नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक लड़ाइयां चुनाव में लड़ी जानी चाहिए, जांच एजेंसियों के माध्यम से नहीं। अदालत ने यह टिप्पणी मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MUDA) केस में ईडी की अपील पर सुनवाई के दौरान की। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने सुनवाई के दौरान तल्ख लहजे में कहा—”हमारा मुंह मत खुलवाइए, वरना हमें ईडी को लेकर कठोर टिप्पणियां करनी पड़ेंगी। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का हल जांच एजेंसियों के माध्यम से निकालना ठीक नहीं है।” मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि “मेरे पास महाराष्ट्र का कुछ अनुभव है। कृपया इस तरह की राजनीति को देशभर में मत फैलाइए।” दरअसल, ईडी ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती को MUDA मामले में समन भेजा था, जिसे कर्नाटक हाईकोर्ट ने मार्च में खारिज कर दिया था। ईडी ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। मगर सुप्रीम कोर्ट ने भी ईडी की अपील खारिज कर दी। पहले भी लग चुकी हैं फटकारें : यह पहला मौका नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की कार्यशैली पर सवाल उठाए हों। इससे पहले 22 मई को तमिलनाडु में शराब दुकान लाइसेंस घोटाले से जुड़े मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि जब राज्य की एजेंसियां जांच कर रही हैं, तब ईडी के हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की ईडी को फटकार : राजनीतिक लड़ाई चुनाव तक ठीक है, इसमें एजेंसियों का इस्तेमाल क्यों हो रहा है?
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