नई दिल्ली। सनातन धर्म में शिवलिंग की अपनी महिमा है। शिवलिंग को साक्षात आत्म रूप माना गया है। लिंग पुराण के अनुसार शिवलिंग के तीन मूल भाग हैं, जिनके मूल में ब्रह्मा, मध्य भाग में विष्णु और ऊपर के भाग में महादेव स्थित हैं। इसके साथ ही वेदी में महादेवी विराजती हैं। शिव पुराण के अनुसार 10 तरह के शिवलिंग बताए गए हैं। शिवलिंग को परम ब्रह्म तथा संसार की समस्त ऊर्जा का प्रतीक भी बताया गया है। ‘शिव’ एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ ‘कल्याणकारी’ या ‘उपकारी’ होता है। यजुर्वेद में शिव को शांतिदूत माना गया है। ‘शि’ का अर्थ है ‘पापों का नाश करने वाला’, जबकि ‘वा’ का अर्थ है ‘दाता’। संस्कृत में ‘लिंग’ का अर्थ है ‘चिन्ह’। मतलब ‘शिवलिंग’ का अर्थ है ‘प्रकृति के साथ एकीकृत शिव’, यानी ‘परम पुरुष का प्रतीक’। वैसे शिवलिंग को सही अर्थ में समझा जाए तो शिव का अर्थ शुभ और लिंग का अर्थ ज्योति पिंड होता है। शिवलिंग ब्रह्मांड और उसकी समग्रता का प्रतिनिधित्व करता है। जो शिवलिंग स्वयं प्रगट हुए हैं, उन्हें स्वयंभू शिवलिंग कहते हैं। इसके साथ ही प्राचीन काल में मनुष्य द्वारा स्थापित शिवलिंग को पुराण शिवलिंग कहा गया है। असुरों के द्वारा स्थापित शिवलिंग को असुर लिंग कहा गया है। वहीं, जिस शिवलिंग को देवताओं द्वारा स्थापित किया गया, उसे देव लिंग कहा गया है। प्राचीन काल में अगस्त्य मुनि जैसे संतों द्वारा स्थापित शिवलिंग को अर्श शिवलिंग कहा गया। वहीं, प्राचीन काल या मध्य काल में ऐतिहासिक मनुष्यों, राजा-महाराजाओं या महापुरुषों द्वारा स्थापित शिवलिंग को मनुष्य शिवलिंग कहा गया है। वैसे शास्त्रों में 5 प्रमुख प्रकार के शिवलिंग का जिक्र है, जिसमें पत्थर से बने शिवलिंग को शैलजा शिवलिंग, रत्नों से बने शिवलिंग को रत्नजा, धातु से बने शिवलिंग को धातुजा, लकड़ी से बने शिवलिंग को दारुजा, और मिट्टी से बने शिवलिंग को मृतिका शिवलिंग कहते हैं।
शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग के बारे में कितना जानते हैं आप, शक्ति और विष्णु शिवलिंग में क्या है अंतर?
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