जोधपुर : सरकारी सिस्टम से जनता परेशान, कहीं नजर नहीं आ रहा मानसून पूर्व तैयारियों का असर

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– हर साल होती है सीएम से लेकर कलेक्टर की अध्यक्षता में बैठकें, पास होता है करोड़ों का बजट
जोधपुर । मानसून सक्रिय है लेकिन जनता सरकारी सिस्टम से परेशान है। मानूसन से पहले मुख्यमंत्री से लेकर कलेक्टर और विभागों के मुखियाओं के स्तर पर तैयारियों को लेकर बैठकें होती है। करोड़ों को बजट पास होता है लेकिन उसका असर मानसून में कहीं नजर नहीं आता। जरा सी बारिश में टूटी सड़के और जगह—जगह भरा पानी जानलेवा साबित हो रहा है।
शहर हो या फिर ग्रामीण क्षेत्र, विकास की प्लानिंग केवल कागजों में है। मास्टर प्लान, जोनल प्लान सब फाइलों में दफन है। बावजूद इसके लिए जिम्मेदारों के बड़े—बड़े दावे। चाहे मुख्यमंत्री, मंत्री, मुख्य सचिव, सचिव या फिर विभाग के प्रशासनिक मुखिया के स्तर की बैठकें, चर्चाएं खूब होती है लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता। जनता परेशान हो, इससे इनका कोई वास्ता नहीं। बजट मंजूर होता है, खर्च कहां हुआ, पता नहीं?
बात कर रहे है कि हर साल मानसून पूर्व या फिर मानसून के दौरान होने वाली सरकारी बैठकों और तैयारियों की। इन बैठकों में निर्णय की पोल हर मानसून में गड्ढों के कारण जानलेवा बनी सड़कों, रुकावट के कारण उफनती सीवरेज लाइनों, कचरे से अटी गलियां और नालियां, जगह—जगह जलभराव से खुलती है। मानसून पूर्व नालों, सीवरेज लाइनों और गलियों की सफाई पर खर्च होने वाला अरबों रुपए का बजट कहां खर्च हुआ? सड़क बनने के बाद कुछ ही दिन में वे क्यों टूटी? पानी या सीवरेज लाइन डालने के बाद सड़क की मरम्मत क्यों नहीं हुई? खानापूर्ति क्यों हुई? ये किसी से नहीं पूछा जाता। मामला उठता है तो ज्यादा से ज्यादा से ठेकेदार पर पेनल्टी लगा दी जाती है। पेनल्टी की राशि सरकार और जनता को हुए नुकसान को देखते हुए केवल खानापूर्ति है। कार्रवाई कर प्रशासनिक सिस्टम पाक साफ और ठेकेदार खुश कि आगे के काम के लिए उसे क्लीन चिट मिल गई और बाकी पेमेंट हो गया। मिलीभगत के इस खेल में जनता की जान दाव पर लग रही है इससे किसी को कोई मतलब नहीं। ना ही हर साल होने वाली इन मानसूनी बैठकों और तैयारियां का कोई असर नजर आता। हादसा होने पर जांच, मुआवजा और फिर वहीं ढाक के तीन पात।
सरकारी ढांचे के लिए उत्सव से कम नहीं मानसून- देखा जाए तो सरकारी सिस्टम के लिए मानसून किसी उत्सव से कम नहीं होता। पहले मानसून पूर्व तैयारियों पर फिर मानसून के दौरान हुए नुकसान को सुधारने के नाम पर जमकर सरकारी पैसा खर्च किया जाता है। हर साल यह घपला होता है और ऑडिट में भी पकड़ नहीं आता। मानसून की तैयारी के नाम पर जो सड़क बनाने या नालों, गलियों, सीवरेज की सफाई का जो काम होता है वह तो बारिश में धुल जाता है। बाद में उन्हीं जगह पर मरम्मत का दोहरा भुगतान उठा लिया जाता है। हर साल करोड़ों रुपए के घपले यह खेल मिलीभगत से सरकारी सिस्टम में खेला जा रहा है। पर कभी किसी जनप्रतिनिधि या अधिकारी की कोई जिम्मेदारी तय नहीं।
पूरे प्रदेश में एक जैसा हाल- सड़कों पर जानलेवा गड्ढे, मामूली बारिश में दरिया बनती सड़कें, उफनती सीवरेज लाइनों की समस्या पूरे प्रदेश में है। राजधानी जयपुर में गांधी नगर, सिविल लाइंस जैसे वीवीआईपी क्षेत्रों को छोड़ कर पूरा शहर इस समय बदहाल है। जोधपुर में पुरानी आबादी क्षेत्र हो या फिर नई बस रही कॉलोनियां सभी जगह एक जैसी स्थिति है। पिछले साल मानसून के दौरान मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी गड्ढों में से निकले तो लोगों ने उन पर तंज भी कसा था। लेकिन आज भी जयपुर रोड के हालात जस के तस है। राजमार्गों पर भी यही स्थिति है। टोल देने के बाद भी लोगों को आरामदायक सफर का लाभ नहीं मिल रहा।
क्या सीएम की चिताओं पर जागेंगे अफसर- मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने सोमवार को विकास को लेकर एक कार्यक्रम में अहम बात कही। उन्होंने कहा कि कोई भी विकास की योजना साल—दो साल के लिए बन रही है। ऐसे में जब सड़क बनकर तैयार होती है तो उसे खोदने वाले आ जाते है। सीवरेज लाइन, पानी की लाइन के लिए उसे तोड़ दिया जाता है। किसी भी क्षेत्र की योजना आगामी 10—15 साल के विकास को ध्यान में रखकर बने तो ऐसी समस्याएं नहीं आएगी। मुख्यमंत्री की इस सोच अफसरों पर कितना होता है यह तो वक्त बताएगा लेकिन यह सही है कि तालमेल की कमी भी समस्या को बढ़ा रही है।

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