीन युगों से जलने की वजह से इस मंदिर को त्रिजुगी नारायण मंदिर के नाम से जाना जाता है। वहीं यह भी माना जाता है कि जो भी जातक अखंड ज्योत की भभूत को अपने साथ ले जाता है। उसका वैवाहिक जीवन हमेशा खुशहाल बना रहता है। इस मंदिर की धार्मिक मान्यता इतनी अधिक है कि लोग आज भी यहां पर विवाह करने के लिए पहुंचते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां पर विवाह करने वाले जोड़े को भगवान शिव और पार्वती का आशीर्वाद मिलता है।

ब्रह्मा जी और विष्णु जी की अहम भूमिका
बता दें कि शिव-शक्ति के इस मिलन में भगवान विष्णु ने मां पार्वती के भाई की सभी रस्में निभाई थीं। वहीं ब्रह्मा जी ने विवाह यज्ञ के आचार्य की भूमिका निभाई थी। इस मंदिर के ठीक सामने जो विवाह स्थल है, उसको ब्रह्म शिला के नाम से जाना जाता है। इस स्थान का महात्मय पुराणों में भी मिलता है। बताया जाता है कि विवाह संपन्न कराने से पहले सभी देवताओं ने यहां पर स्नान भी किया था। इसलिए यहां पर रुद्र, विष्णु और ब्रह्म नामक तीन कुंड भी बने हुए हैं।

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