कारगिल: वीरता जहाँ लहू बनकर बही, जयघोष बनकर गूंजी

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जब भारत की मिट्टी शहीदों के लहू से रंग जाती है, तो वह न केवल इतिहास रचती है, बल्कि अमरता का वह गीत गाती है जो हर भारतीय के रग-रग में देशभक्ति की आग जला देता है। कारगिल की बर्फीली चोटियों पर बहा हर खून का कतरा आज भी पुकारता है – “मैंने अपने प्राण मातृभूमि को सौंप दिए, अब तू क्या देगा भारत को?” 26 जुलाई कोई साधारण दिन नहीं, यह भारत के शौर्य का वह स्वर्णिम पन्ना है जो हर हृदय में गर्व की लौ जलाता है। यह वह दिन है जब भारत ने दुनिया को बता दिया कि उसकी सीमाओं की ओर आँख उठाने वालों का दुस्साहस कुचल दिया जाता है, और मातृभूमि की रक्षा के लिए उसके वीर सपूत मौत को भी गले लगाने से नहीं डरते। कारगिल विजय दिवस केवल एक सैन्य जीत की गाथा नहीं, बल्कि यह उस अटूट संकल्प की कहानी है, जिसने भारत को अभेद्य बनाया। मई 1999 में शुरू हुआ कारगिल युद्ध भारतीय सेना के लिए एक ऐसी अग्निपरीक्षा था, जहाँ दुश्मन की गोलियाँ ही नहीं, बल्कि प्रकृति की क्रूरता भी हर कदम पर चुनौती दे रही थी। पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर कारगिल, द्रास और बटालिक की चोटियों पर गुप्त रूप से कब्जा कर लिया था।

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